अध्याय 13 अन्याय के खिलाफ (कहानी)

बात 1922 की है। उन दिनों अंग्रेज़ों का शासन था। भारत देश अंग्रेजों का गुलाम था। अपने लोगों को तरह-तरह के अत्याचार सहने पड़ते थे। अंग्रेज़ शासन ने अपने स्वार्थ पूरे करने के लिए भारत के लोगों को बहुत डरा-धमका कर रखा था। पर उनकी धमकियों के खिलाफ़ लड़ने की हिम्मत रखने वाले भी लोग थे। ऐसे ही लोग थे आंध्र प्रदेश के कोया आदिवासी और उनके नेता का नाम था श्रीराम राजू।

आंध्र के घने जंगलों के बीच रहने वाले कोया आदिवासी सीधी-सादी खेती के माध्यम से अपनी रोज़ी-रोटी जुटाया करते थे। पर जब से अंग्रेज़ों ने उनके बीच आकर अपना हक जमाया, उनका जीवन मुश्किल हो गया।

अंग्रेज़ों की योजना थी कि घने जंगलों और पहाड़ों को चीरती हुई एक सड़क बिछाई जाए। पर सड़क के निर्माण कार्य के लिए मज़दूर कहाँ से आएँगे? यह सवाल जब तहसीलदार महोदय के सामने आया तो उनकी निगाह कोया आदिवासियों पर पड़ी। तहसीलदार का नाम था बेस्टीयन। बेस्टीयन को शासन द्वारा सड़क बनवाने का काम सौंपा गया था।

बेस्टीयन स्वभाव से बहुत अक्खड़ और क्रूर था। वह आदिवासियों के गाँवों में गया और बड़े घमंड के साथ खूब चिल्ला-चिल्लाकर बोला, “दो दिन में जंगल में सड़क बनाने का काम शुरू होगा। तुम सब लोगों को इस काम पर पहुँचना है। अगर नहीं पहुँचे तो ठीक नहीं होगा। अंग्रेज़ सरकार का हुक्म है, यह

जान लो।” आदिवासी लोग चुप हो गए। वे उन घने जंगलों के बीच अकेले पड़े थे। वे कुछ पूछें तो किससे, कुछ करें तो क्या? किसी ने हिम्मत करके तहसीलदार से पूछना चाहा कि काम करेंगे तो बदले में क्या मिलेगा? तो बेस्टीयन का चेहरा तमतमा गया, “क्या मिलेगा? हुक्म बजाना नौकर का काम है। आगे से यह सवाल मत पूछना।”

आदिवासी सहम गए। काम पर जाने लगे। पर उनका मन नहीं मानता था। वे अपमान से अंदर ही अंदर घुट रहे थे और गुस्से से सुलग रहे थे।

उन्हीं दिनों एक साधु जंगलों में आकर रहने लगा था। उस साधु का नाम था, अल्लूरी श्रीराम राजू। श्रीराम राजू ने हाई स्कूल तक पढ़ाई की थी। उसके बाद अगली पढ़ाई छोड़कर वह 18 वर्ष की उम्र में ही साधु बन गया। जब वह उन जंगलों में रहने आया तो आदिवासी लोगों से अच्छी तरह हिल-मिल गया। लोग उसे अपने दुख-दर्द की कहानी सुनाते और पूछते कि कैसे अपने कष्टों से छुटकारा पाएँ।

श्रीराम राजू ने आदिवासियों से कहा, “अत्याचार के सामने दबना नहीं चाहिए। तुम लोगों को काम पर जाने से मना करना चाहिए।”

उसकी बात सुनकर आदिवासियों में हिम्मत आई। श्रीराम राजू ने उन्हें यह भी बताया कि देश में और लोग भी अंग्रेज़ों के अत्याचार के खिलाफ़ लड़ रहे हैं। उनमें एक मशहूर नेता हैं, जिनका नाम गांधी जी है। गांधी जी का कहना है कि भारत के लोगों को अंग्रेज़ी सरकार का सहयोग नहीं करना चाहिए। अगर कोई अंग्रेज़ अन्याय करेगा तो हम अन्याय सहने से इंकार करेंगे।

