अध्याय 03 यायावर साम्राज्य

यायावर साम्राज्य की अवधारणा विरोधात्मक प्रतीत हो सकती है। यह तर्क दिया जा सकता है कि यायावर लोग मूलतः घुमक्कड़ होते हैं। यह भी कहा जा सकता है कि ये सापेक्षिक तौर पर एक अविभेदित आर्थिक जीवन और प्रारंभिक राजनीतिक संगठन के साथ परिवारों के समूहों में संगठित होते हैं। दूसरी ओर ‘साम्राज्य’ शब्द भौतिक अवस्थितियों को दर्शाता है। ‘साम्राज्य’ ने जटिल सामाजिक और आर्थिक ढाँचे में स्थिरता प्रदान की और एक सुपरिष्कृत प्रशासनिक-व्यवस्था के द्वारा एक व्यापक भूभागीय प्रदेश में सुचारु रूप से शासन प्रदान किया। लेकिन कई बार समाजशास्त्रियों की परिभाषाएँ बहुत संकीर्ण व गैर-ऐतिहासिक हो जाती हैं क्योंकि वे किसी बँधे-बँधाए साँचे में उन्हें ढालते हैं। ये परिभाषाएँ तब त्रुटिपूर्ण सिद्ध होती हैं जब हम यायावर समूहों द्वारा निर्मित उनके कुछ साम्राज्य संबंधी संगठनों का अध्ययन करते हैं।

अध्याय 4 में हमने इस्लामी इलाकों में राज्य-निर्माण का अध्ययन किया जो अरब-प्रायद्वीप की बदूदू यायावर-परंपरा पर आधारित था। इस अध्याय में एक भिन्न वर्ग के यायावरों का अध्ययन किया गया है। ये हैं मध्य-एशिया के मंगोल जिन्होंने तेरहवीं और चौदहवीं शताब्दी में पारमहाद्वीपीय साम्राज्य की स्थापना चंगेज़ खान के नेतृत्व में की थी। उसका साम्राज्य यूरोप और एशिया महाद्वीप तक विस्तृत था। कृषि पर आधारित चीन की साम्राज्यिक निर्माण-व्यवस्था की तुलना में शायद मंगोलिया के यायावर लोग दीन-हीन, जटिल जीवन से दूर एक सामान्य सामाजिक और आर्थिक परिवेश में जीवन बिता रहे थे; लेकिन मध्य-एशिया के ये यायावर एक ऐसे अलग-थलग ‘द्वीप’ के निवासी नहीं थे जिन पर ऐतिहासिक परिवर्तनों का प्रभाव न पड़े। इन समाजों ने विशाल विश्व के अनेक देशों से संपर्क रखा, उनके ऊपर अपना प्रभाव छोड़ा और उनसे बहुत कुछ सीखा जिनके वे एक महत्वपूर्ण अंग थे।

इस अध्याय से हमें ज्ञात होता है कि मंगोलों ने चंगेज़ खान के नेतृत्व में किस प्रकार अपनी पारंपरिक सामाजिक और राजनीतिक रीति-रिवाजों को रूपांतरित कर एक भयानक सैनिक-तंत्र और शासन संचालन की प्रभावी पद्धतियों का सूत्रपात किया। मंगोलों के सामने यह चुनौती थी कि वे केवल अपनी स्टेपी परंपराओं के ज़रिए हाल ही में विजित क्षेत्रों का शासन नहीं चला सकते थे। यह इस वजह से था कि इस नए क्षेत्र में उन्हें तरह-तरह के लोगों, अर्थव्यवस्थाओं और धर्मों का सामना करना पड़ा।

अपना ‘यायावर साम्राज्य’ बनाने के लिए उन्हें नए कदम उठाने पड़े और समझौते भी करने पड़े। इस साम्राज्य का यूरेशिया के इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा और इसने मंगोलों के समाज के चरित्र और संरंचना को हमेशा के लिए बदल डाला।

स्टेपी निवासियों ने आमतौर पर अपना कोई साहित्य नहीं रचा। इसीलिए हमारे इन यायावरी समाजों का ज्ञान मुख्यतः इतिवृतों, यात्रा-वृत्तांतों और नगरीय साहित्यकारों के दस्तावेज़ों से प्राप्त होता है। इन लेखकों की यायावरों के जीवन-संबंधी सूचनाएँ अज्ञात और पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हैं। मंगोलों की सम्राज्यिक सफलताओं ने अनेक विद्वानों को अपनी ओर आकर्षित किया। उनमें से कुछ ने अपने अनुभवों के यात्रावृत्तांत लिखे; अन्य मंगोल अधिपतियों के राज्याश्रय में रहे। इन व्यक्तियों की पृष्ठभूमि अलग-अलग थी। वे बौद्ध, कन्प्यूशियसवादी, ईसाई, तुर्क और मुसलमान थे। यद्यपि इन लोगों को मंगोल रीति-रिवाजों का ज्ञान नहीं था। इनमें से अनेक ने इनके विषय में सहानुभूतिपरक विवरण और यहाँ तक कि उनकी प्रशस्तियाँ भी लिखीं। ऐसे विवरणों ने यूरेशिया के शहरों से उपजे इन निंदापूर्ण लेखों को चुनौती दी जिनमें मंगोलों को स्टेपी लुटेरा बताकर हाशिए पर डाल दिया जाता था। इस सबसे मंगोलों की तस्वीर पहले से कहीं ज़्यादा जटिल हो गई। अतः मंगोलों का इतिहास हमें ऐसे रोचक तथ्य उपलन्ध कराता है जिससे कि सामान्यतया अभ्रमणशील समाजों द्वारा जिस ढंग से यायावर समुदायों को आदिम-बर्बर* के रूप में पेश किया गया है, उस पर प्रश्नचिह्न लग जाता है?

संभवतः मंगोलों पर सबसे बहुमूल्य शोध कार्य अठाहरवों और उन्नीसवीं शताब्दी में रूसी विद्वानों ने उस काल में किया जब ज़ार शासक मध्य-एशियाई क्षेत्रों में अपनी शक्ति को सुदृढ़ कर रहे थे। ये कार्य औपनिवेशिक वातावरण में हुए जो प्राय: हमें सर्वेक्षण-टिप्पणियों के रूप में मिलते हैं। इन्हें यात्रियों, सैनिकों, व्यापारियों और पुराविदों ने तैयार किया था। प्रारंभिक बीसवीं शताब्दी में इस क्षेत्र में सोवियत-गणराज्य के विस्तार के उपरांत नवीन मार्क्सवादी इतिहास-लेखन में यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रचलित उत्पादन-प्रणाली सामाजिक संबंधों की प्रकृति को निर्धारित करती है। इसने चंगेज़ खान और उभरते हुए मंगोल साम्राज्य को मानव विकास की उस संक्रमण व्यवस्था के दायरे में रखा जिसमें जनजातीय उत्पादन प्रणाली से सामंती उत्पादन प्रणाली की ओर परिवर्तन हो रहा था। ये परिवर्तन सापेक्षिक रूप से एक वर्गविहीन सामाजिक व्यवस्था से उस सामाजिक व्यवस्था की ओर हुआ जिसमें कृषक, भूस्वामी और लॉर्ड के बीच में एक विशाल अंतर पाया गया। इतिहास की ऐसी निर्धारित व्याख्या का अनुसरण करने पर भी मंगोल भाषाओं, उनके समाज और संस्कृति पर अतिउत्तम शोध बोरिस याकोवालेविच क्लाडिमीरस्टॉव (Boris Yakovlevich Vladimirtsov) जैसे अन्य विद्वानों ने किया। दूसरे अन्य विद्वान वैसिली व्लैदिमिरोविच बारटोल्ड (Vasily Vladimirovich Bartold) ने सोवियत विचारधारा का समर्थन नहीं किया। एक ऐसे समय जब स्टालिन के शासनकाल में आंचलिक राष्ट्रवाद के कारण घबराहट व्याप्त हो गई थी तब बारोल्ड के द्वारा चंगेज़ खान और उसके वंशजों के अधीन मंगोलों का जीवन और उनकी उपलब्धियों के सकारात्मक और सहानुभूतिपरक विवरण ने उन्हें अभिवेचकों (Censors) के रोष का पात्र बना दिया। उन्होंने बारटोल्ड की रचनाओं के प्रसार पर कठोरतापूर्वक पाबंदो लगा दी और केवल 1960 के दशक में उदारवादी खुश्चेव युग के दौरान और उसके उपरांत ही उनकी रचनाओं को नौ खंडों में प्रकाशित किया गया।

