अध्याय 03 आरंभिक नगर

पुराने भवन का संरक्षण

जसपाल और हरप्रीत अपने घर के पास की गली में क्रिकेट खेल रहे थे। उन्होंने देखा कि कुछ लोग उस खंडहर घर की तारीफ़ कर रहे थे, जिसे गली के बच्चे

भुतहा घर कहा करते थे।

एक ने कहा, ‘इसकी वास्तुकला को देखो!’

‘क्या आपने कहीं लकड़ी पर इतनी सुन्दर नक्काशी देखी है?’ दूसरी महिला ने कहा,

‘हमें मंत्री जी को पत्र लिखकर कहना चाहिए कि वह इस खूबसूरत घर को सुरक्षित रखने के लिए इसकी मरम्मत कराने की व्यवस्था करें।’

यह सब सुनकर जसपाल और हरत्रीत सोचने लगे, कि इस पुराने खंडहर से लोगों का इतना लगाव क्यों हो सकता है?

हड़प्पा की कहानी

अक्सर पुरानी इमारत अपनी कहानी बताती है। लगभग 150 साल पहले जब पंजाब में पहली बार रेलवे लाइनें बिछाई जा रही थीं, तो इस काम में जुटे इंजीनियरों को अचानक हड़प्पा पुरास्थल मिला, जो आधुनिक पाकिस्तान में है। उन्होंने सोचा कि यह एक ऐसा खंडहर है, जहाँ से अच्छी इंटें मिलेंगी। यह सोचकर वे हड़प्पा के खंडहरों से हजारों इंटे उखाड़ ले गए जिससे उन्होंने रेलवे लाइनें बिछाईं। इससे कई इमारतें पूरी तरह नष्ट हो गईं।

उसके बाद लगभग 80 साल पहले पुरातत्त्वविदों ने इस स्थल को ढूँढ़ा और तब पता चला कि यह खंडहर उपमहाद्वीप के सबसे पुराने शहरों में से एक है। चूँकि इस नगर की खोज सबसे पहले हुई थी, इसीलिए बाद में मिलने वाले इस तरह के सभी पुरास्थलों में जो इमारतें और चीज़ें मिलीं उन्हें हड़प्पा सभ्यता की इमारतें कहा गया। इन शहरों का निर्माण लगभग 4700 साल पहले हुआ था।

प्रायः पुरानी इमारतों को तोड़कर उनकी जगह नए भवन बनाए जाते हैं। क्या तुम्हें लगता है कि पुरानी इमारतों को सुरक्षित रखना चाहिए?

इन नगरों की विशेषता क्या थी?

इन नगरों में से कई को दो या उससे जज्यादा हिस्सों में विभाजित किया गया था। प्रायः पश्चिमी भाग छोटा था लेकिन ऊँचाई पर बना था और पूर्वी हिस्सा बड़ा था लेकिन यह निचले इलाके में था। ऊँचाई वाले भाग को पुरातत्वविदों ने नगर-दुर्ग कहा है और निचले हिस्से को निचला-नगर कहा है। दोनों हिस्सों की चारदीवारियाँ पकी इंटों की बनाई जाती थीं। इसकी इंटों इतनी अच्छी पकी थीं कि हजारों सालों बाद आज तक उनकी दीवारें खड़ी रहीं। दीवार बनाने के लिए ईंटों की चिनाई इस तरह करते थे जिससे कि दीवारें खूब मजजबूत रहें।

ये नगर आधुनिक पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांतों, भारत के गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब प्रांतों में मिले हैं। इन सभी स्थलों से पुरातत्वविदों को अनोखी वस्तुएँ मिली हैं : जैसे मिट्टी के लाल बर्तन जिन पर काले रंग के चित्र बने थे, पत्थर के बाट, मुहरें, मनके, ताँबे के उपकरण और पत्थर के लंबे ब्लेड आदि।