यह सब सुनकर कोया आदिवासियों का दिल मजबूत हुआ। फिर क्या था, विद्रोह की ऐसी आग भड़की कि अंग्रेज़ों के होश उड़ गए। भोले-भाले आदिवासियों के मन में भरा सारा अपमान, दुख और क्रोध फूट के निकल पड़ा। भद्राचलम से परवथीपुरम तक पूरे इलाके के आदिवासी लोग अन्याय के खिलाफ़ लड़ने के लिए कूद पड़े। अंग्रेज़ सरकार के ऐसे छक्के छूटे कि आसपास के

राज्यों से सेना बुलानी पड़ी, पर अंग्रेज़ों की इतनी भारी सेना भी दो साल तक विद्रोह को दबा न पाई।

जब सँकरी पगडंडियों से सेना की टुकड़ी गुजर रही होती तो जंगलों में छिपे आदिवासी भारतीय सिपाहियों को गुजर जाने देते और जैसे ही अंग्रेज़ सारजेंट या कमांडर नज़र आते तो उन पर अचूक निशाना लगाते। आदिवासियों के विद्रोह से अंग्रेज़ सरकार इतना डरने लगी थी कि राजू के दल को आते देखकर थानों से पुलिस भाग जाती थी। श्रीराम राजू ने आदिवासियों से कह रखा था कि अंग्रेज़ों से लड़ो पर एक भी भारतीय सैनिक का बाल बाँका न होने पाए। अंग्रेज़ों की सेना में बहुत से भारतीय सिपाही भी थे। राजू के आदेश का सख्ती से पालन हुआ। जब वह पहाड़ों से कूच करता था, मानो उन्हें किसी का भय न हो। आदिवासी लोग पुलिस चौकियों या सेना पर हमला कर देते थे और उनके अस्त्र-शस्त्र लूटकर भाग जाते थे।

राजू ने एक कोने से दूसरे कोने तक गुप्त संदेश पहुँचाने के लिए गुप्तचरों का जाल फैला रखा था। अंग्रेजी सेना के आने-जाने के संदेश ऐसे पहुँचाए जाते कि किसी को कानों-कान खबर न हो। यह सब देखकर अंग्रेज़ों ने भी अपने दाँतों तले उँगली दबा ली।

जंगलों और पहाड़ों में राजू के लोग बड़ी फुर्ती से छिपते-फिरते। ऐसे इलाके में हथियारों से लदी अंग्रेज़ों की भारी-भरकम सेना अपने-आपको कमजोर महसूस करने लगती थी। राजू के लोगों को गाँव-गाँव का सहारा था। गाँव के लोग विद्रोहियों को शरण देते और लाख कोशिश करने पर अंग्रेज़ उनकी खबर नहीं लगा पाते। फिर अंग्रेज़ों को एक तरकीब सूझी। उन्होंने सोचा कि आदिवासियों को लड़ाई में तो हरा नहीं पाएँगे, अब इन्हें भूखे रखकर मारना पड़ेगा। अंदर जंगल के गाँवों में राशन लाने वाले सारे रास्ते बंद कर दिए गए। किसी को भी सामान का एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाना मुश्किल हो गया। लोगों की बंदूकों के कारतूस खत्म हो गए। इसके कारण अंग्रेज़ों के सिपाही गाँवों में घुसकर लोगों को मारने-पीटने लगे। यहाँ तक की उगी हुई फसल को भी जलाया जाने लगा।

आदिवासियों की हिम्मत जवाब देने लगी। आखिर कब तक यह तकलीफ़ बर्दाश्त की जा सकती थी। राजू के कुछ साथी पुलिस की पकड़ में आ गए थे। एक बार राजू भी पुलिस की गिरफ्त में आकर बुरी तरह जख़्मी हो गया था। लोग परेशान होकर राजू के पास पहुँचते। राजू भी परेशान था। उससे उनका दुख देखा नहीं गया। राजू ने सोचा कि अगर मैं अंग्रेज़ों के सामने आत्म-समर्पण

कर दूँ तो अंग्रेज़ इन हज़ारों लोगों को रोज़ सताना बंद कर देंगे। उसने देखा कि दो वर्षों के इतने लंबे संघर्ष के बाद लोगों में कठिनाइयों का सामना करने की तैयारी नहीं रह पाई है और अंग्रेज़ सरकार तो उन्हें भूखा मारकर ही छोड़ेगी।

यह सोचकर श्रीराम राजू अपने-आपको अंग्रेज़ों के हवाले सौंपने चला। सेना के मेजर गुडॉल, मम्पा गाँव में डेरा डाले हुए थे। राजू को गिरफ़्तार करके उसके सामने पेश किया गया। गिरफ़्तारी की खबर सुनकर आसपास के गाँवों के लोग बड़ी संख्या में वहाँ इकट्ठे होने लगे।