पारमहाद्वीपीय मंगोल साम्राज्य के विस्तार का मतलब यह भी था कि जो शोध के स्रोत विद्वानों को उपलन्ध हैं वे अनेक भाषाओं में रचे गए हैं। इनमें सबसे निर्णायक स्रोत चीनी, मंगोली, फ़ारसी और अरबी भाषा में उपलन्ध हैं पर महत्त्वपूर्ण सामग्रियाँ हमें इतालवी, लातिनी, फ्राँसीसी और रूसी-भाषा में भी मिलती हैं। अक्सर एक ही मूलग्रंथ भिन्न आशय के साथ दो अलग-अलग भाषाओं में प्रस्तुत किए गए हैं। उदाहरण के लिए चंगेज़ खान के विषय में सबसे प्राचीन विवरण मंगकोल-उन-न्यूतोविअन (Mongqol-un niuèa tobèa’an, मंगोलों के गोपनीय इतिहास) जो मंगोल और चीनी भाषा में मिलते हैं, एक-दूसरे से अलग हैं। इसी तरह मार्कोपोलो द्वारा मंगोल राजदरबार का यात्रावृत्तांत जो कि इतावली और लातिनी भाषा में उपलब्ध है वे एक दूसरे से मेल नहीं खाते। चूँकि मंगोलों ने अपने बारे में स्वयं बहुत कम साहित्य रचा और विदेशी सांस्कृतिक वातावरण में रहने वाले विद्वानों ने उनके बारे में ज्यादातर लिखा। अतः इतिहासकारों को, उन विदेशी मूल रचनाओं में जिन वाक्यांशों का प्रयोग हुआ है, उसका मंगोल भाषा के करीबी अर्थ निकालने के लिए, वाङ्गमीमांसक (philologist) की भूमिका अदा करनी पड़ती है। ईगेर दे रखेविल्ट्स (Igor de Rachewiltz) (मंगोलों का गोपनीय इतिहास) और गरहहार्ड डोरफर (Gerhard Doesrfer) (जिन्होंने ऐसी मंगोल और तुर्की शब्दावलियों पर काम किया जो फ़ारसी में शामिल हो गईं) जैसे विद्वानों की रचनाएँ मध्य-एशिया के यायावरों के इतिहास को पढ़ने की कठिनाइयों को उजागर करती हैं। हम इस अध्याय में आगे चलकर देखेंगे कि चंगेज़ खान और मंगोलों के विश्वव्यापी साम्राज्य के बारे में उनकी अविश्वसनीय उपलब्धि के बावजूद उद्यमी विद्वान अनुसंधानकर्ताओं को अभी बहुत कुछ छानबीन करना बाकी है।

*बर्बर (अंग्रेज़ी में बारबेरियन) शब्द यूनानी भाषा के बारबरोस (Barbaros) शब्द से उत्पन्न हुआ है जिसका तात्पर्य गैर-यूनानी लोगों से है जिनकी भाषा यूनानियों को बेतरतीब कोलाहल “बर-बर” के समान लगती थी। यूनानी ग्रंधों में बर्रों को बच्चों की तरह दिखाया गया है जो सुचारु रूप से बोलने या सोचने में असमर्थ, डरपोक, स्प्रैण, विलासत्रिय, निष्ठुर, आलसी, लालची और स्वशासन चलाने में असमर्थ थे। यह रूढ़िगत, घिसी-पिटी धारणाएँ रोमवासियों के पास गईं। रोमवासियों ने बर्बर शब्द का प्रयोग जर्मन जनजातियों गॉल (Gauls) और हूण (Huns) जैसे लोगों के लिए किया। चीनियों ने स्टेपी प्रदेश के बर्बरों के लिए दूसरे शब्दों का प्रयोग किया पर उनमें से किसी भी शब्द के सकारात्मक अर्थ नहीं थे।

भूमिका

तेरहवीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों में यूरो-एशियाई महाद्वीप के महान साम्राज्यों ने मध्य-एशिया के स्टेपी-प्रदेश में एक नयी राजनैतिक शक्ति के अभ्युदय के एक बड़े खतरे का अनुभव किया। चंगेज़ खान (मृत्यु 1227) ने मंगोलों को संगठित किया। पर चंगेज़ खान की राजनैतिक दूरदर्शिता

मानचित्र 1: मंगोल साम्राज्य।

मध्य-एशिया के स्टेपी-प्रदेश, मंगोल जातियों का एक महासंघ मात्र बनाने से कहीं अधिक दूरगामी थी। उसे ईश्वर से विश्व पर शासन करने का आदेश प्राप्त था। यद्यपि उसका अपना जीवन मंगोल जातियों पर कब्ज़ा जमाने में और साम्राज्य संलग्न क्षेत्र जैसे उत्तरी चीन, तुरान (ट्राँसओक्सिआना), अफ़गानिस्तान, पूर्वी ईरान, रूसी स्टेपी प्रदेशों के विरुद्ध युद्ध-अभियानों के नेतृत्व और प्रत्यक्ष संचालन में बीता; तथापि उसके वंशजों ने इस क्षेत्र से और आगे जाकर चंगेज़ खान के स्वप्न को सार्थक किया एवं दुनिया के सबसे विशाल साम्राज्य का निर्माण किया।

चंगेज़ खान के आदर्शों के मुताबिक उसके पोते, मोन्के (1251-60) ने फ्रांस के शासक लुई नौवें (1226-70) को यह चेतावनी दी, ‘स्वर्ग में केवल एक शाश्वत आकाश है और पृथ्वी का केवल एक अधिपति, चंगेज़ खान, स्वर्ग पुत्र… जब शाश्वत स्वर्ग की शक्ति से संपूर्ण विश्व, सूर्य के उदय से लेकर अस्त होने तक, आनंदित और शांति में रहेगा, तब यह स्पष्ट होगा कि हम क्या करने जा रहे हैं। यद्यपि आपने शाश्वत स्वर्ग की आज्ञत्ति को समझ लिया है फिर भी आप इस पर विश्वास न करते हुए ध्यान नहीं देना चाहते हैं और केवल यह कह देते हैं कि, “हमारा देश दूर है, हमारे पर्वत विराट हैं और हमारे समुद्र विशाल हैं।" अगर इस विश्वास के साथ आप हमारे विरुद्ध सैन्य बल लेकर आएंगे तो हम भी जानते हैं कि हम क्या कर सकते हैं। ऐसा उस शाश्वत स्वर्ग को भी पता है जिसने कठिनाई को आसान बनाया और सुदूर को निकट ला दिया।’

ये केवल कोरी धमकियाँ ही नहीं थीं। चंगेज़ खान के एक दूसरे पोते बाटू (Batu) ने अपने 1236-1241 के अभियानों में रूस की भूमि को मास्को तक रौंद डाला और पोलैंड, हंगरी पर विजय प्राप्त कर वियना के बाहर पड़ाव डाल दिया। तेरहवीं शताब्दी तक यह लगने लगा कि शाश्वत आकाश मंगोलों के पक्ष में था। चीन के अधिकांश भाग, मध्यपूर्व एशिया और यूरोप यह मानने लगे कि चंगेज़ खान की आबाद दुनिया पर विजय ‘ईश्वर का गुस्सा’ है और यह कयामत के दिन की शुरुआत है।

बुखारा पर कब्ज़ा

परवर्ती तेरहवों शताब्दी के ईरान के मंगोल शासकों के एक फ़ारसी इतिवृत्तकार जुवैनी (Juwaini) ने 1220 ई. में बुखारा की विजय का वृत्तांत दिया है। जुवैनी के कथनानुसार नगर की विजय के बाद चंगेज खान उत्सव मैदान में गया जहाँ पर नगर के धनी व्यापारी एकत्रित थे। उसने उन्हें संबोधित कर कहा, “अरे लोगों! तुम्हें यह ज्ञात होना चाहिए कि तुम लोगों ने अनेक पाप किए हैं और तुममें से जो अधिक सम्पन्न लोग हैं उन्होंने सबसे अधिक पाप किए हैं। अगर तुम मुझसे पूछो कि इसका मेरे पास क्या प्रमाण है तो इसके लिए मैं कहूँगा कि मैं ईश्वर का दंड हूँ। यदि तुमने पाप न किए होते तो ईश्वर ने मुझे दंड हेतु तुम्हारे पास न भेजा होता…” अब कोई व्यक्ति, बुखारा पर अधिकार होने के बाद खुरासान भाग गया था। उससे नगर के भाग्य के बारे में पूछने पर उसने उत्तर दिया, ‘वे (नगर) आए, दीवारों को ध्वस्त कर दिया, जला दिया, लोगों का वध किया, लूटा और चल दिए।’

क्रियाकलाप 1

यदि यह मान लें कि जुवैनी का बुखारा पर कब्ज़े का वृत्तांत सही है, कल्पना करें कि आप बुखारा और खुरासान के निवासी हैं और ऐसा भाषण सुन रहे हैं तो उस भाषण का आपके ऊपर क्या प्रभाव पड़ेगा?