कुछ नगरों के नगर-दुर्ग में कुछ खास इमारतें बनाई गई थीं। मिसाल के तौर पर मोहनजोदड़ो में खास तालाब बनाया गया था, जिसे पुरातत्त्वविदों ने महान स्नानागार कहा है। इस तालाब को बनाने में ईंट और प्लास्टर का इस्तेमाल किया गया था। इसमें पानी का रिसाव रोकने के लिए प्लास्टर के ऊपर चारकोल की परत चढ़ाई गई थी। इस सरोवर में दो तरफ़ से उतरने के लिए सीढ़ियाँ बनाई गई थीं, और चारों ओर कमरे बनाए गए थे। इसमें भरने के लिए पानी कुएँ से निकाला जाता था, उपयोग के बाद इसे खाली कर दिया जाता था। शायद यहाँ विशिष्ट नागरिक विशेष अवसरों पर स्नान किया करते थे।

कालीबंगा और लोथल जैसे अन्य नगरों में अग्निकुण्ड मिले हैं, जहाँ संभवतः यज्ञ किए जाते होंगे। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो और लोथल जैसे कुछ नगरों में बड़े-बड़े भंडार-गृह मिले हैं।

महान स्नानागार

भवन, नाले और सड़कें

इन नगरों के घर आमतौर पर एक या दो मंज़िलें होते थे। घर के आंगन के चारों ओर कमरे बनाए जाते थे। अधिकांश घरों में एक अलग स्नानघर होता था, और कुछ घरों में कुएँ भी होते थे।

हड़प्पा के नगरों में ईंटों की चिनाई

कई नगरों में ढके हुए नाले थे। इन्हें सावधानी से सीधी लाइन में बनाया जाता था। हर नाली में हल्की ढलान होती थी ताकि पानी आसानी से बह सके। अक्सर घरों की नालियों को सड़कों की नालियों से जोड़ दिया जाता था, जो बाद में बड़े नालों में मिल जाती थीं। नालों के ढके होने के कारण इनमें जगह-जगह पर मेनहोल बनाए गए थे, जिनके जरिए इनकी देखभाल और सफ़ाई की जा सके। घर, नाले और सड़कों का निर्माण योजनाबद्ध तरीके से एक साथ ही किया जाता था।

यहाँ पर वर्णित घरों और पिछले अध्याय में वर्णित घरों में तुम्हें क्या अंतर दिखाई देता है? कोई दो अंतर बताओ।

नगरीय जीवन

हड़प्पा के नगरों में बड़ी हलचल रहा करती होगी। यहाँ पर ऐसे लोग रहते होंगे, जो नगर की खास इमारतें बनाने की योजना में जुटे रहते थे। ये संभवतः यहाँ के शासक थे। यह भी संभव है, कि ये शासक लोगों को भेज कर दूर-दूर से धातु, बहुमूल्य पत्थर और अन्य उपयोगी चीज़ें मँगवाते थे। शायद शासक लोग खूबसूरत मनकों तथा सोने-चाँदी से बने आभूषणों जैसी कीमती चीज़ों को अपने पास रखते होंगे। इन नगरों में लिपिक भी होते थे, जो मुहरों पर तो लिखते ही थे, और शायद अन्य चीज्ों पर भी लिखते होंगे, जो बच नहीं पाई हैं।

इसके अलावा नगरों में शिल्पकार स्त्री-पुरुष भी रहते थे जो अपने घरों या किसी उद्योग-स्थल पर तरह-तरह की चीज़ें बनाते होंगे। लोग लंबी यात्राएँ भी करते थे, और वहाँ से उपयोगी वस्तुएँ लाते थे, और साथ ही लाते थे सुदूर देशों की किस्से-कहानियाँ। मिट्टी से बने कई खिलौने भी मिले हैं, जिनसे बच्चे खेलते होंगे।

नगर में रहने वाले लोगों की एक सूची बनाओ।

क्या इनमें से कुछ ऐसे लोग हैं, जो मेहरगढ़ जैसे गाँवों में रहते थे?

