अध्याय 09 विश्वेश्वरैया

आकाश में अँधेरा छाया हुआ था। बादल आकाश में मँडराते हुए एक-दूसरे से टकरा जाते तो बिजली चमक उठती और गर्जन होता। फिर मूसलाधार वर्षा होने लगी। कुछ ही देर में गड्ढे और नालियाँ पानी से भर गई।

छः वर्षीय विश्वेश्वर्या अपने घर के बरामदे में खड़ा इस दृश्य को निहार रहा था। गली में पंक्तियों में खड़े पेड़ बारिश में धुल जाने के कारण साफ व सुंदर दिखाई दे रहे थे। पत्तियों और टहनियों से पानी की बूँदें टप-टप गिर रही थीं। थोड़ी ही दूरी पर हरे-भरे धान के खेत लहलहा रहे थे।

जहाँ विश्वेश्वरैया खड़ा था वहीं निकट की नाली का पानी उमड़-घुमड़ रहा था। उसमें भँवर भी उठ रहे थे। उसने एक जलप्रपात का रूप धारण कर लिया था। वह एक बहुत ही बड़े पत्थर को अपने साथ बहा कर ले जा रहा था जिससे उसकी शक्ति का प्रदर्शन होता था। विश्वेश्वरैया ने हवा और सूर्य की शक्ति को भी देखा था। सामूहिक रूप से वे प्रकृति की असीम शक्ति की ओर संकेत कर रहे थे। “प्रकृति शक्ति है। मुझे प्रकृति के बारे में सब कुछ जानना चाहिए’ वह छोटा-सा लड़का बुदबुदाया।

फिर उसने थोड़ी दूरी पर, निर्भीकता से मूसलाधार वर्षा में खड़ी एक आकृति को ताड़पत्र की छतररी हाथ में लिए देखा। वह उसे तुरंत पहचान गया। उसके कपड़े फटे हुए थे। वह कमज़ोर और भूखी लग रही थी। वह एक झोंपड़ी में रहती थी। उसके बच्चे कभी स्कूल नहीं जाते। वह गरीब थी। विश्वेश्वरैया ने सोचा ‘वह इतनी गरीब क्यों है?’

उन्होंने बड़ी गंभीरता से प्रकृति और गरीबी के कारण के बारे में जानने का प्रयास किया।

वह परिवार के बड़ों से इन बातों का उत्तर जानना चाहते थे। वह अपने अध्यापकों से भी ज़िरह करते। वह उनसे प्रकृति के बारे में पूछते- ऊर्जा के कौन से प्रचलित स्रोत हैं? कैसे इस ऊर्जा को पकड़ कर इस्तेमाल में लाया जा सकता है?

वह यह भी पूछते कि आखिर इतने लोग गरीब क्यों हैं? नौकरानी फटी साड़ी क्यों पहनती है? वह झोंपड़ी में क्यों रहती है? क्या उसे अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहिए?

धीरे-धीरे इस लड़के को प्रकृति और जीवन के बारे में अंतर्दृष्टि प्राप्त होने लगी। उन्हें महसूस हुआ कि ज्ञान असीमित है। उसे बिना रुके, सीखते रहना होगा। तभी उन्हें उन प्रश्नों के उत्तर मिल सकते हैं जो उन्होंने उठाए थे। उन्होंने निश्चय किया कि वह जीवनपर्यंत तक छात्र बने रहेंगे क्योंकि बहुत कुछ सीखना बाकी है। इसी संकल्प में उनकी महानता की कुंजी थी।

मोक्षगुंडम विश्वेश्वैरैया का जन्म मैसूर (जो अब कर्नाटक में है) के मुद्देनाहल्ली नामक स्थान पर 15 सितंबर 1861 को हुआ था। उनके पिता वैद्य थे। वर्षों पहले उनके पूर्वज आंध्र प्रदेश के मोक्षगुंडम से यहाँ आए और मैसूर में बस गए थे।

दो वर्ष की आयु से ही उनका परिचय रामायण, महाभारत और पंचतंत्र की कहानियों से हो गया था। ये कहानियाँ हर रात घर की वृद्ध महिलाएँ उन्हें सुनाती थीं। कहानियाँ शिक्षाप्रद व मनोरंजक थीं। इन कहानियों से विश्वेश्वरैया ने ईमानदारी, दया और अनुशासन जैसे मूल मानवीय मूल्यों को आत्मसात किया। विश्वेश्वरैया चिक्बल्लापुर के मिडिल व हाईस्कूल में पढ़े। जब उन्हें ‘गाड सेव द किंग’ (ईश्वर राजा को सुरक्षित रखे) वाला गीत गाने को कहा गया तो उन्हें पता चला कि भारत एक ब्रिटिश उपनिवेश है, अपने मामलों में भी भारतीयों को कुछ कहने का अधिकार न था। भारत की अधिकांश संपत्ति विदेशियों ने हड़प ली थी।