मंगोलों ने किस प्रकार अपने साम्राज्य का निर्माण किया और दूसरे ‘विश्व-विजेता’ सिकंदर की उपलब्धियों को बौना बना दिया? पूर्व-औद्योगिक काल में जब प्रौद्योगिकी संचार-व्यवस्था अपर्याप्त थी तब मंगोलों ने अपने विशाल साम्राज्य के शासन और उसे नियंत्रित करने के लिए किन कौशलों का प्रयोग किया? ऐसे एक व्यक्ति जिसे अपने नैतिक और शासन के दैवी-अधिकारों के प्रति इतना आत्मविश्वास था, चंगेज़ खान ने अपने अधिकार क्षेत्र में बसे हुए विविध सामाजिक तथा धार्मिक समुदायों के साथ किस तरह संबंध रखा होगा? उसकी राजसत्ता (Imperium) के विकास में इस बहुविविधता (plurality) का क्या हुआ? जो भी हो मंगोलों तथा चंगेज़ खान की सामाजिक और राजनीतिक पृष्ठभूमि को बेहतर ढंग से समझने के लिए ये उचित होगा कि हम अपनी चर्चा चंद साधारण प्रश्नों से शुरू करें जैसे कि मंगोल कौन थे? वे कहाँ रहते थे? उनके संबंध किनके साथ थे और उनके समाज और राजनीति के बारे में हमें जानकारी कहाँ से मिलती है?

मंगोलों की सामाजिक और राजनैतिक पृष्ठभूमि

मंगोल विविध जनसमुदाय का एक निकाय था। ये लोग पूर्व में तातार, खितान और मंचू लोगों से और पश्चिम में तुर्को कबीलों से भाषागत समानता होने के कारण परस्पर सम्बद्ध थे। कुछ मंगोल पशुपालक थे और कुछ शिकारी संग्राहक थे। पशुपालक घोड़ों, भेड़ों और कुछ हद तक अन्य पशुओं जैसे बकरी और ऊँटों को भी पालते थे। उनका यायावरीकरण मध्यएशिया की चारण भूमि (स्टेपीज) में हुआ जोकि आज के आधुनिक मंगोलिया राज्य का भूभाग है। इस क्षेत्र का परिदृश्य आज जैसा ही अत्यंत मनोरम था और क्षितिज अत्यंत विस्तृत और लहरिया मैदानों से घिरा था जिसके पश्चिमी भाग में अल्ताई पहाड़ों की बऱ़्ीली चोटियाँ थीं। दक्षिण भाग में शुष्क गोबी का मरुस्थल इसके उत्तर और पश्चिम क्षेत्र में ओनोन और सेलेंगा जैसी नदियों और बर्फ़ीली पहाड़ियों से निकले सैकड़ों झरनों के पानी से सिंचित हो रहा था। पशुचारण के लिए यहाँ पर अनेक हरी घास के मैदान और प्रचुर मात्रा में छोटे-मोटे शिकार अनुकूल ऋतुओं में उपलब्ध हो जाते थे। शिकारी-संग्राहक लोग, पशुपालक कबीलों के आवास-क्षेत्र के उत्तर में साइबेरियाई वनों में रहते थे।

ओनोन नदी के मैदान में बाढ़।

वे पशुपालक लोगों की तुलना में अधिक गरीब होते थे और ग्रीष्म काल में पकड़े गए जानवरों की खाल के व्यापार से अपना जीविकोपार्जन करते थे। इस पूरे क्षेत्र के अधिकतम और न्यूनतम तापमान में बहुत अंतर पाया जाता था : कठोर और लंबे शीत के मौसम के बाद अल्पकालीन और शुष्क गर्मियों की अवधि आती थी। चारण क्षेत्र में साल की सीमित अवधियों में ही कृषि करना संभव था पंरतु मंगोलों ने (अपने पश्चिम के तुर्कों के विपरीत) कृषि कार्य को नहीं अपनाया। न ही पशुपालकों और न ही शिकारी संग्राहकों की अर्थव्यवस्था घने आबादी वाले क्षेत्रों का भरण पोषण करने में समर्थ थी। परिणामस्वरूप इन क्षेत्रों में कोई नगर नहीं उभर पाए। मंगोल तंबुओं और जरों (gers) में निवास करते थे और अपने पशुधन के साथ शीतकालीन निवास स्थल से ग्रीष्मकालीन चारण भूमि की ओर चले जाते थे।

नृजातीय और भाषायी संबंधों ने मंगोल लोगों को परस्पर जोड़ रखा था, पर उपलब्ध आर्धिक संसाधनों में कमी होने के कारण उनका समाज अनेक पितृपक्षीय वंशों में विभाजित था। धनी-परिवार विशाल होते थे, उनके पास अधिक संख्या में पशु और चारण भूमि होती थी। इस कारण उनके अनेक अनुयायी होते थे और स्थानीय राजनीति में उनका अधिक दबदबा होता था। समय-समय पर आने वाली प्राकृतिक आपदाएँ जैसे भीषण शीत-ऋतु के दौरान एकत्रित की गई शिकार-सामग्रियाँ और अन्य भंडार में रखी हुई सामग्रियाँ समाप्त हो जाने की स्थिति में अथवा वर्षा न होने पर घास के मैदानों के सूख जाने पर उन्हें चरागाहों की खोज में भटकना पड़ता था। इस दौरान उनमें संघर्ष होता था। पशुधन को प्राप्त करने के लिए वे लूटपाट भी करते थे। प्रायः परिवारों के समूह आक्रमण करने और अपनी रक्षा करने हेतु अधिक शक्तिशाली और संपन्न कुलों से मित्रता कर लेते थे और परिसंघ बना लेते थे। कुछ अपवादों को छोड़कर ऐसे परिसंघ प्राय: बहुत छोटे और अल्पकालिक होते थे। मंगोल और तुर्की कबीलों को मिलाकर चंगेज़ खान द्वारा बनाया गया परिसंघ पाँचवीं शताब्दी के अट्टीला (मृत्यु 453 ई.) द्वारा बनाए गए परिसंघ के बराबर था।

अट्टीला के बनाए परिसंघ के विपरीत चंगेज़ खान की राजनीतिक व्यवस्था बहुत अधिक स्थायी रही और अपने संस्थापक की मृत्यु के बाद भी कायम रही। यह व्यवस्था इतनी स्थायी थी कि चीन, ईरान और पूर्वी यूरोपीय देशों की उन्नत शस्त्रों से लैस विशाल सेनाओं का मुकाबला करने में सक्षम थी। मंगोलों ने इन क्षेत्रों में नियंत्रण स्थापित करने के साथ ही साथ जटिल कृषि-अर्थव्यवस्थाएँ एवं, नगरीय आवासों - स्थानबद्ध समाजों (sedentary societies) का बड़ी कुशलता से प्रशासन किया। मंगोलों के अपने सामाजिक अनुभव और रहने के तौर-तरीके इनसे बिलकुल ही भिन्न थे।

नीचे मध्य-एशियाई स्टेपी-क्षेत्र के तुर्क और मंगोल लोगों के कुछ महान परिसंघों की सूची दी गई है। इन सारे परिसंघों ने एक ही क्षेत्र पर अधिकार नहीं जमाया और न ही ये क्षेत्रफल में समान थे और न ही इनका आंतरिक संगठन एक जैसा जटिल था।

यद्यपि इनका यायावरी जन समुदाय के इतिहास पर विशेष प्रभाव पड़ा परंतु चीन और समीपवर्ती क्षेत्रों पर इनका प्रभाव भिन्न-भिन्न था।
सिउंग-नु (Hsiung-nu) (200 ई.पू.) (तुर्क) जुआन-जुआन (Juanjuan) (400 ई.) (मंगोल)
एफ़थलैट हूण (Epthalite Huns) (400 ई.) (मंगोल)
तू-चे (T’u-chueh) (550 ई.) (तुर्क)
उइग़ुर (Uighurs) (740 ई.) (तुर्क)
खितान (Khitan) ( 940 ई.) (मंगोल)