सबसे ऊपरः मोहनजोदड़ो की एकसड़क और उसमें बना नाला। ऊपरः एक कुआँ। बाईं ओर नीचे: हड़प्पा की एक मुहर। इस मुहर के ऊपर के चिह्न एक खास लिपि में हैं। उपमहाद्वीप में पाए गए लेखन का यह प्राचीनतम उदाहरण है। विद्वानों ने इसे पढ़ने की कोशिश की है, लेकिन अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि इसका अर्थ क्या है। दाईं ओर नीचेः पकी मिट्टी के खिलौने।

ऊपरः पत्थर के बाट देखो। कितने ध्यान से और उपयुक्त तरीके से इन बाटों को बनाया गया है। इन्हें चर्ट पत्थर से बनाया गया था। इन्हें शायद बहुमूल्य पत्थर और धातुओं को तौलने के लिए बनाया गया होगा।

मध्य में बाएँ: मनके। इनमें से कई कार्नीलियन पत्थरों से बनाए गए थे। पत्थरों को काट और तराशकर मनके बनाए गए। इनके बीच छेद किए गए थे ताकि धागा डालकर माला बनाई जाए।

मध्य में दाएँ: पत्थर के धारदार फलक

नीचे दाएँ: कढ़ाईदार वस्त्र| एक महत्वपूर्ण व्यक्ति की पत्थर से बनी मूर्ति जो मोहनजोदड़ो से मिली थी। इसमें उसे कढ़ाईदार वस्त्र पहने दिखाया गया है।

नगर और नए शिल्प

आओ अब कुछ ऐसी चीजों के बारे में अध्ययन करें जो हड़प्पा के नगरों से प्राप्त हुई हैं। पुरातत्त्वविदों को जो चीज़ें वहाँ मिली हैं, उनमें अधिकतर पत्थर, शंख, ताँबे, काँसे, सोने और चाँदी जैसी धातुओं से बनाई गई थीं। ताँबे और काँसे से औज़ार, हथियार, गहने और बर्तन बनाए जाते थे। सोने और चाँदी से गहने और बर्तन बनाए जाते थे।

यहाँ मिली सबसे आकर्षक वस्तुओं में मनके, बाट और फलक हैं।

हड़प्पा सभ्यता के लोग पत्थर की मुहरें बनाते थे। इन आयताकार (पृष्ठ 25) मुहरों पर सामान्यतः जानवरों के चित्र मिलते हैं। हड़प्पा सभ्यता के लोग काले रंग से डिज़ाइन किए हुए खूबसूरत लाल मिट्टी के बर्तन बनाते थे। देखो पृष्ठ 6।

अध्याय 2 में तुमने जिन गाँवों के बारे में पढ़ा क्या वहाँ भी धातु का उपयोग होता था?

क्या वे पत्थर के बाट बनाते थे?

संभवतः 7000 साल पहले मेहरगढ़ में कपास की खेती होती थी। मोहनजोदड़ो से कपड़े के टुकड़ों के अवशेष चाँदी के एक फूलदान के ढक्कन तथा कुछ अन्य ताँबे की वस्तुओं से चिपके हुए मिले हैं। पकी मिट्टी तथा फ़ेयॅन्स से बनी तकलियाँ सूत कताई का संकेत देती हैं।

इनमें से अधिकांश वस्तुओं का निर्माण विशेषज्ञों ने किया था। विशेषज्ञ उसे कहते हैं, जो किसी खास चीज़ को बनाने के लिए खास प्रशिक्षण लेता है जैसे - पत्थर तराशना, मनके चमकाना या फिर मुहरों पर पच्चीकारी करना, आदि। पृष्ठ 26 पर चित्र देखो कि मूर्ति का चेहरा कितने आकर्षक ढंग से बनाया गया और उसकी दाढ़ी कितनी अच्छी तरह दर्शाई गई है। यह किसी विशेषज्ञ मूर्तिकार का ही काम हो सकता है।

हर व्यक्ति विशेषज्ञ नहीं हो सकता था। हमें यह पता नहीं है कि क्या सिर्फ पुरुष ही ऐसे कामों में प्रशिक्षण हासिल करते थे, या फिर केवल महिलाएँ ही। शायद कुछ महिलाएँ और पुरुष दोनों ही इस काम में दक्ष थे।

