अध्याय 07 जंतुओं और पादप में परिवहन

आप जानते हैं कि सभी जीवों को जीवित रहने के लिए भोजन, जल और ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। उन्हें इन सभी पदार्थों को अपने शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुँचाना होता है। साथ ही जंतुओं को उन अंगों में उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थों का परिवहन उस स्थान तक करना होता है, जहाँ से उन्हें बाहर निकाला जा सके। क्या आप जानते हैं, यह सब कैसे संभव होता है? चित्र 7.1 को देखिए। क्या आपको हदय और रक्त वाहिनियाँ दिखाई दे रही हैं? हृदय और रक्त वाहिनियाँ संयुक्त रूप से हमारे शरीर का परिसंचरण तंत्र बनाती हैं। इस अध्याय में हम पादप और जंतुओं में पदार्थों के परिवहन के बारे में अध्ययन करेंगे।

7.1 परिसंचरण तंत्र

रक्त

जब आपके शरीर का कोई भाग कट जाता है, तो क्या होता है? रक्त या रुधिर बाहर बहने लगता है, लेकन रक्त है क्या? रक्त वह तरल पदार्थ या द्रव है, जो रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होता है। यह पाचित भोजन को क्षुद्रांत (छोटी आँत) से शरीर के अन्य भागों तक ले जाता है। फेफड़ों से ऑक्सीजन को भी रक्त ही शरीर की कोशिकाओं तक ले जाता है। रक्त शरीर में से अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने के लिए उनका परिवहन भी करता है।

रक्त विभिन्न पदार्थों को किस प्रकार ले जाता है? रक्त एक तरल से बना है जिसे प्लाज्मा कहते हैं जिसमें विभिन्न प्रकार की कोशिकाएँ निलंबित रहती हैं।


रक्त का रंग लाल क्यों होता है?

रक्त में एक प्रकार की कोशिकाएँ - लाल रक्त कोशिकाएँ ( $\mathrm{RBC})$ - होती हैं, जिनमें एक लाल वर्णक होता है, जिसे हीमोग्लोबिन कहते हैं। हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन को अपने साथ संयुक्त करके शरीर के सभी अंगों में और अंततः सभी कोशिकाओं तक परिवहन करता है। हीमोग्लोबिन की कमी होने पर शरीर की सभी कोशिकाओं को कुशलतापूर्वक ऑक्सीजन प्रदान करना कठिन हो जाता है। हीमोग्लोबिन की उपस्थिति के कारण ही रक्त का रंग लाल होता है।

रक्त में अन्य प्रकार की कोशिकाएँ भी होती हैं, जिन्हें श्वेत रक्त कोशिकाएँ (WBC) कहते हैं। ये कोशिकाएँ उन रोगाणुओं को नष्ट करती हैं, जो हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।

बूझो खेलते समय गिर गया और उसके घुटने में चोट लग गई। कटे हुए स्थान से रक्त बहने लगा। कुछ समय बाद उसने देखा कि रक्त का बहना अपने आप रुक गया और कटने के स्थान पर गहरे लाल रंग का एक थक्का जम गया है। यह देखकर बूझो कुछ परेशान हो गया।

रक्त का थक्का बन जाना उसमें एक अन्य प्रकार की कोशिकाओं की उपस्थिति के कारण होता है, जिन्हें पट्टिकाणु (प्लेटलेट्स) कहते हैं।

रक्त वाहिनियाँ

शरीर में विभिन्न प्रकार की रक्त वाहिनियाँ होती हैं, जो रक्त को शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाती हैं। आप जानते हैं कि अंतःश्वसन के समय ऑक्सीजन की ताजा आपूर्ति फेफड़ों (फुफ्फुसों) को भर देती है। रक्त इस ऑक्सीजन का परिवहन शरीर के अन्य भागों में करता है। साथ ही रक्त, कोशिकाओं से कार्बन डाइऑक्साइड सहित अन्य अपशिष्ट पदार्थों को ले लेता है। इस रक्त को वापस हृदय में लाया जाता है, जहाँ से यह फेफड़ों में जाता है। फेफड़ों से कार्बन डाइऑक्साइड बाहर निकाल दी जाती है, जैसा कि आपने अध्याय 6 में पढ़ा है। इस प्रकार शरीर में दो प्रकार की रक्त वाहिनियाँ पाई जाती हैं- धमनी और शिरा (चित्र 7.1)।

धमनियाँ हृदय से ऑक्सीजन समृद्ध रक्त को शरीर के सभी भागों में ले जाती हैं। चूँकि रक्त प्रवाह तेज़ी से और अधिक दाब पर होता है, अत: धमनियों की भित्तियाँ (दीवार) मोटी और प्रत्यास्थ होती हैं।