यद्यपि यायावरी सामाजिक और राजनीतिक संगठन कृषि अर्थव्यवस्थाओं से बहुत भिन्न थे, पर ये दोनों समाज एक दूसरे की व्यवस्था से अनभिज्ञ नहीं थे। वास्तव में स्टेपी क्षेत्र में संसाधनों की कमी के कारण मंगोलों और मध्य-एशिया के यायावरों को व्यापार और वस्तु-विनिमय के लिए उनके पड़ोसी चीन के स्थायी निवासियों के पास जाना पड़ता था। यह व्यवस्था दोनों पक्षों के लिए लाभकारी थी। यायावर कबीले खेती से प्राप्त उत्पादों और लोहे के उपकरणों को चीन से लाते थे और घोड़े, फ़र और स्टेपी में पकड़े गए शिकार का विनिमय करते थे। उन्हें वाणिज्यिक क्रियाकलापों में काफी तनाव का सामना करना पड़ता था क्योंकि दोनों पक्ष अधिक लाभ प्राप्त करने की होड़ में बेधड़क सैनिक कार्यवाही भी कर बैठते थे। जब मंगोल कबीलों के लोग साथ मिलकर व्यापार करते थे तो वे अपने चीनी पड़ोसियों को व्यापार में बेहतर शर्तें रखने के लिए मजबूर कर देते थे। कभी-कभी ये लोग व्यापारिक संबंधों को नकार कर केवल लूटपाट करने लगते थे। मंगोलों का जीवन अस्त-व्यस्त होने पर ही इन संबंधों में बदलाव आता था। ऐसी स्थिति में चीनी लोग अपने प्रभाव का प्रयोग, स्टेपी-क्षेत्र में बड़े आत्मविश्वास से करते थे। इन सीमावर्ती झड़पों से स्थायी समाज कमज़ोर पड़ने लगे। उन्होंने कृषि को अव्यवस्थित कर दिया और नगरों को लूटा। दूसरी ओर यायावर, लूटपाट कर संघर्ष क्षेत्र से दूर भाग जाते थे जिससे उन्हें बहुत कम हानि होती थी। अपने संपूर्ण इतिहास में चीन को इन यायावरों से विभिन्न शासन-कालों में बहुत अधिक क्षति पहुँची। यहाँ तक कि आठवीं शताब्दी ई.पू. से ही अपनी प्रजा की रक्षा के लिए चीनी शासकों ने किलेबंदी करना प्रारंभ कर दिया था। तीसरी शताब्दी ई.पू. से इन किलेबंदियों का एकीकरण सामान्य रक्षात्मक ढाँचे के रूप में किया गया जिसे आज ‘चीन की महान दीवार’ के रूप में जाना जाता है। उत्तरी चीन के कृषक समाजों पर यायावरों द्वारा लगातार हुए हमलों और उनसे पनपते अस्थिरता और भय का यह एक प्रभावशाली चाक्षुष साक्ष्य है।

चंगेज़ खान का जीवन-वृत्त

चंगेज़ खान का जन्म 1162 ई. के आसपास आधुनिक मंगोलिया के उत्तरी भाग में ओनोन नदी के निकट हुआ था। उसका प्रारंभिक नाम तेमुजिन था। उसके पिता का नाम येसूजेई (Yesugei) था जो कियात कबीले का मुखिया था। यह एक परिवारों का समूह था और बोरजिगिद (Borjigid) कुल से संबंधित था। उसके पिता की अल्पायु में ही हत्या कर दी गई थी और उसकी माता ओलुन-इके (Oelun-eke) ने तेमुजिन और उसके सगे तथा सौतेले भाइयों का लालन-पालन बड़ी कठिनाई से किया था। 1170 का दशक विपर्यायों से भरा था- तेमुजिन का अपहरण कर उसे दास बना लिया गया और उसकी पत्नी बोरटे (Borte) का भी विवाह के उपरांत अपहरण कर लिया गया और अपनी पत्नी को छुड़ाने के लिए उसे लड़ाई लड़नी पड़ी। विपत्ति के इन वर्षों में भी वह अनेक मित्र बनाने में कायमाब रहा। नवयुवक बोघूरचू (Boghurchu) उसका प्रथम-मित्र था और सदैव एक विश्वस्त साथी के रूप में उसके साथ रहा। उसका सगा भाई (आंडा) जमूका भी उसका एक और विश्वसनीय मित्र था। तेमुजिन ने कैराईट (Kereyite) लोगों के शासक व अपने पिता के वृद्ध सगे भाई तुगरिल उर्फ ओंग खान के साथ पुराने रिश्तों की पुनस्स्थापना की।

यद्यपि जमूका उसका पुराना मित्र था, बाद में वह उसका शत्रु बन गया। 1180 और 1190 के दशकों में तेमुजिन ओंग खान का मित्र रहा और उसने इस मित्रता का इस्तेमाल जमूका जैसे शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वियों को परास्त करने के लिए किया। जमूका को पराजित करने के बाद तेमुजिन में काफी आत्म-विश्वास आ गया और अब वह अन्य कबीलों के विरुद्ध युद्ध के लिए निकल पड़ा। इनमें से उसके पिता के हत्यारे, शक्तिशाली तातार कैराईट और खुद ओंग खान जिसके विरुद्ध उसने 1203 में युद्ध छेड़ा। 1206 में शक्तिशाली जमूका और नेमन लोगों को निर्णायक रूप से पराजित करने के बाद तेमुजिन स्टेपी-क्षेत्र की राजनीति में सबसे प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में उभरा। उसकी इस प्रतिष्ठा को मंगोल कबीले के सरदारों की एक सभा (कुरिलताई) में मान्यता मिली और उसे चंगेज़ खान ‘समुद्री खान’ या ‘सार्वभौम शासक’ की उपाधि के साथ मंगोलों का महानायक (Ga’an/Great Khan) घोषित किया गया।

1206 ई. में कुरिलताई से मान्यता मिलने से पूर्व चंगेज़ खान ने मंगोल लोगों को एक सशक्त अनुशासित सैन्य-शक्ति (निम्नलिखित अनुभागों को देखें) के रूप में पुनर्गठित कर लिया था जिससे उसके भविष्य में किए गए सैन्य अभियान की सफलता एक प्रकार से तय हो गई। उसकी पहली मंशा चीन पर विजय प्राप्त करने की थी जो उस समय तीन राज्यों में विभक्त था। वे थेउत्तर-पश्चिमी प्रांतों के तिब्बती मूल के सी-सिआ लोग (Hsi Hsia); जरचेन लोगों के चिन राजवंश जो पेकिंग से उत्तरी चीन क्षेत्र का शासन चला रहे थे; शुंग राजवंश जिनके आधिपत्य में दक्षिणी चीन था। 1209 में सी-सिआ लोग परास्त हो गए। 1213 ई. में चीन की महान दीवार का अतिक्रमण हो गया। 1215 ई. में पेकिंग नगर को लूटा गया। चिन वंश के विरुद्ध 1234 तक लंबी लड़ाइयाँ चलों पर चंगेज़ खान अपने अभियानों की प्रगति से खूब संतुष्ट था और इसलिए उस क्षेत्र के सैनिक मामले अपने अधीनस्थों की देखरेख में छोड़कर 1216 में मंगोलिया स्थित अपनी मातृभूमि में लौट आया।

1218 ई. में करा खिता (Gara Khita) की पराजय के बाद जो चीन के उत्तर पश्चिमी भाग में स्थित तियेन-शान की पहाड़ियों को नियंत्रित करती थीं, मंगोलों का साम्राज्य अमू दरिया, तुरान और ख्वारज़म राज्यों तक विस्तृत हो गया। ख्वारज़म का सुल्तान मोहम्मद चंगेज़ खान के प्रचंड कोप का भाजक बना जब उसने मंगोल दूतों का वध कर दिया। 1219 और 1221 ई. तक के अभियानों में बड़े नगरों - ओट्रार, बुखारा, समरकंद, बल्ख़, गुरगंज, मर्व, निशापुर और हेरात ने मंगोल सेनाओं के सम्मुख समर्पण कर दिया। जिन नगरों ने प्रतिरोध किया उनका विध्वंस कर दिया गया। निशापुर में घेरा डालने के दौरान जब एक मंगोल राजकुमार की हत्या कर दी गई तो चंगेज़ खान ने आदेश दिया कि, “नगर को इस तरह विध्वंस किया जाए कि संपूर्ण नगर में हल चलाया जा सके; अपने प्रतिशोध (राजकुमार की हत्या के लिए) को उग्र रूप देने के लिए ऐसा संहार किया जाए कि नगर के समस्त बिल्ली और कुत्तों को भी जीवित न रहने दिया जाए।”