फ़ेयॅन्स

पत्थर और शंख प्राकृतिक तौर पर पाए जाते हैं, लेकिन फ़ेयॅन्स को कृत्रिम रूप से तैयार किया जाता है। बालू या स्फ़टिक पत्थरों के चूर्ण को गोंद में मिलाकर उनसे वस्तुएँ बनाई जाती थीं। उसके बाद उन वस्तुओं पर एक चिकनी परत चढ़ाई जाती थी। इस चिकनी परत के रंग प्रायः नीले या हल्के समुद्री हरे होते थे।

फ़ेयॅन्स से मनके, चूड़ियाँ, बाले और छोटे बर्तन बनाए जाते थे।

कच्चे माल की खोज में

कच्चा माल उन पदार्थों को कहते हैं जो या तो प्राकृतिक रूप से मिलते हैं या फिर किसान या पशुपालक उनका उत्पादन करते हैं जैसे लकड़ी या धातुओं के अयस्क प्राकृतिक रूप से उपलब्ध कच्चे माल हैं। इनसे फिर कई तरह की चीज़ें बनाई जाती हैं। मिसाल के तौर पर किसानों द्वारा पैदा किए गए कपास को कच्चा माल कहते हैं, जिससे बाद में कताई-बुनाई करके कपड़ा तैयार किया जाता है। हड़प्पा में लोगों को कई चीज़ें वहीं मिलती थीं, लेकिन ताँबा, लोहा, सोना, चाँदी और बहुमूल्य पत्थरों जैसे पदार्थों का वे दूर-दूर से आयात करते थे।

चीजों को एक जगह से दूसरी जगह कैसे ले जाया जाता था? इन चित्रों को देखो। एक खिलौना है, और दूसरी एक मुहर।

क्या तुम बता सकते हो, कि हड़प्पा के लोग यातायात के लिए किन साधनों का प्रयोग करते थे?

पिछले अध्यायों में क्या तुमको पहिए वाले वाहनों की जानकारी दी गई है?

हड़प्पा के लोगताँबे का आयात सम्भवतः आज केराजस्थान से करते थे। यहाँ तक कि पश्चिम एशियाई देश ओमान से भी ताँबे का आयात किया जाता था। काँसा बनाने के लिए ताँबे के साथ मिलाई जाने वाली धातु टिन का आयात आधुनिक ईरान और अफ़गानिस्तान से किया जाता था। सोने का आयात आधुनिक कर्नाटक और बहुमूल्य पत्थर का आयात गुजरात, ईरान और अफ़गानिस्तान से किया जाता था।

नगरों में रहने वालों के लिए भोजन

लोग नगरों के अलावा गाँवों में भी रहते थे। वे अनाज उगाते थे और जानवर पालते थे। किसान और चरवाहे ही शहरों में रहने वाले शासकों, लेखकों और दस्तकारों को खाने के सामान देते थे। पौधों के अवशेषों से पता चलता है कि हड़प्पा के लोग गेहूँ, जौ, दालें, मटर, धान, तिल और सरसों उगाते थे।

ज़मीन की जुताई के लिए हल का प्रयोग एक नई बात थी। हड़प्पा काल के हल तो नहीं बच पाए हैं, क्योंकि वे प्रायः लकड़ी से बनाए जाते थे, लेकिन हल के आकार के खिलौने मिले हैं। इस क्षेत्र में बारिश कम होती है, इसलिए सिंचाई के लिए लोगों ने कुछ तरीके अपनाए होंगे। संभवतः पानी का संचय किया जाता होगा और जरूरत पड़ने पर उससे फ़सलों की सिंचाई की जाती होगी।

बच्चों का खिलौना-हल। आज हल चलाने वाले ज़्यादातर किसान पुरुष होते हैं। हमें ज्ञात नहीं है कि क्या हड़प्पा में भी यही प्रथा थी।

हड़प्पा के लोग गाय, भैंस, भेड़ और बकरियाँ पालते थे। बस्तियों के आस-पास तालाब और चारागाह होते थे। लेकिन सूखे महीनों में मवेशियों के झुंडों को चारा-पानी की तलाश में दूर-दूर तक ले जाया जाता था। वे बेर जैसे फलों को इकट्ठा करते थे, मछलियाँ पकड़ते थे, और हिरण जैसे जानवरों का शिकार भी करते थे।