आइए, हम धमनियों से रक्त के प्रवाह का अनुभव करने के लिए एक क्रियाकलाप करते हैं।

क्रियाकलाप (7.1)

अपने दाहिने (दक्षिण) हाथ की मध्य और तर्जनी अँगुली को अपनी बाईं (वाम) कलाई के भीतरी भाग पर रखिए (चित्र 7.2)। क्या आपको कोई स्पंदन गति (धक-धक) महसूस होती है? यहाँ स्पंदन क्यों होता है? यह स्पंदन नाड़ी स्पंद (नब्ज़) कहलाता है और यह धमनियों में प्रवाहित हो रहे रक्त के कारण होता है। देखिए कि एक मिनट में कितनी बार स्प्पंन होता है।

चित्र 7.2 कलाई में नाड़ी स्प्पंद को अनुभव करना

आपने कितने नाडी स्पंदन गिने? प्रति मिनट स्पंदों की संख्या स्पंदन दर कहलाती है। विश्राम की अवस्था में किसी स्वस्थ वयस्क व्यक्ति की स्पंदन दर सामान्यतः 72 से 80 स्पंदन प्रति मिनट होती है। अपने शरीर में अन्य ऐसे भागों का पता लगाइए, जहाँ आप नाडी़ स्पंदन को अनुभव कर सकते हैं।

अपनी और अपने सहपाठियों की प्रति मिनट नाड़ी स्पंदन दर ज्ञात कीजिए। अपने द्वारा प्राप्त आँकड़ों की तुलना कीजिए, उन्हें सारणी 7.1 में लिखिए।

सारणी 7.1 नाड़ी स्पंदन दर

नाम नाड़ी स्पंदन प्रति मिनट

वे रक्त वाहिनियाँ, जो कार्बन डाइऑक्साइड समृद्ध रक्त को शरीर के सभी भागों से वापस हददय में ले जाती हैं, शिराएँ कहलाती हैं। शिराओं की भित्तियाँ अपेक्षाकृत पतली होती हैं। शिराओं में ऐसे वाल्व होते हैं, जो रक्त को केवल हदय की ओर ही प्रवाहित होने देते हैं।

चित्र 7.3 परिसंचरण तंत्र का व्यवस्था चित्र

चित्र 7.3 देखिए। क्या आपको धमनियाँ अन्य छोटी-छोटी वाहिनियों में विभाजित होती दिखाई देती हैं। ऊतकों में पहुँचकर वे पुनः अत्यधिक पतली नलिकाओं में विभाजित हो जाती है, जिन्हें केशिकाएँ कहते हैं। केशिकाएँ पुनः मिलकर शिराओं को बनाती हैं, जो रक्त को हृदय में ले जाती हैं।

मैं चित्र 7.3 देखकर भ्रमित हूँ। मैंने पढ़ा था कि धमनी सदैव ऑक्सीजन समृद्ध रक्त ही ले जाती है।

पहेली ने समझाया कि फुफ्फुस धमनी हद्य से रक्त को ले जाती है, इसलिए इसे शिरा नहीं बल्कि धमनी कहते हैं। यह कार्बन डाइऑक्साइड समृद्ध रक्त को फेफड़ों में ले जाती है। फुफ्फुस शिरा ऑक्सीजन समृद्ध रक्त को फेफड़ों से हद्य में लाती है।

रक्तदान

रक्त की अनुपलब्धता के कारण सैकड़ों लोग अपनी जान गँवा देते है। स्वेच्छा से किया गया रक्तदान हानि रहित व दर्द रहित होता है जो कई अनमोल जाने बचा सकता है। रक्तदान अस्पतालों में, सरकार द्वारा अधिकृत जगहों पर ही किया जाना चाहिए। दान किया गया रक्त ब्लड बैकों में विशेष देखभाल से रखा जाता है।

हृदय

हृदय वह अंग है, जो रक्त द्वारा पदार्थों के परिवहन के लिए पंप के रूप में कार्य करता है। यह निरंतर धड़कता रहता है।

एक ऐसे पंप की कल्पना कीजिए, जो वर्षों तक बिना रुके कार्य करता रहता है। यह बिल्कुल असंभव प्रतीत होता है। फिर भी हमारा हृदय जीवनपर्यंत बिना रुके रक्त को पंप करने का कार्य करता रहता है। आइए, हम हृदय के बारे में कुछ और जानकारी प्राप्त करें।

हृदय वक्ष-गुहा में स्थित होता है, जिसका निचला सिरा थोड़ी बाईं ओर झुका रहता है (चित्र 7.1)। अपनी अंगुलियों को भीतर की ओर मोड़कर मुठ्ठी बना लीजिए। आपके हृदय का आमाप (साइज़) लगभग आपकी मुठ्ठी के बराबर होता है।