मंगोल सेनाएँ सुल्तान मोहम्मद का पीछा करते हुए अज़रबैैान तक चली आईं और क्रीमिया में रूसी सेनाओं को हराने के साथ-साथ उन्होंने कैस्पियन सागर को घेर लिया।

मंगोलों द्वारा किए गए विनाश का आकलन

चंगेज़ खान के अभियानों के विषय में प्राप्त समस्त विवरण इस पर सहमत हैं कि जिन नगरों ने उनका प्रभुत्व स्वीकार नहीं किया उन पर अधिकार जमाने के बाद वहाँ रहने वाले बहुत से लोगों को उसने मौत के घाट उतार दिया। इनकी संख्या बहुत चौंका देने वाली है। 1220 ई. में निशापुर पर आधिपत्य करने में 17,47,000, जबकि 1222 ई. हिरात पर आधिपत्य करने में 16,00,000 और 1258 में बगदाद पर आधिपत्य करते समय 8,00,000 लोगों का वध किया गया। छोटे नगरों में सापेक्षिक रूप से कम नरसंहार हुआ। नासा में 70,000 , बैहाक ज़िले में 70,000 और कुहिस्तान प्रांत के तून नगर में 12,000 लोगों को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा।

मध्यकालीन इतिवृत्तकारों ने मृतकों की संख्या का अनुमान कैसे लगाया?
इलखानों के फ़ारसी इतिवृत्तकार जुवैनी ने बताया कि मर्व में 13,00,000 लोगों का वध किया गया।
उसने इस संख्या का अनुमान इस प्रकार लगाया कि तेरह दिन तक 1,00,000 शव प्रतिदिन गिने जाते थे।

$\quad$ सम्मुख पृष्ठ पर : यूरोपीय कलाकारों द्वारा ‘बर्बरों’ का कल्पित चित्र

सेना की दूसरी टुकड़ी ने सुल्तान के पुत्र जलालुद्दीन का अफ़गानिस्तान और सिंध प्रदेश तक पीछा किया। सिंधु नदी के तट पर चंगेज़ खान ने उत्तरी भारत और असम मार्ग से मंगोलिया वापस लौटने का विचार किया परंतु असह्य गर्मी, प्राकृतिक आवास की कठिनाइयों तथा उसके शमन निमित्तज्ञ द्वारा दिए गए अशुभ संकेतों के आभास ने उसे अपने विचारों को बदलने के लिए बाध्य किया।

अपने जीवन का अधिकांश भाग युद्धों में व्यतीत करने के बाद 1227 में चंगेज़ खान की मृत्यु हो गई। उसकी सैनिक उपलब्धियाँ विस्मित कर देने वाली थीं। यह बहुत हद तक स्टेपी-क्षेत्र की युद्ध शैली के बहुत से आयामों को आवश्यकतानुसार परिवर्तन और सुधार करके उसको प्रभावशाली रणनीति में बदल पाने का परिणाम था। मंगोलों और तुर्कों के घुड़सवारी कौशल ने उसकी सेना को गति प्रदान की थी। घोड़े पर सवार होकर उनकी तीरंदाज़ी का कौशल अद्भुत था जिसे उन्होंने अपने दैनिक जीवन में जंगलों में पशुओं का आखेट करते समय प्राप्त किया था। उनके इस घुड़सवारी तीरंदाज़ी के अनुभव ने उनकी सैनिक-गति को बहुत तेज़ कर दिया। स्टेपी-प्रदेश के घुड़सवार सदैव फुर्तीले और बड़ी तेज़ गति से यात्रा करते थे। अब उन्हें अपने आसपास के भूभागों और मौसम की जानकारी हो गई जिसने उन्हें अकल्पनीय कार्य करने की क्षमता प्रदान की। उन्होंने घोर शीत-ऋतु में युद्ध-अभियान प्रारंभ किए तथा उनके नगरों और शिविरों में प्रवेश करने के लिए बर्फ़ से जमी हुई नदियों का राजमार्गों की तरह प्रयोग किया। यायावर लोग अपनी परंपराओं के अनुसार प्राचीरों के आरक्षित शिविरों में पैठ बनाने में सक्षम नहीं थे, पर चंगेज़ खान ने घेराबंदी-यंत्र (Siege-engine) और नेफ्था बमबारी के महत्त्व को शीघ्र जाना। उसके इंजीनियरों ने उसके शत्रुओं के विर्द्ध अभियानों में इस्तेमाल के लिए हलके चल-उपस्कर (Light portable equipment) का निर्माण किया जिसके युद्ध में घातक प्रभाव होते थे।

चंगेज़ खान के उपरांत मंगोल

चंगेज़ खान की मृत्यु के पश्चात हम मंगोल साम्राज्य को दो चरणों में विभाजित कर सकते हैं। पहला चरण 1236-1242 तक था जिसके दौरान रूस के स्टेपी-क्षेत्र, बुलघार, कीव, पोलैंड तथा हंगरी में भारी सफलता प्राप्त की गई। दूसरा चरण 1255-1300 तक रहा जिसमें समस्त चीन (सन् 1279), ईरान, इराक और सीरिया पर विजय प्राप्त की गई। इन अभियानों के पश्चात साम्राज्य की परिसीमाओं में स्थिरता आई।

सन् 1203 के बाद के दशकों में मंगोल सेनाओं को बहुत कम विपर्याय का सामना करना पड़ा परंतु यह ध्यान देने योग्य है कि सन् 1260 के दशक के बाद पश्चिम के सैन्य अभियानों के शुरुआती आवेग को जारी रखना संभव नहीं हो पाया। यद्यपि वियना और उससे परे पश्चिमी यूरोप एवं मिस्न मंगोल सेनाओं के अधिकार में ही रहे। तथापि उनके हंगरी के स्टेपी-क्षेत्र से पीछे हट जाने और मिस्त की सेनाओं द्वारा पराजित होने से नवीन राजनीतिक प्रवृत्तियों के उदय होने के संकेत मिले। इस प्रवृत्ति के दो पहलू थे। पहला, मंगोल परिवार में उत्तराधिकार को लेकर आंतरिक राजनीति थी। जब प्रथम दो पीढ़ियाँ जोची और ओगोदेई के उत्तराधिकारी महान खान के राज्य पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए एकजुट हो गए। अब उनके लिए यूरोप में अभियान करने की अपेक्षा अपने इन हितों की रक्षा करना अधिक महत्त्वपूर्ण हो गया। दूसरी स्थिति तब उत्पन्न हुई जब चंगेज़ खान के वंश की तोलूयिद शाखा के उत्तराधिकारियों ने जोची और ओगोदेई वंशों को कमज़ोर कर दिया। मोंके जो चंगेज़ खान के सबसे छोटे पुत्र तोलूई का वंशज था उसके राज्याभिषेक के उपरांत 1250 ई. के दशक में ईरान में शक्तिशाली अभियान किए गए। परंतु 1260 ई. के दशक में तोलूई के वंशजों ने चीन में अपने हितों की वृद्धि की तो उसी समय सैनिकों और रसद-सामग्रियों को मंगोल साम्राज्य के मुख्य भागों की ओर भेज दिया गया। इसके परिणामस्वरूप मिस्न की सेना का सामना करने के लिए मंगोलों ने एक छोटी, अपर्याप्त सेना भेजी। मंगोलों की पराजय और तोलूई परिवार की चीन के प्रति निरंतर बढ़ती हुई रुचि से उनका पश्चिम की ओर विस्तार रुक गया। इसी दौरान रूस और चीन की सीमा पर जोची और तोलूई वंशजों के अंदरूनी झगड़ों ने जोची वंशजों का ध्यान उनके संभावित यूरोपीय अभियानों से हटा दिया।

पश्चिम में मंगोलों का विस्तार रुक जाने से चीन में उनके अभियान शिथिल नहीं हुए। वस्तुतः उन्होंने चीन को एकीकृत किया। ये विरोधाभास है कि सबसे बड़ी सफलताओं को प्राप्त करने के समय ही शासक-परिवार के सदस्यों के मध्य आंतरिक विक्षोभ दिखाई देने लगे। इस अध्याय के अगले अनुभाग में उन कारकों की चर्चा की जाएगी जिनके चलते मंगोलों को महान राजनैतिक सफलताएँ प्राप्त हुईं परंतु उन्हों वजहों से उनकी प्रगति में बाधाएँ भी आईं।