मेजर गुडॉल मन ही मन बहुत अधिक खुश हो रहा था। उसे कहाँ उम्मीद थी कि उनका शिकार खुद जाल में फँसने चला आएगा। राजू माँग कर रहा था कि उसे कचहरी में पेश किया जाए और कानून के हिसाब से उसके साथ बर्ताव हो। पर गुडॉल का कोई इरादा नहीं था कि कोर्ट-कचहरी के चक्कर में राजू को अपनी जान बचाने का ज़रा भी मौका मिले। बस, उसके इशारे पर एक सिपाही ने राजू पर गोली चलाई और उसका काम तमाम कर दिया गया।

इस तरह अल्लूरी श्रीराम राजू अपने लोगों की खातिर शहीद हुआ। इसके बाद कोया आदिवासियों का आंदोलन टूट गया। पर अंग्रेज़ सरकार ने अच्छा-खासा पाठ पढ़ लिया था। वे समझ गए थे कि आदिवासियों के साथ मनमर्जी नहीं की जा सकती। तब से आदिवासियों के हितों की रक्षा करने के लिए विशेष कोशिश करने का फैसला हुआ।

अपने देश के इतिहास में कोया आदिवासियों ने अन्याय के खिलाफ़ लड़ने की मिसाल स्थापित की।

-चकमक से

अभ्यास

शब्दार्थ
गुलाम - किसी के अधीन, पराधीन
हक - अधिकार
निगाह - नज़र
क्रूर - निर्दयी, दया नहीं करने वाला
घमंड - अभिमान
पगडंडी - मनुष्यों के चलने से जंगल, खेत या मैदान में बना हुआ पतला रास्ता
टुकड़ी - समूह
अचूक - खाली न जाने वाला
सख्ती - कड़ाई
फुर्ती - तेज़ी
तरकीब - उपाय
मिसाल - उदाहरण

1. पाठ से

(क) आंध्र के घने जंगलों में रहने वाले आदिवासियों के बीच अपना हक जमाने के लिए अंग्रेजों ने क्या किया?

(ख) श्री राम राजू कौन था? उसने अंग्रेजोों के सामने आत्मसमर्पण क्यों किया?

(ग) अंग्रेज़ों से लड़ने के लिए कोया आदिवासी क्या-क्या करते थे?

(घ) कोया आदिवासियों के विद्रोह को स्वतंत्रता संग्राम क्यों कहना चाहिए?

2. गाँधीजी की बात

“भारत के लोगों को अंग्रेज़ सरकार का सहयोग नहीं करना चाहिए और उनका काम बंद कर देना चाहिए। अगर कोई अंग्रेज़ अन्याय करेगा तो हम अन्याय सहने से इंकार करेंगे।”

ऊपर श्रीराम राजू द्वारा आदिवासियों से गाँधी जी की कही हुई बात का उल्लेख हुआ है। गाँधी जी ने स्वतंत्रता संग्राम के लिए बहुत सारी बातें कही थी। यह सब तुम्हें गाँधी जी पर लिखी गई किताबों, फ़िल्मों और अन्य

जगहों पर मिल सकता है। तुम उनकी कही हुई बातों में जो बहुत महत्वपूर्ण समझो उसको अपने साथियों को बताओ।

3. देशभक्तों के नाम

तुमने इस पाठ में भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वाले दो व्यक्तियों के नामों को जाना। एक गाँधी जी और दूसरा श्रीराम राजू। पता करो कि भारत की आज़ादी के लिए संघर्ष करने वालों में तुम्हारे प्रदेश से कौन-कौन व्यक्ति थे। उनमें से किसी एक के बारे में कक्षा में चर्चा करो।

4. क्या ठीक होगा?

(i) “दो दिन में जंगल में सड़क बनाने का काम शुरू होगा। तुम सब लोगों को इस काम पर पहुँचना है। अगर नहीं पहुँचे तो ठीक नहीं होगा।”

(ii) “काम करेंगे तो बदले में क्या मिलेगा।”

ऊपर के कथनों में पहला कथन तहसीलदार बेस्टीयन का है जो आदिवासियों के गाँवों में जाकर चिल्ला-चिल्लाकर बोला था और दूसरा कथन आदिवासियों में से किसी का है जो तहसीलदार से पूछना चाहा था। अब तुम सोचकर बताओ कि-

(क) तुम्हारे विचार से बेस्टियन का कथन ठीक होगा?