जरा सोचिए, यदि हृदय में कार्बन डाइऑक्साइड और ऑक्सीजन से समृद्ध रक्त परस्पर मिल जाए, तो क्या होगा? ऐसी स्थिति उत्पन्न न होने देने के लिए हदय चार कक्षों में बँटा होता है। ऊपरी दो कक्ष अलिन्द कहलाते हैं और निचले दो कक्ष निलय कहलाते हैं (चित्र 7.4)। कक्षों के बीच का विभाजन दीवार ऑक्सीजन समृद्ध रक्त और कार्बन डाइऑक्साइड से समृद्ध रक्त को परस्पर मिलने नहीं देती है।

पहेली सोच रही है कि हृदय के किस भाग में ऑक्सीजन समृद्ध रक्त होगा और किस भाग में कार्बन डाइऑक्साइड समृद्ध रक्त।

परिसंचरण तंत्र की कार्यविधि को समझने के लिए चित्र 7.3 में हददय के दाईं ओर से आरंभ करते हुए तीरों द्वारा इंगित दिशा का अनुसरण कीजिए। इस चित्र में तीरों द्वारा हृदय से फेफड़ों में और वापस हददय में रक्त के प्रवाह की दिशा दिखाई गई है, जहाँ से वह शेष शरीर में पंप होता है।

चित्र 7.4 मानव हृदय का काट-चित्र

हृदय स्पंद

हददय के कक्ष की भित्तियाँ पेशियों की बनी होती हैं। ये पेशियाँ लयबद्ध रूप से संकुचन और विश्रांति करती हैं। यह लयबद्ध संकुचन और उसके बाद होने वाली लयबद्ध विश्रांति दोनों मिलकर हृदय स्पंद (हार्ट बीट) कहलाता है। याद रखिए, हृदय का स्पंदन जीवन के हर क्षण होता रहता है। यदि आप अपने वक्ष की बाईं तरफ हाथ रखें, तो अपने हृदय स्पंदों (धड़कन) को महसूस कर सकते हैं। चिकित्सक आपके हृदय स्पंद को मापने के लिए स्टेथोस्कोप नामक यंत्र का उपयोग करते हैं [चित्र 7.5 (a)]।

चिकित्सक स्टेथॉस्कोप का उपयोग हृदय स्पंद की ध्वनि को आवर्धित करने की युक्ति के रूप में करते हैं। स्टेथोस्कोप के एक सिरे पर एक चेस्ट पीस लगा होता है, जिसमें एक संवेदनशील डायाफ्राम होता है। दूसरे सिरे पर दो इयर पीस ( श्रोतिका) लगे होते हैं, जो एक नली द्वारा चेस्ट पीस से जुड़े रहते हैं। चिकित्सक स्टेधोस्कोप का चेस्ट पीस आपके हृदय के स्थान पर रखकर श्रोतिकाओं से स्पंदनों की ध्वनि का अध्ययन करते हैं, जिससे उन्हें आपके हृदय की स्थिति का आकलन करने में सहायता मिलती है।

आइए, हम अपने आस-पास उपलब्ध सामग्री से स्टेथोस्कोप का एक मॉडल बनाना सीखें।

क्रियाकलाप (7.2)

6 से $7 \mathrm{~cm}$ व्यास की कोई कीप लीजिए। कीप के स्तंभ पर रबड़ की एक नली (लगभग $50 \mathrm{~cm}$ से लंबी) को कसकर लगाइए। कीप के मुख पर रबड़ की एक झिल्ली (अथवा गुब्बारे) को तानकर लगाइए और रबड़ बैंड की सहायता से कस दीजिए [चित्र 7.5 (b)]। अब रबड़ की नली के मुक्त सिरे

(a) स्टेथोस्कोप

(b) स्टेथोस्कोप का मॉडल

चित्र 7.5 हृदय स्पंद को सुनने का यंग्र

को अपने एक कान के पास रखिए। कीप के मुख को अपने वक्ष पर हृदय के निकट रखिए। अब सावधानी से ध्वनि सुनने का प्रयास कीजिए। क्या आपको नियमित स्पंदन ध्वनि सुनाई दे रही है? यह ध्वनि हृदय स्पंदनों की है। आपका हृदय एक मिनट में कितनी बार धड़क रहा था? 4-5 मिनट तक दौड़ने के बाद पुन: हृदय स्पंदन की दर ज्ञात कीजिए। अपने प्रेक्षणों की तुलना कीजिए।

