अध्याय 22 अज्ञातवास

सब अपना-अपना भेष बदलकर राजा विराट के यहाँ चाकरी करने गए, तो विराट ने उन्हें अपना नौकर बनाकर रखना उचित न समझा। हर एक के बारे में उनका यही विचार था कि के यहाँ चाकरी करने गए, तो विराट ने उन्हें अपना नौकर बनाकर रखना उचित न समझा। हर एक के बारे में उनका यही विचार था कि के यहाँ चाकरी करने गए, तो विराट ने उन्हें अपना नौकर बनाकर रखना उचित न समझा। हर एक के बारे में उनका यही विचार था कि ये तो राज करने योग्य प्रतीत होते हैं। मन में शंका तो हुई, पर पांडवों के बहुत आग्रह करने और विश्वास दिलाने पर राजा ने उन्हें अपनी सेवा में ले लिया। पांडव अपनी-अपनी पसंद के कामों पर नियुक्त कर लिए गए। युधिष्ठिर ‘कंक’ के नाम से विराट के दरबारी बन गए और राजा के साथ चौपड़ खेलकर दिन बिताने लगे। भीमसेन ‘वल्लभ’ के नाम से रसोइयों का मुखिया बनकर रहने लगा। वह कभी-कभी मशहूर पहलवानों से कुश्ती लड़कर या हिंस्र जंतुओं को वश में करके राजा का दिल बहलाया करता था। अर्जुन स्त्री के वेश में ‘बृहन्नला’ के नाम से रनवास की स्त्रियों, खासकर विराट की कन्या उत्तरा और उसकी सहेलियों एवं दास-दासियों को नाच और गाना-बजाना सिखलाने लगा। नकुल ‘ग्रंथिक’ के नाम से घोड़ों को साधने, उनकी बीमारियों का इलाज करने और उनकी देखभाल करने में अपनी चतुरता का परिचय देते हुए राजा को खुश करता रहा। सहदेव ‘तंतिपाल’ के रूप में गाय-बैलों की देखभाल करता रहा। पांचाल-राजा की पुत्री द्रौपदी, जिसकी सेवा-टहल के लिए कितनी ही दासियाँ रहती थीं, अब अपने पतियों की प्रतिज्ञा पूरी करने हेतु दूसरी रानी की आज्ञाकारिणी दासी बन गई। विराट की पत्नी सुदेष्णा की सेवा-सुश्रूषा करती हुई रनवास में ‘सैरंध्री’ के नाम से काम करने लगी।

रानी सुदेष्णा का भाई कीचक बड़ा ही बलिष्ठ और प्रतापी वीर था। मत्स्य देश की सेना का वही नायक बना हुआ था और अपने कुल के लोगों को साथ लेकर कीचक ने बूढ़े विराटराज की शक्ति और सत्ता में खूब वृद्धि कर दी थी। कीचक की धाक लोगों पर जमी हुई थी। लोग कहा करते थे कि मत्स्य देश का राजा तो कीचक है, विराट नहीं। यहाँ तक कि स्वयं विराट भी कीचक से डरा करते थे और उसका कहा मानते थे। जब से पांडवों के बारह बरस के वनवास की अवधि पूरी हुई थी, तभी से दुर्योधन के गुप्तचरों ने पांडवों की खोज करनी शुरू कर दी थी। इन्हों दिनों हस्तिनापुर में कीचक के मारे जाने की खबर फैल गई। यह खबर पाते ही दुर्योधन का माथा ठनका कि हो-न-हो कीचक का वध भीम ने ही किया होगा। यह दुर्योधन का अनुमान था। उसने अपना यह विचार राजसभा में प्रकट करते हुए कहा- “मेरा खयाल है कि पांडव विराट के नगर में ही छिपे हुए हैं। मुझे तो यही ठीक लगता है कि मत्स्य देश पर हमला कर देना चाहिए। यदि पांडव वहाँ होंगे, तो निश्चय ही विराट की तरफ़ से हमसे लड़ने आएँगे। यदि हम अज्ञातवास की अवधि पूरी होने से पहले ही उनका पता लगा लेंगे, तो शर्त के अनुसार उन्हें बारह बरस के लिए फिर से वनवास करना होगा। यदि पांडव विराट के यहाँ न भी हुए, तो भी हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा। हमारे तो दोनों हाथों में लड्डू हैं।”

दुर्योधन की यह बात सुनकर त्रिगर्त देश का राजा सुशर्मा उठा और बोला- “राजन्! मत्स्य देश के राजा विराट मेरे शत्रु हैं। कीचक ने भी मुझे बहुत तंग किया था। इस अवसर का लाभ उठाकर मैं उससे अपना पुराना बैर भी चुका लेना चाहता हूँ।”

