अध्याय 02 फ़सलों के त्योहार (लेख)

सारा दिन बोरसी के आगे बैठकर हाथ तापते हुए गुज़र जाता है। कहाँ तो खिचड़ी के समय धूप में गरमाहट की शुरुआत होनी चाहिए और यहाँ हम सूरज के इंतज़ार में आस लगाए बैठे हुए हैं। पूरे दस दिन हो गए सूरज लापता है। आज सुबह ती रज़ाई से निकलने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

बाहर देखने से तो समय का अंदाज़ा बिलकुल नहीं हो रहा लेकिन घर में हो रही चहल-पहल अब पता चल रही है। रह-रहकर कानों में कभी चाँपाकल के चलने और पानी के गिरने की आवाज़ तो कभी किसी के हाँक लगाने की आवाज़ आ रही थी, “जा भाग के देख केरा के पत्ता आइल की ना?”

“आज ई लोग के उठे के नईखे का? बोल जल्दी तैयार होखस।” अब तो उठने में ही भलाई है।

नहा-धोकर हम सभी एक कमरे में इकट्ठा हुए। दादा और चाचा ने क्या सफ़ेद चकाचक माँड़ लगी धोती और कुर्ता पहना हुआ है! “खिचड़ी में अइसन ठाड़ हम पहिले कब्बो ना देख नी सारा देह कनकना दे ता!” पापा ने कहा। शायद आज धोती में उन्हें ठंड कुछ ज़्यादा लग रही है।

सामने मचिया पर खादी की सफ़ेद साड़ी पहने हुए दादी बैठी थीं। आज दादी ने अपने बाल धोए हैं-झक सफ़ेद सेमल की रुई जैसे हल्के-फुलके बाल। गौर से देखने पर भी एक काला बाल नज़र नहीं आता। बिल्कुल धुली-धुली सी लग रही हैं दादी। उनके सामने केले के कुछ पत्ते कतार में रखे हैं जिस पर तिल. मिट्ठा (गुड़), चावल आदि के छोटे-छोटे ढेर पड़े हुए हैं। हमें बारी-बारी से उन सभी चीज़ों को छूने और प्रणाम करने के लिए कहा गया। जब सबने ऐसा कर लिया तो उन सभी चीज़ों को एक जगह इकट्ठा करके दान दे दिया गया।

आज तो अप्पी दिदिया बुरी फँसी। उन्हें न तो चूड़ा-दही ही पसंद है और न ही खिचड़ी, पर आज तो फ़रमाइशी नाश्ता नहीं चलेगा। उन्हें दोनों ही चीज़ें खानी पड़ेंगी… आज खिचड़ी जो है! खिचड़ी खाने के बाद सभी ने ‘गया’ से आए तिल, गुड़ और चीनी के तिलकुट को बड़े चाव से खाया। खाते-खाते मैं सोच रही थी कि कितनी अलग है न यह खिचड़ी जो अभी हम मना रहे हैं। स्कूल में हम जो खिचड़ी मनाते थे उसकी अलग ही मस्ती हुआ करती थी। छुट्टी का दिन, नाव में बैठकर गंगा नदी की सैर और फिर टापू पर बालू में दौड़ते हुए पतंग उड़ाना या उड़ाने की कोशिश करना। कितना मज़ा आता था। इधर हम पतंग उड़ाते थे और वहीं थोड़ी दूर पर गुरुजी, विमला दिद्दा, आनंद जी, झिलमिट भैया सब मिलकर ईंट से बने चूल्हे पर बड़े-बड़े कड़ाहों में खिचड़ी बनाते थे। हम भी बीच-बीच में अपनी पतंगों को सुस्ताने का मौका देते हुए मटर और प्याज छीलने बैठ जाते। वैसी खिचड़ी फिर दुबारा खाने को नहीं मिली। वाकई, ढंग कैसा भी हो, पर है ये खुशियों का त्योहार!

जनवरी माह के मध्य में भारत के लगभग सभी प्रांतों में फ़सलों से जुड़ा कोई-न-कोई त्योहार मनाया जाता है। कोई फ़सलों के तैयार हो जाने पर खुशी बाँटता है तो कुछ लोग इस उम्मीद में खुश होते हैं कि अब पाला कम होगा, सूरज की गर्मी बढ़ने से खेतों में खड़ी फ़सल तेज़ी से बढ़ेगी। सभी प्रांतों और इलाकों का अपना रंग और अपना ढंग नज़र आता है। इस दिन सब लोग अच्छी पैदावार की उम्मीद और फ़सलों के घर में आने की खुशी का इज़हार करते हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश में मकर-संक्रांति या तिल संक्रांत, असम में बीहू, केरल में ओणम, तमिलनाडु में पोंगल, पंजाब में लोहड़ी, झारखंड में सरहुल, गुजरात में पतंग का पर्व सभी खेती और फ़सलों से जुड़े त्योहार हैं। इन्हें जनवरी से मध्य अप्रैल तक अलग-अलग समय मनाया जाता है।