अपनी तथा अपने मित्रों की विश्राम अवस्था में तथा 4-5 मिनट दौड़ने के बाद हदय स्पंदन तथा नाडी़ स्पंद (पल्स) दर सारणी 7.2 में रिकॉर्ड कीजिए। क्या आपको अपने हृदय स्पंदन और नाड़ी स्पंद दर के बीच कोई संबंध दिखाई देता है? प्रत्येक हृदय स्पंदन धमनियों में एक स्पंद उत्पन्न करता है। प्रति मिनट धमनी में उत्पन्न स्पंद, हृदय स्पंदन दर को बताती है।

सारणी 7.2 हृदय स्पंदन और स्पंद दर

छात्र का नाम विश्राम के समय दौड़ने के बाद (4-5 मिनट)
हृदय स्प्पंदन स्पंद दर हृदय स्पंदन स्पंद दर

हृदय के विभिन्न कक्षों की लयबद्ध गति रक्त के परिसंचरण और पदार्थों के परिवहन को बनाए रखती है।

रक्त परिसंचरण की खोज विलियम हार्वे (1578-1657) नामक एक चिकित्सक ने की थी, जो अँग्रेज थे। उन दिनों यह मान्यता थी कि रक्त शरीर की वाहिनियों में दोलन करता रहता है। इस मत के लिए हार्वे का उपहास किया गया और उन्हें ‘परिसंचारी’ (सर्कुलेटर) कहा जाता था। उनके अधिकांश रोगियों ने उनसे उपचार कराना बंद कर दिया। तथापि, हार्वे की मृत्यु से पहले परिसंचरण के बारे में उनके विचार को जीवविज्ञानी तथ्य के रूप में मान्यता मिल गई थी।

बूझो जानना चाहता है कि क्या स्पंज और हाइड्रा में भी रक्त होता है? स्प्पंों और हाइड्रा जैसे जंतुओं में कोई परिसंचरण तंर्र नहीं पाया जाता है। जिस जल में वे रहते हैं, वही उनके शरीर में प्रवेश करके उनके भोजन और ऑक्सीजन की आपूर्ति कर देता है। जब जल बाहर निकलता है, तो वह अपने साथ कार्बन डाइऑक्साइड और अपशिष्ट पदार्थों को ले जाता है। अतः उन्हें परिसंचरण हेतु रक्त के समान तरल की आवश्यकता नहीं होती है।

आइए, अब हम शरीर द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड के अतिरिक्त अन्य अपशिष्ट पदार्थों की निकासी के विषय में अध्ययन करें।

7.2 जंतुओं में उत्सर्जन

आपको याद होगा कि शरीर में अपशिष्ट पदार्थ के रूप में उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड फेफड़ों द्वारा किस प्रकार उच्छ्वसन के प्रक्रम के दौरान शरीर से बाहर निकल जाती है। यह भी ध्यान में रखिए कि अपाचित भोजन बहिक्षेपण प्रक्रम द्वारा मल के रूप में शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। आइए, अब हम यह मालूम करें कि अन्य अपशिष्ट पदार्थ शरीर द्वारा कैसे बाहर निकाले जाते हैं? आपके मन में यह प्रश्न उठ सकता है कि आखिर ये अपशिष्ट पदार्थ आते कहाँ से हैं?

जब हमारी कोशिकाएँ अपना कार्य करती हैं, तो कुछ पदार्थ अपशिष्ट के रूप में निर्मुक्त होते हैं। अधिकांशतः ये पदार्थ विषाक्त होते हैं, इसलिए इन्हें शरीर से बाहर निकालने की आवश्यकता होती है। सजीवों द्वारा कोशिकाओं में निर्मित होने वाले अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने के प्रक्रम को उत्सर्जन कहते हैं और उत्सर्जन में भाग लेने वाले सभी अंग मिलकर उत्सर्जन तंत्र बनाते हैं।

मानव उत्सर्जन तंत्र

रक्त में उपस्थित अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकाला जाना चाहिए। यह किस प्रकार होता है? इसके लिए रक्त को छानने की व्यवस्था की आवश्यकता होती है। यह व्यवस्था वृक्क (गुर्दों) में उपस्थित रक्त कोशिकाओं द्वारा उपलब्ध की जाती है। जब रक्त दोनों वृक्कों में पहुँचता है, तो इसमें उपयोगी और हानिकारक दोनों ही प्रकार के पदार्थ होते हैं। उपयोगी पदार्थों को रक्त में पुनः अवशोषित कर लिया जाता है। जल में घुले हुए अपशिष्ट पदार्थ मूत्र के रूप में पृथक कर लिए (हटा दिए) जाते हैं। वृक्कों से, मूत्र वाहिनियों से होता हुआ मूत्र मूत्राशय में जाता है। मूत्र वाहिनियाँ नली के आकार की होती हैं। मूत्राशय में मूत्र संचित होता रहता है। मूत्राशय से एक पेशीय नली जुड़ी होती है, जिसे मूत्रमार्ग कहते हैं (चित्र 7.6)। मूत्रमार्ग का दूसरा सिरा खुला होता है, जिसे मूत्ररंध्र कहते हैं और जिससे मूत्र शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। वृक्क, मूत्र वाहिनियाँ, मूत्राशय और मूत्रमार्ग सम्मिलित रूप से उत्सर्जन तंत्र बनाते हैं।