क्या उनके घर में काम करने वाली नौकरानी विदेशी शासन के कारण गरीब है? यह प्रश्न विश्वेश्वरैया के मस्तिष्क में उमड़ता-घुमड़ता रहा। राष्ट्रीयता की चिंगारी जल उठी थी और उनके जीवन में यह अंत समय तक जलती रही। विश्वेश्वरैया जब केवल चौदह वर्ष के थे तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई। क्या वह अपनी पढ़ाई जारी रखें? इस प्रश्न पर तब विचार-विमर्श हुआ जब उन्होंने अपनी माँ से कहा, “अम्मा, क्या मैं बंगलौर जा सकता हूँ? मैं वहाँ मामा रामैया के यहाँ रह सकता हूँ। वहाँ मैं कॉलेज में प्रवेश ले लूँगा।”

‘पर बेटा… तुम्हारे मामा अमीर नहीं है। तुम उन पर बोझ क्यों बनना चाहते हो?’ उनकी माँ ने तर्क किया।

“अम्मा… मैं अपनी ज़रूरतों के लिए स्वयं कमाऊँगा। मैं बच्चों को ट्यूशन पढ़ा दूँगा। अपनी फ़ीस देने और पुस्तकें खरीदने के लिए मैं काफ़ी धन कमा लूँगा। मेरे ख्याल से मेरे पास कुछ पैसे बच भी जाएँगे, जिन्हें मैं मामा को दे दूँगा,” विश्वेश्वरैया ने समझाया।

उनके पास हर प्रश्न का उत्तर था- समाधान ढूँढ़ने की क्षमता उनके पूरे जीवन में लगातार विकसित होती रही और इस कारण वह एक व्यावहारिक व्यक्ति बन गए। यह उनके जीवन का सार था और उनका संदेश था पहले जानो, फिर करो। बड़े होकर यही विश्वेश्वरैया एक महान इंजीनियर बने।

  • आर.के. मूर्ति (अनुवाद-सुमन जैन)

अभ्यास

शब्दार्थ

मँडराना - चारों ओर घूमना आत्मसात करना - आचरण में ढालना
मूसलाधार वर्षा - तेज़ बारिश मस्तिष्क - दिमाग
निहारना - देखना ऊर्जा - शक्ति
बुदबुदाना - धीरे-धीरे बोलना असीमित - जिसकी सीमा न हो
उपनिवेश - वह देश जिस पर किसी अन्य देश का अधिकार हो अंतर्दृष्टि - समझ
आकृति - आकार

1. पाठ से

(क) अपने घर के बरामदे में खड़े होकर छः वर्षीय विश्वेश्वरैया ने क्या देखा?

(ख) तुम्हें विश्वेश्वररैया की कौन सी बात सबसे अच्छी लगी? क्यों?

(ग) विश्वेश्वरैया के मन में कौन-कौन से सवाल उठते थे?

2. सवाल
विश्वेश्वरैया अपने मन में उठे सवालों का जवाब अपने अध्यापकों और बड़ों से जानने की कोशिश करते थे। क्या तुम अध्यापकों से पाठ्य पुस्तकों के सवालों के अतिरिक्त भी कुछ सवाल पूछते हो? कुछ सवालों को लिखो जो तुमने अपने अध्यापकों से पूछे हों।

3. अनुभव और विचार
(क) तुम्हें सर्दी-गरमी के मौसम में अपने घर के आसपास क्या-क्या दिखाई देता है?

(ख) तुमने पाठ में पढ़ा कि एक बूढ़ी महिला ताड़पत्र से बनी छतरी लिए खड़ी थी। पता करो कि ताड़पत्र से और क्या-क्या बनाया जाता है?

(ग) विश्वेश्वैरैया ने बचपन में रामायण, महाभारत, पंचतंत्र आदि की कहानियाँ सुनी थीं। तुमने पाठ्यपुस्तक के अलावा कौन-कौन सी कहानियाँ सुनी हैं? किसी कहानी के बारे में बताओ।

(घ) तुम्हारे मन में भी अनेक सवाल उठे होंगे जिनके जवाब तुम्हें नहीं मिले। ऐसे ही कुछ सवालों की सूची बनाओ।

(ङ) तुम्हारे विचार से गरीबी के क्या कारण हैं?

4. वाक्य बनाओ
नीचे पाठ में से चुनकर कुछ शब्द दिए गए हैं। तुम इनका प्रयोग अपने ढंग के वाक्य बनाने में करो।

(क) हरे-भरे

(ख) उमड़-घुमड़

(ग) एक-दूसरे

(घ) धीरे-धीरे

(ङ) टप-टप

(च) फटी-पुरानी

5. इन वाक्यों को पढ़ो और इन्हें प्रश्नवाचक वाक्यों में बदलो

(क) ज्ञान असीमित है।

(ख) आकाश में अँधेरा छाया हुआ था।

(ग) गड्डे और नालियाँ पानी से भर गईं।

(घ) उसने एक जल-प्रपात का रूप धारण कर लिया।

(ङ) राष्ट्रीयता की चिंगारी जल उठी थी।

(च) मैं काफी धन कमा लूँगा।



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