कर्ण ने सुशर्मा की बात का अनुमोदन किया। फिर सबकी राय से यह निश्चय किया गया कि विराट के राज्य पर राजा सुशर्मा दक्षिण की ओर से हमला करे और जब विराट अपनी सेना लेकर उसका मुकाबला करने जाए, तब ठीक इसी मौके पर उत्तर की ओर से दुर्योधन अपनी सेना लेकर अचानक विराट नगर पर छापा मार दे। इस योजना के अनुसार राजा सुशर्मा ने दक्षिण की ओर से मत्स्य देश पर आक्रमण कर दिया। मत्स्य देश के दक्षिणी हिस्से पर त्रिगर्तराज की सेना छा गई और गायों के झुंड-के-झुंड सुशर्मा की सेना के कब्ज़े में आ गए। कंक (युधिष्ठिर) ने विराट को सांत्वना देते हुए कहा- “राजन् चिंता न करें। मैं भी अस्त्र-विद्या सीखा हुआ हूँ। मैंने सोचा है कि आपके रसोइये वल्लभ, अश्वपाल ग्रंथिक और तंतिपाल भी बड़े कुशल योद्धा हैं। मैं कवच पहनकर रथारूढ़ होकर युद्धक्षेत्र में जाऊँगा। आप भी उनको आज्ञा दें कि रथारूढ़ होकर मेरे साथ चलें। सबके लिए रथ और शस्त्रास्त्र की आज्ञा दीजिए।”

यह सुनकर विराट बड़े प्रसन्न हो गए। उनकी आज्ञानुसार चारों वीरों के लिए रथ तैयार होकर आ खड़े हुए। अर्जुन को छोड़कर बाकी चारों पांडव उन पर चढ़कर विराट और उनकी सेना समेत सुशर्मा से लड़ने चले गए। राजा सुशर्मा और विराट की सेनाओं में घोर युद्ध हुआ। जब राजा विराट बंदी बना लिए गए, तो उनकी सारी सेना तितर-बितर हो गई। सैनिक भागने लगे। यह हाल देखकर युधिष्ठिर भीमसेन से बोले- “भीम! विराट को अभी छुड़ाकर लाना होगा और सुशर्मा का दर्प चूर करना होगा। यदि तुम सदा की भाँति सिंह की-सी गर्जना करने लग जाओगे, तो शत्रु तुम्हें तुरंत पहचान लेंगे। इसलिए सामान्य लोगों की भाँति रथ पर बैठकर और धनुष-बाण के सहारे लड़ना ठीक होगा।”

आज्ञा मानकर भीमसेन रथ पर से ही सुशर्मा की सेना पर बाणों की बौछार करने लगा। थोड़ी ही देर की लड़ाई के बाद भीम ने विराट को छुड़ा लिया और सुशर्मा को कैद कर लिया। सुशर्मा की पराजय की खबर जब विराट नगर पहुँची, तो नगरवालों ने नगर को खूब सजाकर आनंद मनाया और विजयी राजा विराट के स्वागत के लिए शहर के बाहर चल पड़े। इधर नगर के लोग विजय की खुशियाँ मना रहे थे और राजा की बाट जोह रहे थे, तो उधर उत्तर की ओर से दुर्योधन ने तबाही मचा दी।

राजकुमार उत्तर तो बिलकुल डर गया था और काँप रहा था। उसने बृहन्नला से कहा- “बृहन्नला, मुझे बचाओ इस संकट से! मैं तुम्हारा बड़ा उपकार मानूँगा।”

इस प्रकार राजकुमार उत्तर को भयभीत और घबराया हुआ जानकर बृहन्नला ने उसे समझाते हुए और उसका हौसला बढ़ाते हुए कहा- “राजकुमार, घबराओ नहीं। तुम तो सिर्फ़ घोड़ों की रास सँभाल लो।” इतना कहकर अर्जुन ने उत्तर को सारथी के स्थान पर बैठाकर रास उसके हाथ में पकड़ा दी। राजकुमार ने रास पकड़ ली। आचार्य द्रोण यह सब दूर से देख रहे थे। उनको विश्वास हो रहा था कि यह अर्जुन ही है। उन्होंने यह बात इशारे से भीष्म को जता दी। यह चर्चा सुनकर दुर्योधन कर्ण से बोला- “हमें इस बात से क्या मतलब कि यह औरत के भेष में कौन है! मान लें कि यह अर्जुन ही है। फिर भी हमारा तो उससे काम ही बनता है। शर्त के अनुसार उन्हें और बारह बरस का वनवास भुगतना पड़ेगा।”

अर्जुन ने कौरव-सेना के सामने रथ ला खड़ा किया। उसने गांडीव सँभाल लिया और उस पर डोरी चढ़ाकर तीन बार ज़ोर से टंकार की। कौरव-सेना टंकार-ध्वनि से सचेत होने भी नहीं पाई थी कि अर्जुन ने खड़े होकर शंख की ध्वनि की, जिससे कौरव-सेना थर्रा उठी। उसमें खलबली मच गई कि पांडव आ गए।



विषयसूची

sathee Ask SATHEE

Welcome to SATHEE !
Select from 'Menu' to explore our services, or ask SATHEE to get started. Let's embark on this journey of growth together! 🌐📚🚀🎓

I'm relatively new and can sometimes make mistakes.
If you notice any error, such as an incorrect solution, please use the thumbs down icon to aid my learning.
To begin your journey now, click on

Please select your preferred language
कृपया अपनी पसंदीदा भाषा चुनें