झारखंड में सरहुल बड़े जोशो-खरोश के साथ मनाया जाता है। चार दिनों तक इसका जश्न चलता रहता है।

अलग-अलग जनजातियाँ इसे अलग-अलग समय में मनाती हैं। संथाल लोग फरवरी-मार्च में, तो ओरांव लोग इसे मार्च-अप्रैल में मनाते हैं। आदिवासी आमतौर पर प्रकृति की पूजा करते हैं। सरहुल के दिन विशेष रूप से ‘साल’ के पेड़ की पूजा की जाती है। यही समय है जब साल के पेड़ों में फूल आने लगते हैं और मौसम बहुत ही खुशनुमा हो जाता है। स्त्री-पुरुष दोनों ही ढोल-मंजीरे लेकर रात भर नाचते-गाते हैं। चारों ओर फैली हुई छोटी-छोटी घाटियाँ, लंबे-लंबे साल के वृक्षों का जंगल और वहीं आस-पास बसे छोटे-छोटे गाँव। लिपे-पुते, करीने से बुहारे और सजाए गए अपने घरों के सामने लोग एक पंक्ति में कमर में बाँहें डालकर नृत्य करते हैं।

अगले दिन वे नृत्य करते हुए घर-घर जाते हैं और फूलों के पौधे लगाते हैं। घर-घर से चंदा माँगने की भी प्रथा है। पर चंदे में मालूम है क्या माँगते हैं? मुर्गा, चावल और मिश्री। फिर चलता है खाने-पीने और खेलों का दौर। तीसरे दिन जाकर पूजा होती है जिसके बाद लोग अपने कानों में सरई का फूल पहनते हैं।

इसी दिन से वसंत ऋतु की शुरुआत मानी जाती है। धान की भी पूजा होती है। पूजा किया हुआ आशीर्वादी धान अगली फ़सल में बोया जाता है।

तमिलनाडु में मकर-संक्रांति या फ़सलों से जुड़ा त्योहार ‘पोंगल’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन खरीफ़ की फ़सलें चावल, अरहर, आदि कटकर घरों में पहुँचती हैं। लोग नए धान कूटकर चावल निकालते हैं। हर घर में मिट्टी का नया मटका लाया जाता है जिसमें नए चावल, दूध और गुड़ डालकर उसे पकाने के लिए धूप में रख देते हैं। हल्दी शुभ मानी जाती है इसलिए साबुत हल्दी को मटके के मुँह के चारों ओर बाँध देते हैं। यह मटका दिन में साढ़े दस-बारह बजे तक धूप में रखा जाता है। जैसे ही दूध में उफान आता है और दूध-चावल मटके से बाहर गिरने लगता है तो “पोंगला-पोंगल, पोंगला-पोंगल” (खिचड़ी में उफान आ गया) के स्वर सुनाई देते हैं।

दूसरी ओर, गुजरात में पतंगों के बिना तो मकर-संक्रांति का जश्न अधूरा ही माना जाएगा। इस दिन आसमान की ओर यदि नज़र उठाएँ तो शायद हर आकार और रंग-रूप की पतंगें आकाश में लहराती हुई मिलें। प्रत्येक गुजराती चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या आयु का हो, पतंग उड़ाता है। हज़ारों-लाखों पतंगों से सूर्य भी ढक-सा जाता है।

कुमाऊँ में मकर संक्रांति को घुघुतिया भी कहते हैं। इस दिन आटे और गुड़ को गूँधकर पकवान बनाए जाते हैं। इन पकवानों को तरह-तरह के आकार दिए जाते हैं जैसे-डमरू, तलवार, दाड़िम का फूल आदि। पकवान को तलने के बाद एक माला में पिरोया जाता है। माला के बीच में संतरा और गन्ने की गंडेरी पिरोई जाती है। यह काम बच्चे बहुत रुचि और उत्साह के साथ करते हैं। सुबह बच्चों को माला दी जाती है। बहुत ठंड के कारण पक्षी पहाड़ों से चले जाते हैं। उन्हें बुलाने के लिए बच्चे इस माला से पकवान तोड़-तोड़कर पक्षियों को खिलाते हैं और गाते हैं-

कौआ आओ
घुघूत आओ
ले कौआ बड़ौ
म कै दे जा सोने का घड़ौ
खा लै पूरी
म कै दे जा सोने की छुरी

