अध्याय 01 महाभारत कथा

महाभारत की कथा महर्षि पराशर के कीर्तिमान पुत्र वेद व्यास की देन है। व्यास जी ने महाभारत की यह कथा सबसे पहले अपने पुत्र शुकदेव को कंठस्थ कराई थी और बाद में अपने दूसरे शिष्यों को। मानव-जाति में महाभारत की कथा का प्रसार महर्षि वैशंपायन के द्वारा हुआ। वैशंपायन व्यास जी के प्रमुख शिष्य थे। ऐसा माना जाता है कि महाराजा परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने एक बड़ा यज्ञ किया। इस महायज्ञ में सुप्रसिद्ध पौराणिक सूत जी भी मौजूद थे। सूत जी ने समस्त ऋषियों की एक सभा बुलाई। महर्षि शौनक इस सभा के अध्यक्ष हुए।

सूत जी ने ऋषियों की सभा में महाभारत की कथा प्रारंभ की कि महाराजा शांतनु के बाद उनके पुत्र चित्रांगद हस्तिनापुर की गद्दी पर बैठे। उनकी अकाल मृत्यु हो जाने पर उनके भाई विचित्रवीर्य राजा हुए। उनके दो पुत्र हुए-धृतराष्ट्र और पांडु। बड़े बेटे धृतराष्ट्र जन्म से ही अंधे थे, इसलिए उस समय की नीति के अनुसार पांडु को गद्दी पर बैठाया गया।

पांडु ने कई वर्षों तक राज्य किया। उनकी दो रानियाँ थीं-कुंती और माद्री। कुछ समय राज्य करने के बाद पांडु अपने किसी अपराध के प्रायश्चित के लिए तपस्या करने जंगल में गए। उनकी दोनों रानियाँ भी उनके साथ ही गईं। वनवास के समय कुंती और माद्री ने पाँच पांडवों को जन्म दिया। कुछ समय बाद पांडु की मृत्यु हो गई। पाँचों अनाथ बच्चों का वन के ऋषि-मुनियों ने पालन-पोषण किया और पढ़ायालिखाया। जब युधिष्ठिर सोलह वर्ष के हुए, तो ऋषियों ने पाँचों कुमारों को हस्तिनापुर ले जाकर पितामह भीष्म को सौंप दिया।

पाँचों पांडव बुद्धि से तेज़ और शरीर से बली थे। उनकी प्रखर बुद्धि और मधुर स्वभाव ने सबको मोह लिया था। यह देखकर धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव उनसे जलने लगे और उन्होंने पांडवों को तरह-तरह से कष्ट पहुँचाना शुरू किया।

दिन-पर-दिन कौरवों और पांडवों के बीच वैरभाव बढ़ता गया। अंत में पितामह भीष्म ने दोनों को किसी तरह समझाया और उनके बीच संधि कराई। भीष्म के आदेशानुसार कुरु-राज्य के दो हिस्से किए गए। कौरव हस्तिनापुर में ही राज करते रहे और पांडवों को एक अलग राज्य दे दिया गया, जो आगे चलकर इंद्रप्रस्थ के नाम से मशहूर हुआ। इस प्रकार कुछ दिन शांति रही।

उन दिनों राजा लोगों में चौसर खेलने का आम रिवाज था। राज्य तक की बाज़ियाँ लगा दी जाती थीं। इस रिवाज के मुताबिक एक बार पांडवों और कौरवों ने चौपड़ खेला। कौरवों की तरफ़ से कुटिल शकुनि खेला। उसने युधिष्ठिर को हरा दिया। इसके फलस्वरूप पांडवों का राज्य छिन गया और उनको तेरह वर्ष का वनवास भोगना पड़ा। उसमें एक शर्त यह भी थी कि बारह वर्ष के वनवास के बाद एक वर्ष अज्ञातवास करना होगा। उसके बाद उनका राज्य उन्हें लौटा दिया जाएगा।

द्रौपदी के साथ पाँचों पांडव बारह वर्ष वनवास और एक वर्ष अज्ञातवास में बिताकर वापस लौटे, पर लालची दुर्योधन ने लिया हुआ राज्य वापस करने से इंकार कर दिया। अतः पांडवों को अपने राज्य के लिए लड़ना पड़ा। युद्ध में सारे कौरव मारे गए, तब पांडव उस विशाल साम्राज्य के स्वामी हुए।

इसके बाद छत्तीस वर्ष तक पांडवों ने राज्य किया और फिर अपने पोते परीक्षित को राज्य देकर द्रौपदी के साथ तपस्या करने हिमालय चले गए।

संक्षेप में यही महाभारत की कथा है।



विषयसूची

sathee Ask SATHEE

Welcome to SATHEE !
Select from 'Menu' to explore our services, or ask SATHEE to get started. Let's embark on this journey of growth together! 🌐📚🚀🎓

I'm relatively new and can sometimes make mistakes.
If you notice any error, such as an incorrect solution, please use the thumbs down icon to aid my learning.
To begin your journey now, click on

Please select your preferred language
कृपया अपनी पसंदीदा भाषा चुनें