सामाजिक, राजनैतिक और सैनिक संगठन

मंगोलों और अन्य अनेक यायावर समाजों में प्रत्येक तंदुरुस्त वयस्क सदस्य हथियारबंद होते थे। जब कभी आवश्यकता होती थी तो इन्हों लोगों से सशस्त्र सेना बनती थी। विभिन्न मंगोल जनजातियों के एकीकरण और उसके पश्चात विभिन्न लोगों के खिलाफ अभियानों से चंगेज़ खान की सेना में नए सदस्य शामिल हुए। इससे उनकी सेना जोकि अपेक्षाकृत रूप से छोटी और अविभेदित समूह थी, वह अविश्वसनीय रूप से एक विशाल विषमजातीय संगठन में परिवर्तित हो गई। इसमें उनकी सत्ता को स्वेच्छा से स्वीकार करने वाले तुर्कीमूल के उइग़र समुदाय के लोग सम्मिलित थे। केराइटों जैसे पराजित लोग भी इसमें सम्मिलित थे जिन्हें अपनी पुरानी शत्रुता के बावजूद महासंघ में शामिल कर लिया गया।

चंगेज़ खान उन विभिन्न जनजातीय समूहों जो उसके महासंघ के सदस्य थे, की पहचान को योजनाबद्ध रूप से मिटाने को कृत-संकल्प था। उसकी सेना स्टेपी-क्षेत्रों की पुरानी दशमलव पद्धति के अनुसार गठित की गई। जो दस, सौ, हज़ार और (अनुमानित) दसहज़ार सैनिकों की इकाई में विभाजित थी। पुरानी पद्धति में कुल (clan), कबीले (tribe) और सैनिक दशमलव इकाइयाँ एक साथ अस्तित्व में थीं। चंगेज़ खान ने इस प्रथा को समाप्त कर दिया। उसने प्राचीन जनजातीय समूहों को विभाजित कर उनके सदस्यों को नवीन सैनिक इकाइयों में विभक्त कर दिया। उस व्यक्ति को जो अपने अधिकारी से अनुमति लिए बिना बाहर जाने की चेष्टा करता था, उसे कठोर दंड दिया जाता था। सैनिकों की सबसे बड़ी इकाई लगभग दस हज़ार सैनिकों (तुमन) की थी जिसमें अनेक कबीलों और कुलों के लोग शामिल होते थे। उसने स्टेपी-क्षेत्र की पुरानी सामाजिक व्यवस्था को परिवर्तित किया और विभिन्न वंशों तथा कुलों को एकीकृत कर इसके जनक चंगेज़ खान ने इन सभी को एक नवीन पहचान प्रदान की।

नयी सैनिक टुकड़ियों को, जो उसके चार पुत्रों के अधीन थीं और विशेष रूप से चयनित कप्तानों के अधीन कार्य करती थी; नोयान कहा जाता था। इस नयी व्यवस्था में उसके अनुयायियों का वह समूह भी शामिल था जिन्होंने बड़ी निष्ठा से, कई वर्ष घोर प्रतिकूल अवस्था में भी चंगेज़ खान का साथ दिया था। चंगेज़ खान ने सार्वजनिक रूप से अनेक ऐसे व्यक्तियों को आंडा (सगा भाई) कहकर सम्मानित किया था। ऐसे अन्य और भी कई जो आंडा से निम्न श्रेणी के थे। स्वतंत्र व्यक्ति थे, इनको चंगेज़ खान ने अपने खास नौकर के पद पर रखा। नौकर का पद इन लोगों का अपने स्वामी के साथ गहरा संबंध दर्शाता था।

इस तरह से नए वर्गीकरण ने पूर्व से चले आ रहे सरदारों के अधिकारों को सुरक्षित नहीं रखा। जबकि नए तरह से उभरे अभिजात्य वर्ग ने अपनी प्रतिष्ठा मंगोलों के महानायक के साथ अपने करीबी रिश्ते से प्राप्त की।

इस नवीन श्रेणी (hierarchy) में चंगेज़ खान ने अपने नव-विजित लोगों पर शासन करने का उत्तरदायित्व अपने चार पुत्रों को सौंप दिया। इससे उलुस (Ulus) का गठन हुआ। उलुस शब्द का मूल अर्थ निश्चित भूभाग नहों था। चंगेज़ खान का जीवन काल अभी भी निरंतर विजयों और साम्राज्य को अधिक से अधिक बढ़ाने का युग था और जिसकी सीमाएँ अत्यंत परिवर्तनशील थीं। उसके सबसे ज्येष्ठ पुत्र जोची को रूसी स्टेपी-प्रदेश प्राप्त हुआ। परंतु उसकी दूरस्थ सीमा (उलुस) निर्धारित नहीं थी। इसका विस्तार सुदूर पश्चिम तक विस्तृत था जहाँ तक उसके घोड़े स्वेच्छापूर्वक भ्रमण कर सकते थे।

उसके दूसरे पुत्र चघताई को तूरान का स्टेपी-क्षेत्र तथा पामीर के पहाड़ का उत्तरी क्षेत्र भी मिला जो उसके भाई के प्रदेश से लगा हुआ था। संभवतः वह जैसे-जैसे पश्चिम की ओर बढ़ता गया होगा वैसे-वैसे यह अधिकार क्षेत्र भी परिवर्तित होता गया होगा।

चंगेज़ खान ने संकेत किया था कि उसका तीसरा पुत्र ओगोदेई उसका उत्तराधिकारी होगा और उसे महान खान की उपाधि दी जाएगी। इस राजकुमार ने अपने राज्याभिषेक के बाद अपनी राजधानी कराकोरम में प्रतिष्ठित की। उसके सबसे छोटे पुत्र तोलोए ने अपनी पैतृक भूमि मंगोलिया को प्राप्त किया। चंगेज़ खान का यह विचार था कि उसके पुत्र परस्पर मिलजुल कर साम्राज्य का शासन करेंगे और इसे ध्यान में रखते हुए उसने विभिन्न राजकुमारों के लिए अलग-अलग सैै्य-टुकड़ियाँ (तामा) निर्धारित कर दीं जो प्रत्येक उलुस में तैनात रहती थीं। परिवार के सदस्यों में राज्य की भागीदारी का बोध सरदारों की परिषद (किरिलताई) में होता था जिसमें परिवार या राज्य के भविष्य के निर्णय, अभियानों, लूट के माल का बँटवारा, चरागाह भूमि और उत्तराधिकार आदि के समस्त निर्णय, सामूहिक रूप से लिए जाते थे।


चंगेज़ खान ने पहले से ही एक फुर्तीली हरकारा पद्धति अपना रखी थी जिससे राज्य के दूरदराज़ के स्थानों में परस्पर सम्पर्क रखा जाता था। अपेक्षित दूरी पर निर्मित सैनिक चौकियों में स्वस्थ एवं बलवान घोड़े तथा घुड़सवार संदेशवाहक तैनात रहते थे। इस संचार पद्धति की व्यवस्था करने के लिए मंगोल यायावर अपने पशु-समूहों से अपने घोड़े अथवा अन्य पशुओं का दसवाँ हिस्सा प्रदान करते थे। इसे कुबकुर (qubcur) कर कहते थे। इस उगाही (levy) को यायावर लोग अपनी स्वेच्छा से प्रदान करते थे, जिससे उन्हें अनेक लाभ प्राप्त होते थे। चंगेज़ खान की मृत्यु के उपरांत इस हरकारी पद्धति (याम) में और भी सुधार लाया गया। इस पद्धति की गति तथा विश्वसनीयता यात्रियों को आश्चर्य में डाल देती थी। इससे महान खानों को अपने विस्तृत महाद्वीपीय साम्राज्य के सुदूर स्थानों में होने वाली घटनाओं की निगरानी करने में सहायता मिलती थी।

तथापि, विजित लोगों को अपने नवीन यायावर शासकों से कोई लगाव नहीं था। तेरहवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में हुए युद्धों में अनेक नगर नष्ट कर दिए गए, कृषि भूमि को हानि हुई, व्यापार चौपट हो गया तथा दस्तकारी वस्तुओं की उत्पादन-व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई। सैकड़ों-हज़ारों लोग मारे गए और इससे कहीं अधिक दास बना लिए गए। इसकी वास्तविक संख्या

मरुस्थल उस और फैलने लगा। अतिशयोक्तिपूर्ण तथ्यों के जाल में खो गई है। संभ्रांत लोगों से लेकर कृषक-वर्ग तक समस्त लोगों को बहुत कष्टों का सामना करना पड़ा। इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न अस्थिरता से ईरान के शुष्क पठार में भूमिगत नहरों (कनात) का नियमित रूप से मरम्मत कार्य संभव नहों हो पाया। नहरों की मरम्मत न होने से मरुस्थल उस ओर फैलने लगा जिससे बहुत बड़ा पारिस्थितिक विनाश हुआ जिससे खुरासान के कुछ हिस्से कभी नहीं उबर पाए।