चित्र 7.6 मानव उत्सर्जन तंग्र

कोई वयस्क व्यक्ति सामान्यतः 24 घंटे में 1 से 1.8 लीटर मूत्र करता है। मूत्र में $95 %$ जल, $2.5 %$ यूरिया और $2.5 %$ अन्य अपशिष्ट उत्पाद होते हैं।

यह हम सभी का अनुभव है कि गर्मियों में हमें पसीना (स्वेद) आता है। स्वेद में जल और लवण होते हैं। बूझो ने देखा है कि गर्मियों के दिनों में प्राय: पसीने के कारण कपड़ों में सफेद धब्बे दिखाई देते हैं, विशेषकर उन स्थानों में जहाँ अधिक पसीना आता है। ये धब्बे पसीने में उपस्थित लवणों के कारण बनते हैं।

क्या स्वेदन या पसीना आने का कोई विशेष प्रयोजन होता है? हम जानते हैं कि मिट्टी से बने घड़ों में रखा पानी ठंडा हो जाता है। इसका कारण यह है कि घड़ों के छिद्रों से रिसकर पानी उनकी बाहरी सतह पर आ जाता है। जब यह पानी वाष्पित होता है, तो घड़े में बचा शेष पानी ठंडा हो जाता है। ठीक इसी प्रकार पसीना भी हमें अपने शरीर को ठंडा बनाए रखने में सहायता करता है।

कभी-कभी किसी व्यक्ति के वृक्क काम करना बंद कर देते हैं। ऐसा किसी संक्रमण अथवा चोट के कारण हो सकता है। वृक्क के अक्रिय हो जाने की स्थिति में रक्त में अपशिष्ट पदार्थों की मात्रा बढ़ जाती है। ऐसे व्यक्ति की अधिक दिनों तक जीवित रहने की संभावना कम हो जाती है। तथापि, यदि कृत्रिम वृक्क द्वारा रक्त को नियमित रूप से छानकर उसमें से अपशिष्ट पदार्थों को हटा दिया जाए, तो उसके जीवन काल में वृद्धि संभव है। इस प्रकार रक्त के छनन की विधि को अपोह्न (डायलाइसिस) कहते हैं।

पहेली जानना चाहती है कि क्या अन्य जंतु भी मूत्र करते हैं?

जंतुओं के शरीर से अपशिष्ट रसायनों के निष्कासन की विधि जल की उपलब्धता पर निर्भर करती है। मछली जैसे जलीय जंतु कोशिका के अपशिष्ट उत्पादों को अमोनिया के रूप में उत्सर्जित करते हैं, जो सीधे जल में घुल जाती है। पक्षी, छिपकली, सर्प जैसे कुछ जंतु अपने शरीर से अपशिष्ट पदार्थों का उत्सर्जन अर्ध घन (सेमी सॉलिड) पदार्थ के रूप में करते हैं, जो मुख्यतः श्वेत (सफेद) रंग का यौगिक (यूरिक अम्ल) होता है। मानव द्वारा उत्सर्जित अपशिष्ट पदार्थों में यूरिया प्रमुख है।

7.3 पादपों में पदार्थों का परिवहन

अध्याय 1 में आपने पढ़ा कि पौधे (पादप) अपनी जड़ों (मूलों) द्वारा मृदा से जल और खनिज पोषकों का अवशोषण करके उन्हें पत्तियों को उपलब्ध कराते हैं। पत्तियाँ जल तथा कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग कर प्रकाश संश्लेषण के प्रक्रम द्वारा पौधों के लिए भोजन बनाती हैं। अध्याय 6 में आपने यह भी पढ़ा कि सभी जीवों का भोजन उनके लिए ऊर्जा का स्रोत होता है तथा जीव की प्रत्येक कोशिका में ग्लूकोस का विखंडन होने से ऊर्जा निर्मुक्त होती है। कोशिकाएँ इस ऊर्जा का उपयोग जीवन की मूल क्रियाविधियों को संपादित करने में करती हैं। अत: यह आवश्यक है कि जीव की प्रत्येक कोशिका को भोजन उपलब्ध कराया जाए। क्या आपने कभी इस प्रश्न पर विचार किया है कि पौधों की जड़ों द्वारा अवशोषित जल तथा पोषक तत्त्व पत्तियों तक किस प्रकार पहुँचाए जाते हैं। पौधों के वे भाग, जो भोजन नहीं बना सकते, पत्तियों द्वारा निर्मित भोजन किस प्रकार प्राप्त करते हैं।