इसके साथ ही जिस चीज़ की कामना हो, वह माँगते हैं।

है न कितने अलग-अलग अंदाज़ मकर-संक्रांति को मनाने के? कहीं दूध, चावल और गुड़ की खीर बनती है तो कोई पाँच प्रकार के नए अनाज की खिचड़ी बनाता है। कहीं-कहीं लोगों का सैलाब नदी में स्नान के लिए उमड़ पड़ता है। लोग ठंड से ठिठुरते रहेंगे पर बऱ्ीले पानी में कम-से-कम एक डुबकी तो ज़रूर लगाएँगे। हाल यह होता है कि इन जगहों पर तिल रखने की भी जगह नहीं होती। तिल से याद आया! मकर संक्रांति के दिन पानी में तिल डालकर स्नान करना, तिल दान करना, आग में तिल डालना, तिल के पकवान बनाना विशेष महत्व रखता है। तुम्हारे घर या इलाके में इस त्योहार को कैसे मनाया जाता है? इसे खिचड़ी, पोंगल, मकर-संक्रांति या कुछ और कहा जाता है? या तुम फ़सलों से जुड़े कोई और त्योहार मनाती हो? यदि तुम आपस में बात करो तो तुम्हें यह जानकर हैरानी होगी कि कई बार एक ही इलाके में रहने वाले लोग भी इस त्योहार को अलग-अलग ढंग से मनाते हैं।

मौसम का अंदाज़

1. “खिचड़ी में अइसन जाड़ा हम पहिले कब्बो ना देखनीं।” यहाँ तुम ‘खिचड़ी’ से क्या मतलब निकाल रही हो?

2. क्या कभी ऐसा हो सकता है कि सूरज बिल्कुल ही न निकले?

अगर ऐसा हो तो …………………………………………………………
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अपने साथियों के साथ बातचीत करके लिखो।

3. बाहर देखने से समय का अंदाज़ा क्यों नहों हो पा रहा था?

जिनके पास घड़ी नहीं होती वे समय का अनुमान किस तरह से लगाते हैं?

तुम्हारी ज़ुबान

(क) “आज ई लोग के उठे के नईखे का?”
(ख) “जा भाग के देख केरा के पत्ता आइल की ना?”

इन वाक्यों को अपने घर की भाषा में लिखो।

भारत तेरे रंग अनेक

1. विविधता हमारे देश की पहचान है। ‘फ़सलों के त्योहार’ हमारे देश के विविध रंग-रूपों का एक उदाहरण है। नीचे विविधता के कुछ और उदाहरण दिए गए हैं। पाँच-पाँच बच्चों का समूह एक-एक उदाहरण ले और उस पर जानकारी इकट्टी करे। (जानकारी चित्र, फ़ोटोग्राफ़, कहानी, कविता, सूचनापरक सामग्री के रूप में हो सकती है।) हर समूह इस जानकारी को कक्षा में प्रस्तुत करे।

• भाषा $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ • कपड़े $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ • नया वर्ष
• भोजन $\qquad$ $\quad$ $\quad$ $\quad$ • लोक कला $\qquad$ $\qquad$ $\quad$ • लोक संगीत

2. तुम्हें कौन-सा त्योहार सबसे अच्छा लगता है और क्यों? इस दिन तुम्हारी दिनचर्या क्या रहती है?

अन्न के बारे में

(क) फ़सल के त्योहार पर ‘तिल’ का बहुत महत्व होता है। तिल का किन-किन रूपों में इस्तेमाल किया जाता है? पता करो।
(ख) क्या तुम जानती हो कि तिल से तेल बनता है? और किन चीज़ों से तेल बनता है और कैसे? हो सके तो तेल की दुकान में जाकर पूछो।

किसान और चीज़ों का सफ़र

किसान और खेती बहुत-से लोगों की जानी-पहचानी दुनिया का हिस्सा नहीं है। विशेष रूप से शहर के ज़्यादातर लोगों को यह अहसास नहीं है कि हमारी ज़िंदगी किस हद तक इनसे जुड़ी हुई है। देश के कई हिस्सों में आज किसानों को ज़िंदा रहने के लिए बहुत मेहनत और संघर्ष करना पड़ रहा है। अगर यह जानने की कोशिश करें कि हम दिनभर जो चीज़ें खाते हैं वे कहाँ से आती हैं-तो किसानों की हमारी ज़िदगी में भूमिका को हम समझ पाएँगे। आलू की पकौड़ी, बफ़्री और आइसक्रीम- इन तीन चीज़ों के बारे में नीचे दिए गए बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए जानकारी इकट्डी करो और ‘मेरी कहानी’ के रूप में उसे लिखो।

  • किन चीज़ों से बनती है?
  • इन चीज़ों का जन्म कहाँ होता है?
  • हम तक पहुँचने का उनका सफ़र क्या है?
  • किन-किन हाथों से होकर हम तक पहुँचती है?
  • इस पूरे सफ़र में किन लोगों की कितनी मेहनत लगती है?
  • इन लोगों में से किसको कितना मुनाफ़ा मिलता है?