जब सैन्य अभियानों में विराम आया तब यूरोप और चीन के भूभाग परस्पर संबंद्ध हो गए थे। मंगोल विजय (Pax Mongolica) के बाद उत्पन्न शांति से व्यापारिक संबंध परिपक्व हुए। मंगोलों की देखरेख में रेशम मार्ग (Silk route) पर व्यापार और भ्रमण अपने शिखर पर पहुँचा किंतु पहले की तरह अब व्यापारिक मार्ग चीन में ही खत्म नहीं होते थे।

वे उत्तर की ओर मंगोलिया तथा नवीन साम्राज्य के केंद्र कराकोरम की ओर बढ़ गए। मंगोल शासन में सामंजस्य स्थापित करने के लिए संचार और यात्रियों के लिए सुलभ यात्रा आवश्यक थी। सुरक्षित यात्रा के लिए यात्रियों को पास जिसे फ़ारसी में पैज़ा (Paiza) और मंगोल भाषा में जंरेज़ (Gerege) जारी किए जाते थे। इस सुविधा के लिए व्यापारी बाज नामक कर अदा करते थे जिसका यह तात्पर्य था, कि वे मंगोल शासक (खान) की सत्ता स्वीकार करते थे।


तेरहवी शताब्दी ई. में मंगोल साम्राज्य में यायावरों और स्थानबद्ध समुदायों में विरोध कम होते गए उदाहरणार्थ, 1230 के दशक में जब मंगोलों ने उत्तरी चीन के चिन वंश के विरुद्ध युद्ध में सफलता प्राप्त की तो मंगोल नेताओं के एक क्रुद्ध वर्ग ने दबाव डालकर यह विचार रखा कि समस्त कृषकों को मौत के घाट उतार दिया जाए और उनकी कृषि-भूमि को चरागाह में परिवर्तित कर दिया जाए। परंतु 1270 के दशक के आते-आते शुंग वंश की पराजय के उपरांत दक्षिण चीन को मंगोल साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया गया। तब चंगेज़ खान का पोता कुबलई खान (मृत्यु 1294) कृषकों और नगरों के रक्षक के रूप में उभरा। गज़न खान (मृत्यु 1304) जो चंगेज़ खान के सबसे छोटे पुत्र तोलूई का वंशज था, उसने अपने परिवार के सदस्यों और अन्य सेनापतियों को आगाह कर दिया था कि वे कृषकों को न लूटें। एक बार अपने भाषण के दौरान उसने कहा था कि ऐसा करने से राज्य में स्थायित्व और समृद्धि नहीं आती। उसके वक्तव्य की स्थानबद्ध ध्वनियाँ चंगेज़ खान को भी हैरानी में डाल देती थीं। मानचित्र 2: मंगोलों के अभियान।

क्रियाकलाप 2

रेशम मार्ग के क्षेत्रों को देखिए और उन वस्तुओं पर भी गौर करिए जोकि उस रास्ते में यात्रा करते हुए व्यापारियों को उपलब्ध होती थीं। इस मानचित्र में मंगोल शक्ति के चरमोत्कर्ष काल के दौरान का एक अंतिम पूर्वी बिंदु अंकित नहीं है जिससे रेशम मार्ग गुजरता था।

क्या आप इसमें उस नगर को दिखा सकते हैं जो यहाँ अंकित नहीं हैं? क्या ये बारहवीं शताब्दी में रेशम मार्ग पर हो सकता था? अगर नहीं तो क्यों नहीं?

गज़न खान का भाषण

गज़न खान (1295-1304) पहला इल-खानी शासक था जिसने धर्म-परिर्वतन कर इस्लाम ग्रहण किया। उसने अपने मंगोल-तुर्की यायावर सेनापतियों को निम्न भाषण दिया जिसे संभवतः उसके इरानी वज़ीर रशीदुद्दीन ने लिखा था और जिसे मंत्री के पत्रों में शामिल किया गया था:

“मैं फ़ारस के कृषक वर्ग के पक्ष में नहीं हूँ। यदि उन सबको लूटने का कोई उद्देश्य है, तो ऐसा करने के लिए मेरे से अधिक शक्तिशाली और कोई नहीं है, चलो हम सब मिल कर उन्हें लूटते हैं। लेकिन अगर आप निश्चित रूप से भविष्य में अपने भोजन के लिए अनाज और भोज्य-सामग्री इकट्ठा करना चाहते हैं तो मुझे आपके साथ कठोर होना पड़ेगा। आपको तर्क और बुद्धि से काम लेना सिखाना पड़ेगा। यदि आप कृषकों का अपमान करेंगे, उनसे उनके बैल और अनाज के बीज छीन लेंगे और उनकी फसलों को कुचल डालेंगे, तो आप भविष्य में क्या करेंगे? एक आज्ञाकारी कृषक वर्ग और एक विद्रोही कृषक वर्ग में अंतर समझना आवश्यक है।…….”

क्रियाकलाप 3

पशुचारकों और किसानों के स्वार्थों में संघर्ष का क्या कारण था? क्या चंगेज़ खान खानाबदोश कमांडरों को देनेवाले भाषण में इस तरह की भावनाओं को शामिल करता ?

चंगेज़ खान के शासनकाल से ही मंगोलों ने विजित राज्यों से नागरिक प्रशासकों (Civil administrators) को अपने यहाँ भर्ती कर लिया था। इनको कभी-कभी एक स्थान से दूसरे स्थान पर भी भेज दिया जाता था जैसे, चीनी सचिवों का ईरान और ईरानी सचिवों का चीन में स्थानांतरण। इस तरह इन्होंने दूरस्थ राज्यों को संघटित करने में भी मदद की और इनकी पृष्ठभूमि और प्रशिक्षण से वहाँ के स्थानबद्ध जन-जीवन पर होने वाली खानाबदोशों की लूटमारों की धार कम हो गई। मंगोल शासकों का भी इन पर तब तक विश्वास बना रहता था जब तक ये प्रशासक अपने स्वामियों के लिए कर इकट्डा करने की क्षमता बनाए रखते थे। इनमें से कुछ प्रशासक काफ़ी प्रभावशाली थे और अपने प्रभाव का उपयोग खानों पर भी कर पाते थे। उदाहरण के लिए 1230 के दौरान चीनी मंत्री ये-लू-चुत्साई (Yeh-lu Ch’u-ts’ai) ने ओगोदेई की लूटने वाली प्रवृत्ति को परिवर्तित कर दिया। जुवैनी परिवार ने भी ईरान में तेरहवों शताब्दी के उत्तरवर्ती काल और उसके अंत में भी इसी तरह की भूमिका निभाई। वज़ीर रशीदुद्दीन ने गज़न खान के लिए वह भाषण भी इसी समय तैयार किया था जो उसने अपने मंगोल देशवासियों के समक्ष दिया था, जिसमें उसने कृषक-वर्ग को सताने की बजाय उनकी रक्षा करने की बात कही थी।

स्थानबद्ध रूप से रहने का दबाव मंगोल निवास स्थानों के नए क्षेत्रों में अधिक था, उन क्षेत्रों में जो यायावरों के मूल स्टेपी-आवास से दूर थे। धीरे-धीरे तेरहवीं शताब्दी के मध्य तक, भाइयों के बीच पिता द्वारा अर्जित धन को मिल-बाँटकर इस्तेमाल करने की बजाय व्यक्तिगत राजवंश बनाने की भावना ने स्थान ले लिया और हर एक अपने उलुस, जिसका तात्पर्य अब क्षेत्रीय यानी अधिकृत क्षेत्र का स्वामी हो गया। यह अंशतः उत्तराधिकार के लिए संघर्ष का परिणाम था जिसमें चंगेज़ खान के वंशजों के बीच महान पद के लिए तथा उत्कृष्ट चरागाही भूमि पाने के लिए होड़ होती थी। चीन और ईरान दोनों पर शासन करने के लिए लिए आए टोलुई के वंशजों ने युआन और इल-खानी वंशों की स्थापना की। जोची ने ‘सुनहरा गिरोह’ (Golden Horde) का गठन किया और रूस के स्टेपी-क्षेत्रों पर राज किया। चघताई के उत्तराधिकारियों ने तुरान के स्टेपी-क्षेत्रों पर राज किया, जिसे आजकल तुर्किस्तान कहा जाता है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि मध्य-एशिया (चघताई के वंशज) तथा रूस (गोल्डन होर्ड) के स्टेपी-निवासियों में यायावर परंपराएँ सबसे अधिक समय तक चलीं।