जल और खनिजों का परिवहन

पादप मूलों (जड़ों) द्वारा जल और खनिजों को अवशोषित करते हैं। मूलों में मूलरोम होते हैं। वास्तव में, मूलरोम जल में घुले हुए खनिज पोषक पदार्थों और जल के अंतर्ग्रहण के लिए मूल के सतह क्षेत्रफल को बढ़ा देते हैं। मूलरोम मृदा कणों के बीच उपस्थित जल के संपर्क में रहते हैं [चित्र 7.7 (a)]

क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि जल किस प्रकार मूलों से पत्तियों तक पहुँचता है? पादपों में किस प्रकार का परिवहन तंत्र पाया जाता है?

बूझो का विचार है कि शायद पादपों के सभी भागों में जल के परिवहन के लिए पाइप बने होते हैं जैसे कि हमारे घरों में जल की आपर्ति के लिए होते हैं

जी हाँ, बूझो सही है। पादपों में मृदा से जल और पोषक तत्त्वों के परिवहन के लिए पाइप जैसी वाहिकाएँ होती हैं। वाहिकाएँ विशेष कोशिकाओं की बनी होती हैं, जो संवहन ऊतक बनाती हैं। ऊतक कोशिकाओं का वह समूह होता है, जो किसी जीव में किसी कार्य विशेष को संपादित करता है। जल और पोषक तत्त्वों के परिवहन के लिए पादपों में जो संवहन ऊतक होता है, उसे जाइलम (दारू) कहते हैं [चित्र 7.7 (a)]।

जाइलम चैनलों (नलियों) का सतत् जाल बनाता है, जो मूलों को तने और शाखाओं के माध्यम से पत्तियों से जोड़ता है और इस प्रकार बना तंत्र पूरे पादप में जल का परिवहन करता है [चित्र 7.7 (b)]।

आप जानते हैं कि पत्तियाँ भोजन का संश्लेषण करती हैं। भोजन को पादप के सभी भागों में ले जाया जाता है। यह कार्य एक संवहन ऊतक द्वारा किया जाता है, जिसे फ्लोएम (पोषवाह) कहते हैं। इस प्रकार, जाइलम और फ्लोएम पादपों में पदार्थों का परिवहन करते हैं।

(b)

चित्र 7.7 जल और खनिजों का परिवहन (a) मूल के एक भाग में (b) किसी वृक्ष में

पहेली ने देखा है कि उसकी माँ यदि भिंडी और अन्य सब्जियाँ सूख गई हों, तो वे उन्हें कुछ देर के लिए जल में डुबो देती हैं। वह जानना चाहती है कि उनमें जल कैसे प्रवेश करता है?

क्रियाकलाप (7.3)

हमें इस क्रियाकलाप के लिए एक कांच का गिलास, पानी, लाल स्याही, व एक कोमल शाकीय पौधे की टहनी (उदाहरण के लिए बालसम) व एक ब्लेड की आवश्यकता होगी।

गिलास को एक तिहाई पानी से भरें। उसमें कुछ बूंदें लाल स्याही की डालें। एक कोमल शाकीय पौधे की टहनी के आधार को एक ब्लेड की सहायता से काटकर गिलास में जैसा कि चित्र 7.8 (अ) में दिखाया गया है। अगले दिन इसका अवलोकन करें।

चित्र 7.8 (अ) रंगीन पानी में रखी गई शाकीय पौधे की टहनी

चित्र 7.8 (ब) पानी तने में ऊपर को चढ़ता है
(स) तने की अनुप्रस्थ काट जो लाल रंग के बिन्दु प्रदर्शित करती है

क्या शाकीय पौधे की टहनी का कोई भाग लाल रंग का दिखाई देता है? टहनी को अनुप्रस्थ काटिए तथा इसके अंदर लाल रंग का अवलोकन कीजिए (चित्र 7.8(ब) व 7.8(स))