अगले वर्ष कक्षा छह में सामाजिक एवं राजनैतिक जीवन के बारे में पढ़ोगी तो ऊपर लिखे सफ़र में शामिल लोगों की दिनचर्या पता करने का मौका भी मिलेगा।

खास पकवान

1. ‘गया’ शहर तिलकुट के लिए भी प्रसिद्ध है। हमारे देश में छोटी-बड़ी ऐसी कई जगहें हैं जो अपने खास पकवान के लिए मशहूर हैं। अपने परिवार के लोगों से पता करके उनके बारे में बताओ।

2. पिछले दो वर्षों में तुमने ‘काम वाले शब्दों’ के बारे में जाना।

इन शब्दों को क्रिया भी कहते हैं, क्योंकि क्रिया का संबंध कोई काम ‘करने’ से है। नीचे खिचड़ी बनाने की विधि दी गई है। इसमें बीच-बीच में कुछ क्रियाएँ छूट गई हैं। उचित क्रियाओं का प्रयोग करते हुए इसे पूरा करो।

छौंकना $\qquad$ पीसना $\qquad$ पकाना $\qquad$ धोना $\qquad$ परोसना $\qquad$ भूनना

बंगाली ‘खिचुरी’ (5 व्यक्तियों के लिए)

सामग्री $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ $\qquad$ मात्रा
अदरक ………………………………………. 20 ग्राम
लहसुन ………………………………………. 3 फाँकें
इलायची के दाने ………………………………………. 3 छोटी
दालचीनी ……………………………………….3 $2^{1 / 2}$ से.मी. का 1 टुकड़ा
पानी ………………………………………. 4 प्याले
मूँग दाल ………………………………………. $1 / 2$ प्याला
सरसों का तेल ………………………………………. 3 बड़े चम्मच
तेज पत्ते ………………………………………. 2
जीरा ………………………………………. $1 / 2$ छोटा चम्मच
याज़ बारीक कटा हुआ ………………………………………. 1 मँझोला
चावल धुले हुए ………………………………………. 1 प्याला
फूल गोभी बड़े-बड़े ट़कड़ों में कटी हुई ………………………………………. 200 ग्राम
आलू छीलकर चार-चार टुकड़ों में कटे हुए ………………………………………. 2
मटर के दाने ………………………………………. $1 / 2$ प्याला
धनिया पिसा हुआ ………………………………………. 1 बड़ा चम्मच
लाल मिर्च पिसी हुई ………………………………………. $1 / 2$ छोटा चम्मच
चीनी ………………………………………. 1 छोटा चम्मच
घी ………………………………………. 2 बड़े चम्मच
नमक और हल्दी …………………………….. अंदाज़ से

विधि

इलायची, दालचीनी और लौंग में थोड़ा-थोड़ा पानी (एक छोटा चम्मच) डालते हुए अदरक और लहसुन को इकट्डा पीसकर पेस्ट बनाओ। दाल को कड़ाही में डालो और मध्यम आँच पर सुनहरी भूरी होने तक ………. लो। अब दाल निकाल कर ………. लो। तेल को कुकर में डालकर गरम करो। तेल गरम हो जाने पर तेजपत्ते और जीरा डालो। जीरा जब चटकने लगे तो प्याज़ डालकर सुनहरा भूरा होने तक भूनो। अब अदरक-लहसुन का पेस्ट डालकर कुछ मिनट ……….। धुली हुई दाल, चावल और सब्ज़ी डालो और अच्छी तरह मिलाओ। शेष पानी (चार प्याले) डालकर एक बार चलाओ। कुकर बंद करो। तेज़ आँच पर पूर्ण प्रेशर आने दो। अब आँच कम करके चार मिनट तक ………. भाप निकल जाने पर कुकर खोलो, मसालों का पेस्ट मिलाओ। खिचुरी पर घी, हींग, जीरा, साबुत लाल मिर्च से ……….. कर ……….. गरमागरम।

छुटी के दिन घर में ऐसी खिचड़ी बनाने में बड़ों की मदद करो। खाने से जुड़ी कुछ अन्य क्रियाएँ भी सोचो।



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