(ख) आदिवासियों में से किसी के द्वारा कहा गया वह कथन कैसा है? तुम्हरेरे विचार से क्या ठीक होगा?

(संकेतः- तुम अपनी पसंद से कथन को अपने ढंग से लिख सकते हो)

5. पता करो

(i) सड़क बनाने में किन-किन सामानों की ज़रूरत होती है? पता करके लिखो।

(ii) इन प्रदेशों में कौन-कौन से आदिवासी रहते हैं? पता करके लिखो?

(क) झारखंड

(ख) छत्तीसगढ़

(ग) उड़ीसा

(घ) मिजोरम

(ङ) अंडमान निकोबार द्वीप समूह

6. तुम्हारे विचार से

(क) राजू हाई स्कूल तक पढ़ाई करने के बाद जंगलों में रहने क्यों आया होगा?

(ख) राजू के शहीद होने का आदिवासियों के आंदोलन पर क्या असर हुआ होगा?

7. खोजबीन

“लोगों की बंदूकों के कारतूस खत्म हो गए।”

ऊपर का यह वाक्य इसी पाठ का है जिसमें आदिवासियों के द्वारा बंदूकों व कारतूसों के प्रयोग का भी प्रमाण मिलता है। इस पाठ की खोज़बीन करो तो पाओगे कि आदिवासी “पुलिस चौकियों या सेना पर हमला कर देते थे और उनके अस्त्र-शस्त्र लूटकर भाग जाते थे।” अब तुम ज़रूर समझ गए होंगे कि आदिवासियों ने बंदूकों व कारतूसों का प्रयोग कैसे किया। ‘कारतूसों’ ने सन् 1857 में स्वतंत्रता की चिंगारी को फैलाने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। समूह बनाकर इसके बारे में खोज़बीन करो। कक्षा के प्रत्येक समूह में से एक प्रतिनिधि सबको अपनी खोज़बीन के बारे में बताएगा।

8. मुहावरे

नीचे लिखे वाक्यों में मुहावरों का प्रयोग किया गया है। इन्हीं मुहावरों का प्रयोग करते हुए तुम कुछ नए वाक्य बनाओ।

(क) एक सिपाही ने उसका काम तमाम कर दिया।

(ख) आदिवासियों की हिम्मत जवाब देने लगी।

(ग) अंग्रेज़ों ने अपने दांतों तले उँगली दबा ली।

(घ) किसी को कानो-कान खबर न हो।

(ङ) अंग्रेज़ सरकार के छक्के छूट गए।

(च) अंग्रेज़ों के होश उड़ गए।

(छ) भारतीय सैनिकों का बालबाँका न होने पाए।

9. ‘मन और मन’

(क) आदिवासियों के साथ मन-मर्जी नहीं की जा सकती।

उसके पास कई मन गेहूँ था।

ऊपर के पहले वाक्य में ‘मन’ का मतलब है-दिल, हृदय।

दूसरे वाक्य में ‘मन’ नाप-तौल का एक शब्द है। इस तरह मन के दो अर्थ हैं। ऐसे शब्दों को अनेकार्थक शब्द कहते हैं। नीचे दिए गए शब्दों को पढ़ो और वाक्य बनाओ।

सोना - सो जाना (नींद)
स्वर्ण. एक धात
उत्तर - एक दिशा
जवाब
हार - पराजय, हार जाना
माला

10. वचन बदलो

(क) सिपाही ने राजू पर गोली चलाई। सिपाहियों ने $\quad$……………………………

(ख) उगी हुई फसल को जलाया जाने लगा $\quad$……………………………

(ग) आदिवासी की हिम्मत जवाब दे गई।$\quad$……………………………

(घ) आगे से यह सवाल मत पूछ्ना।$\quad$……………………………

11. समझकर रूप बदलो भाववाचक संज्ञा से विशेषण बनाओ।

भाववाचक संज्ञा से विशेषण बनाओ।

घमंड $\quad$ घमंडी

हिम्मत $\quad$ …………….

साहस $\quad$ …………….

स्वार्थ $\quad$ …………….

अत्याचार $\quad$ …………….

विद्रोह $\quad$ …………….



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