वाष्पोत्सर्जन

कक्षा 6 में आपने पढ़ा कि पादप वाष्पोत्सर्जन के प्रक्रम द्वारा बहुत अधिक जल निर्मुक्त करते हैं। पादप मृदा से खनिज पोषक तत्त्व और जल अवशोषित करते हैं। अवशोषित किया गया सारा जल पादप द्वारा उपयोग नहीं किया जाता है। पत्तियों की सतह पर उपस्थित रंध्रों से वाष्पोत्सर्जन के प्रक्रम द्वारा जल वाष्पित हो जाता है। पत्तियों से जल के वाष्पन से चूषण अभिकर्षण (खिंचाव) विकसित हो जाता है। यह वैसे ही है, जैसे आप स्ट्रॉ से जल का चूषण करते हैं। विशाल वृक्षों में बहुत अधिक ऊँचाई तक जल का अभिकर्षण (खिंचाव) इसी प्रकार होता है। वाष्पोत्सर्जन पादप को ठंडा रखने में भी सहायक होता है।

बूझो जानना चाहता है कि पादप क्यों मृदा में से अधिक मात्रा में जल अवशोषित करते हैं, और फिर उसे वाष्पोत्सर्जन द्वारा बाहर निकाल देते हैं।

प्रमुख शब्द

धमनी हदय स्पंदन पसीना/स्वेद
रक्त वृक्क/गुर्दा ऊतक
रक्त वाहिनियाँ फ्लोएम/पोषवाह मूत्रवाहिनी
केशिका प्लाज्मा मूत्रमार्ग
परिसंचरण तंत्र पट्विकाणु यूरिक अम्ल
डायलाइसिस/अपोहन नाडीी स्पंद मूत्राशय
उत्सर्जन लाल रक्त कोशिकाएँ शिरा
उत्सर्जन तंर मूलरोम श्वेत रक्त कोशिकाएँ
हीमोग्लोबिन स्टेथोस्कोप जाइलम/दारू

आपने क्या सीखा

  • अधिकांश जंतुओं में शरीर में प्रवाहित होने वाला रक्त शरीर की विभिन्न कोशिकाओं को भोजन और ऑक्सीजन का वितरण करता है। यह शरीर के विभिन्न भागों से उत्सर्जन के लिए अपशिष्ट पदार्थों को भी लाता है।

  • परिसंचरण तंत्र में हृदय और रक्त वाहिनियाँ होती हैं।

  • मानव शरीर में रक्त, धमनियों और शिराओं में प्रवाहित होता है तथा हृदय पंप की तरह कार्य करता है।

  • रक्त में प्लाज्मा, लाल रक्त कोशिकाएँ (RBC), श्वेत रक्त कोशिकाएँ (WBC) और पट्टिकाणु होते हैं। रक्त >- का लाल रंग, लाल वर्णकयुक्त हीमोग्लोबिन की उपस्थिति के कारण होता है।

  • किसी वयस्क व्यक्ति का हृदय एक मिनट में लगभग $70-80$ बार धड़कता है। इसे हदय स्पंदन दर कहते हैं।

  • धमनियाँ हृदय से शरीर के सभी अन्य भागों में रक्त को ले जाती है।

  • शिराएँ शरीर के सभी भागों से रक्त को वापस हृदय में लाती हैं।

  • शरीर में से अपशिष्ट उत्पादों को बाहर निकालने का प्रक्रम उत्सर्जन कहलाता है। मानव उत्सर्जन तंत्र में दो वृक्क (गुदेंे), दो मूत्र वाहिनियाँ, एक मूत्राशय और एक मूत्रमार्ग होता है।

  • लवण और यूरिया जल के साथ स्वेद (पसीने) के रूप में शरीर से बाहर निकाल दिए जाते हैं।

  • मछली अपशिष्ट पदार्थ के रूप में अमोनिया उत्सर्जित करती हैं, जो सीधे जल में घुल जाती है।

  • पक्षी, कीट और छिपकली अर्ध घन (सेमी सॉलिड) रूप में यूरिक अम्ल का उत्सर्जन करते हैं।

  • पादप मूलों द्वारा जल और पोषक तत्त्व मृदा से अवशोषित होते हैं।

  • पूरे पादप में जल के साथ पोषक तत्त्व जाइलम नामक संवहन ऊतक द्वारा ले जाए जाते हैं।

  • पादप के विभिन्न भागों में भोजन का परिवहन फ्लोएम नामक संवहन ऊतक के द्वारा होता है।

  • वाष्पोत्सर्जन के दौरान रंध्रों से वाष्प के रूप में बड़ी मात्रा में जल का ह्रास होता है।

  • वाष्पोत्सर्जन के कारण एक चूषण बल निर्मित होता है, जिसके कारण मूलों द्वारा मृदा में से अवशोषित जल अभिकर्षित (खिंचकर) होकर तने और पत्तियों तक पहुँचता है।

अभ्यास

1. कॉलम $\mathrm{A}$ में दी गई संरचनाओं का कॉलम $\mathrm{B}$ में दिए गए प्रक्रमों से मिलान कीजिए।