गुजरात में हड़प्पाकालीन नगर का सूक्ष्म-निरीक्षण

कच्छ के इलाके में खदिर बेत के किनारे धौलावीरा नगर बसा था। वहाँ साफ़ पानी मिलता था और जमीन उपजाऊ थी। जहाँ हड़प्पा सभ्यता के कई नगर दो भागों में विभक्त थे वहीं धौलावीरा नगर को तीन भागों में बाँटा गया था। इसके हर हिस्से के चारों ओर पत्थर की ऊँची-ऊँची दीवार बनाई गई थी। इसके अंदर जाने के लिए बड़े-बड़े प्रवेश-द्वार थे। इस नगर में एक खुला मैदान भी था, जाँँ सार्वजनिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते थे। यहाँ मिले कुछ अवशेषों में हड़प्पा लिपि के बड़े-बड़े अक्षरों को पत्थरों में खुदा पाया गया है। इन अभिलेखों को संभवतः लकड़ी में जड़ा गया था। यह एक अनोखा अवशेष है, क्योंकि आमतौर पर हड़प्पा के लेख मुहर जैसी छोटी वस्तुओं पर पाए जाते हैं।

गुजरात की खम्भात की खाड़ी में मिलने वाली साबरमती की एक उपनदी के किनारे बसा लोथल नगर ऐसे स्थान पर बसा था, जहाँ कीमती पत्थर जैसा कच्चा माल आसानी से मिल जाता था। यह पत्थरों, शंखों और धातुओं से बनाई गई चीज़ों का एक महत्वपूर्ण केंद्र था। इस नगर में एक भंडार गृह भी था। इस भंडार गृह से कई मुहों और मुद्रांकन या मुहखबंदी (गीली मिट्टी पर दबाने से बनी उनकी छाप) मिले हैं।

लोथल का बन्दरगाह।

यह बड़ा तालाब लोथल का बन्दरगाह रहा होगा, जहाँ समुद्र के रास्ते आने वाली नावें रुकती थीं। संभवतः यहाँ पर माल चढ़ाया-उतारा जाता होगा।

यहाँ पर एक इमारत मिली है, जहाँ संभवतः मनके बनाने का काम होता था। पत्थर के टुकड़े, अधबने मनके, मनके बनाने वाले उपकरण और तैयार मनके भी यहाँ मिले हैं।

मुद्रा (मुहर) और मुद्रांकन या मुहरबंदी

मुहरों का प्रयोग सामान से भरे उन डिब्बों या थैलों को चिह्नित करने के लिए किया जाता होगा, जिन्हें एक जगह से दूसरी जगह भेजा जाता था। थैले को बंद करने के बाद उनके मुहानों पर गीली मिट्टी पोत कर उन पर मुहर लगाई जाती थी। मुहर की छाप को मुहरबन्दी कहते हैं।

अगर यह छाप टूटी हुई नहीं होती थी, तो यह साबित हो जाता था, कि सामान के साथ छेड़-छाड़ नहीं हुई है।

आज भी मुहर का प्रयोग होता है। पता लगाओ कि मुहरों का उपयोग किसलिए किया जाता है।

सभ्यता के अंत का रहस्य

लगभग 3900 साल पहले एक बड़ा बदलाव देखने को मिलता है। अचानक लोगों ने इन नगरों को छोड़ दिया। लेखन, मुहर और बाटों का प्रयोग बंद हो गया। दूर-दूर से कच्चे माल का आयात काफी कम हो गया। मोहनजोदड़ो में सड़कों पर कचरे के ढेर बनने लगे। जलनिकास प्रणाली नष्ट हो गई और सड़कों पर ही झुग्गीनुमा घर बनाए जाने लगे।