कॉलम A कॉलम B
(क) रंध्र (i) जल का अवशोषण
(ख) जाइलम (ii) वाष्पोत्सर्जन
(ग) मूल रोम (iii) भोजन का परिवहन
(घ) फ्लोएम (iv) जल का परिवहन
(v) कार्बोहाइड्रेट का संश्लेषण

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-

(क) हृदय से रक्त का शरीर के सभी अंगों में परिवहन ……………………. के द्वारा होता है।
(ख) हीमोग्लोबिन ……………………. कोशिकाओं में पाया जाता है।
(ग) धमनियाँ और शिराएँ ……………………. के जाल द्वारा जुड़ी रहती हैं।
(घ) हदय का लयबद्ध विस्तार और संकुचन ……………………. कहलाता है।
(च) मानव शरीर के प्रमुख उत्सर्जित उत्पाद ……………………. है।
(छ) पसीने में जल और ……………………. होता है।
(ज) वृक्क अपशिष्ट पदार्थों को द्रव रूप में बाहर निकालते हैं, जिसे हम ……………………. कहते हैं।
(झ) वृक्षों में बहुत अधिक ऊँचाइयों तक जल पहुँचाने के कार्य में ……………………. द्वारा उत्पन्न चूषण अभिकर्षण बल सहायता करता है।

3. सही विकल्प का चयन करिए-

(क) पादपों में जल का परिवहन होता है

(i) जाइलम के द्वारा
(ii) फ्लोएम के द्वारा
(iii) रंध्रों के द्वारा
(iv) मूलरोमों के द्वारा

(ख) मूलों द्वारा जल के अवशोषण की दर को बढ़ाया जा सकता है, उन्हें

(i) छाया में रखकर।
(ii) मंद प्रकाश में रखकर।
(iii) पंखे के नीचे रखकर।
(iv) पॉलीथीन की थैली से ढककर।

4. पादपों अथवा जंतुओं में पदार्थों का परिवहन क्यों आवश्यक है? समझाइए।

5. क्या होगा यदि रक्त में पट्टिकाणु नहीं होंगे?

6. रंध्र क्या है? रंध्रों के दो कार्य बताइए।

7. क्या वाष्पोत्सर्जन पादपों में कोई उपयोगी कार्य करता है?

8. रक्त के घटकों के नाम बताइए।

9. शरीर के सभी अंगों को रक्त की आवश्यकता क्यों होती है?

10. रक्त लाल रंग का क्यों दिखाई देता है?

11. हददय के कार्य बताइए।

12. शरीर द्वारा अपशिष्ट पदार्थों को उत्सर्जित करना क्यों आवश्यक है?

13. मानव उत्सर्जन तंत्र का चित्र बनाइए और उसके विभिन्न भागों को नामांकित कीजिए।

विस्तारित अधिगम - क्रियाकलाप और परियोजना कार्य

1. रक्त समूहों (ब्लड ग्रुप) और उनके महत्त्व के बारे में जानकारी एकत्र कीजिए।

2. जब कोई व्यक्ति सीने (छाती) में दर्द की शिकायत करता है, तो चिकित्सक तत्काल उसका ECG करते हैं। किसी चिकित्सक के पास जाइए और उनसे ECG के बारे में जानकारी लीजिए। आप किसी ज्ञानकोष, एन्साइक्लोपीडिया अथवा इंटरनेट से भी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

क्या आप जानते हैं?

रक्त का कोई विकल्प नहीं है। यदि किसी व्यक्ति को शल्यक्रिया अथवा चोट लगने से रक्त की हानि होती है अथवा यदि उनके शरीर में पर्याप्त रक्त नहीं बनता है, तो इसकी परिपूर्ति करने का मात्र एक ही तरीका है- रक्तदान करने वाले व्यक्तियों द्वारा दिए गए रक्त का दान। रक्त की सामान्यतः आपूर्ति कम होती है, क्योंकि बहुत कम व्यक्ति स्वेच्छा से रक्तदान करते हैं। यद्यपि, रक्तदान करने से दाता की काम करने की शक्ति कम नहीं होती और न ही इससे उसके स्वास्थ्य पर कोई दुष्प्रभाव पड़ता है।



sathee Ask SATHEE

Welcome to SATHEE !
Select from 'Menu' to explore our services, or ask SATHEE to get started. Let's embark on this journey of growth together! 🌐📚🚀🎓

I'm relatively new and can sometimes make mistakes.
If you notice any error, such as an incorrect solution, please use the thumbs down icon to aid my learning.
To begin your journey now, click on

Please select your preferred language
कृपया अपनी पसंदीदा भाषा चुनें