यह सब क्यों हुआ? कुछ पता नहीं। कुछ विद्वानों का कहना है, कि नदियाँ सूख गई थीं। अन्य का कहना है, कि जंगलों का विनाश हो गया था। इसका कारण ये हो सकता है, कि इंटें पकाने के लिए ईंधन की जरूरत पड़ती थी। इसके अलावा मवेशियों के बड़े-बड़े झुंडों से चारागाह और घास वाले मैदान समाप्त हो गए होंगे। कुछ इलाकों में बाढ़ आ गई। लेकिन इन कारणों से यह स्पष्ट नहीं हो पाता है कि सभी नगरों का अंत कैसे हो गया। क्योंकि बाढ़ और नदियों के सूखने का असर कुछ ही इलाकों में हुआ होगा।

ऐसा लगता है, कि शासकों का नियंत्रण समाप्त हो गया। जो भी हुआ हो, परिवर्तन का असर बिल्कुल साफ़ दिखाई देता है। आधुनिक पाकिस्तान के सिंध और पंजाब की बस्तियाँ उजड़ गई थीं। कई लोग पूर्व और दक्षिण के इलाकों में नई और छोटी बस्तियों में जाकर बस गए।

इसके लगभग 1400 साल बाद नए नगरों का विकास हुआ। इनके बारे में तुम अध्याय 5 और 8 में पढ़ोगे।

कल्पना करो

तुम अपने माता-पिता के साथ 4000 साल पहले लोथल से मोहनजोदड़ो की यात्रा कर रहे हो। यह बताओ कि तुम यात्रा कैसे करोगे, तुम्होरे माता-पिता यात्रा के लिए अपने साथ क्या-क्या ले जाएँगे? और मोहनजोदड़ो में तुम क्या देखोगे?

उपयोगी शब्द

नगर
नगरदुर्ग लिपिक
मुहर
शिल्पकार
धातु विशेषज्ञ
कच्चा माल
हल
सिंचाई

आओ याद करें

1. पुरातत्त्वविदों को कैसे ज्ञात हुआ कि हड़प्पा सभ्यता के दौरान कपड़े का उपयोग होता था?

2. निम्नलिखित का सुमेल करो

ताँबा $ \qquad $ गुजरात
सोना $ \qquad $ अफ़गानिस्तान
टिन $ \qquad $ राजस्थान
बहुमूल्य पत्थर $ \qquad $ कर्नाटक

3. हड़प्पा के लोगों के लिए धातुएँ, लेखन, पहिया और हल क्यों महत्वपूर्ण थे?

आओ चर्चा करें

4. इस अध्याय में पकी मिट्टी (टेराकोटा) से बने सभी खिलौनों की सूची बनाओ। इनमें से कौन-से खिलौने बच्चों को ज्यादा पसंद आए होंगे?

5. हड़प्पा के लोगों की भोजन सामग्री की सूची बनाओ। आज इनमें से तुम क्या-क्या खाते हो? निशान लगाकर बताओ।

6. हड़प्पा के किसानों और पशुपालकों का जीवन क्या उन किसानों से भिन्न था, जिनके बारे में तुमने पिछले अध्याय में पढ़ा है? अपने उत्तर में इसका कारण बताओ।

आओ करके देखें

7. अपने शहर या गाँव की तीन महत्वपूर्ण इमारतों का ब्यौरा दो। क्या वे बस्ती के महत्वपूर्ण इलाके में बनी हैं। इन इमारतों का उपयोग किसलिए किया जाता है?

8. तुम्हारे इलाके में क्या कोई पुरानी इमारत है? यह पता करो कि वह कितनी पुरानी है और उनकी देखभाल कौन करता है।

कुछ महत्वपूर्ण तिथियाँ

  • मेहरगढ़ में कपास की खेती (लगभग 7000 साल पहले)

  • नगरों का आरंभ (लगभग 4700 साल पहले)

  • हड़प्पा के नगरों के अंत की शुरुआत (लगभग 3900 साल पहले)

  • अन्य नगरों का विकास (लगभग 2500 साल पहले)



sathee Ask SATHEE

Welcome to SATHEE !
Select from 'Menu' to explore our services, or ask SATHEE to get started. Let's embark on this journey of growth together! 🌐📚🚀🎓

I'm relatively new and can sometimes make mistakes.
If you notice any error, such as an incorrect solution, please use the thumbs down icon to aid my learning.
To begin your journey now, click on

Please select your preferred language
कृपया अपनी पसंदीदा भाषा चुनें