चंगेज़ खान के वंशजों का धीरे-धीरे अलग होकर पृथक-पृथक वंश समूहों में बँट जाने का तात्पर्य था उनका अपने पिछले परिवार से जुड़ी स्मृतियों और परंपराओं के सामंजस्य में बदलाव आना। स्पष्टतः यह सब एक कुल के सदस्यों में परस्पर प्रतिस्पर्धा के परिणामस्वरूप हुआ और इसी की एक शाखा टोलिईई ने अपने पारिवारिक मतभेदों का वृत्तांत बड़ी निपुणता से अपने संरक्षण में प्रस्तुत किए जा रहे इतिहासों में दिया। बहुत हद तक, यह सब चीन और ईरान पर उनके नियंत्रण का और उनके परिवार के सदस्यों द्वारा बहुत बड़ी संख्या में विद्वानों को अपने यहाँ भर्ती करने का परिणाम था। परिष्कृत रूप से कहा जा सकता है कि अतीत से अलग होने का मतलब, पिछले शासकों की अपेक्षा प्रचलित शासकों के गुणों को अधिक लोकप्रिय करना था। तुलना की इस प्रक्रिया में स्वयं चंगेज़ खान को भी नहों छोड़ा गया। इल-खानी ईरान में तेरहवीं शताब्दी के आखिर में फ़ारसी इतिहासवृत्त में महान खानों द्वारा की गई रक्तरंजित हत्याओं का विस्तृत वर्णन किया गया और मृतकों की संख्या बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ा कर दी गई है। उदाहरण के लिए, एक चश्मदीद गवाह के इस विवरण के विरोध में, कि बुखारा के किले की रक्षा के लिए 400 सैनिक तैनात थे, एक इल-खानी इतिहासवृत्त में यह विवरण दिया गया कि बुखारा के किले पर हुए आक्रमण में 30,000 सैनिक मारे गए। यद्यपि इल-खानी विवरणों में अभी भी चंगेज़ खान की प्रशंसा की जाती थी लेकिन उनमें साथ ही तसल्लीबख़्श यह कथन भी दिया जाने लगा कि समय बदल गया है और अब पहले जैसा खून-खराबा समाप्त हो चुका था। चंगेज़ खान के वंशजों को विरासत में जो कुछ भी मिला वह महत्त्वपूर्ण था लेकिन उनके सामने एक समस्या थी। अब उन्हें एक स्थानबद्ध समाज में अपनी धाक जमानी थी। इस बदले हुए समय में वे वीरता की वह तस्वीर नहीं पेश कर सकते थे जैसी चंगेज़ खान ने की थी।

डेविड आयलॉन (David Ayalon) के शोध के बाद यास (yasa) पर हाल ही में हुआ कार्य (वह नियम संहिता, जिसके बारे में कहा जाता है कि चंगेज़ खान ने 1206 के किरिलताई में लागू की थी) उन जटिल विधियों का विस्तृत वर्णन करता है जो महान खान की स्मृति को बनाए रखने के लिए उसके उत्तराधिकारियों ने प्रयुक्त की थीं। अपने प्रारंभिक स्वरूप में यास को यसाक (yasaq) लिखा जाता था जिसका अर्थ था विधि, आज्ञप्ति व, आदेश। वास्तव में जो थोड़ा बहुत विवरण यसाक के बारे में हमें मिला है उसका संबंध प्रशासनिक विनियमों से है; जैसे- आखेट, सैन्य और डाक प्रणाली का संगठन। तेरहवों शताब्दी के मध्य तक, किसी तरह से मंगोलों ने यास शब्द का प्रयोग ज़्यादा सामान्य रूप में करना शुरू कर दिया। इसका मतलब था चंगेज़ खान की विधि-संहिता।

यदि हम उसी समय में घटने वाली अन्य घटनाओं की ओर देखें तो शायद हम इस शब्द के अर्थ में होनेवाले परिवर्तनों को समझ सकते हैं। तेरहवीं शताब्दी के मध्य तक मंगोल एक एकीकृत जनसमूह के रूप में उभरकर सामने आए और उन्होंने एक ऐसे विशाल साम्राज्य का निर्माण किया जिसे दुनिया में पहले नहीं देखा गया था। उन्होंने अत्यंत जटिल शहरी समाजों पर शासन किया जिनके अपने-अपने इतिहास, संस्कृतियाँ और नियम थे। हालांकि मंगोलों का अपने साम्राज्य के क्षेत्रों पर राजनैतिक प्रभुत्व रहा, फिर भी संख्यात्मक रूप में वे अल्पसंख्यक ही थे। उनके लिए अपनी पहचान और विशिष्टता की रक्षा का एकमात्र उपाय उस पवित्र नियम के अधिकार के दावे के ज़रिये हो सकता था, जो उन्हें अपने पूर्वजों से प्राप्त हुआ था। इस बात की पूरी संभावना है कि यास मंगोल जनजाति की ही प्रथागत परंपराओं का एक संकलन था। किंतु उसे चंगेज़ खान की विधि-संहिता कहकर मंगोलों ने भी मूसा और सुलेमान की भांति अपने एक स्मृतिकार के होने का दावा किया जिसकी प्रामाणिक संहिता प्रजा पर लाग की जा सकती थी। यास मंगोलों को समान आस्था रखने वालों के आधार पर संयुक्त करने में सफल हुआ। उसने चंगेज़ खान और उनके वंशजों से मंगोलों की निकटता को स्वीकार किया। यद्यपि मंगोलों ने भी काफी हद तक स्थानबद्ध जीवन-प्रणाली के कुछ पहलुओं को अपना लिया था, फिर भी यास ने उनको अपनी कबीलाई पहचान बनाए रखने और अपने नियमों को उन पराजित लोगों पर लागू करने का आत्म-विश्वास दिया। यास एक बहुत ही सशक्त विचारधारा थी। हो सकता है कि चंगेज़ खान ने ऐसी विधि की कोई योजना पहले से न बनाई हो लेकिन वह निश्चित रूप से उसकी कल्पना-शक्ति से प्रेरित था, जिसने विश्वव्यापी मंगोल राज्य की संरचना में अहम भूमिका निभाई।

क्रियाकलाप 4

क्या इन चार शताब्दियों में यास का अर्थ बदल गया, जिसने चंगेज खान को अब्दुल्लाह खान से अलग कर दिया? हफ़ीज-ए तानीश के अनुसार अन्दुल्लाह खान ने मुसलमान उत्सव मैदान में किए गए धार्मिक अनुपालन के संबंध में चंगेज़ खान के यास का उल्लेख क्यों किया?

यास

1221 में बुखारा पर विजय प्राप्त करने के बाद चंगेज़ खान ने वहाँ के अमीर मुसलमान निवासियों को ‘उत्सव मैदान’ में एकत्रित कर उनकी भर्त्सना की। उसने उनको पापी कहा और चेतावनी दी कि इन पापों के प्रायश्चितस्वरूप उनको अपना छिपा हुआ धन उसे देना पड़ेगा। यह वर्णन करने योग्य एक नाटकीय घटना थी जिसको लोगों ने लंबे समय तक याद रखा और उस पर चित्र बनाए। सोलहवीं शताब्दी के अंत में चंगेज़ खान के सबसे बड़े पुत्र जोची का एक दूर का वंशज अब्दुल्लाह खान बुखारा के उसी उत्सव मैदान में गया। चंगेज़ खान के विपरीत अब्दुल्लाह खान वहाँ छुटी की नमाज़ अदा करने गया। उसके इतिहासकार हफ़ीज़-ए-तानीश ने अपने स्वामी की इस मुस्लिम धर्म-परायणता का विवरण अपने इतिवृत्त में दिया और साथ में यह चौंका देने वाली टिप्पणी भी की: ‘कि यह चंगेज़ खान के यास के अनुसार था’।

निष्कर्ष : चंगेज़ खान और मंगोलो का विश्व इतिहास में स्थान

आज जब हम चंगेज़ खान को याद करते हैं तो हमारी कल्पना में ऐसी तस्वीरें आती हैं जैसेकि एक विजेता, नगरों को ध्वस्त करने वाला और एक ऐसे व्यक्ति की, जो हज़ारों लोगों की मृत्यु का उत्तरदायी है। तेरहवीं शताब्दी के चीन, ईरान और पूर्वी यूरोप के नगरवासी स्टेपी के इन गिरोहों को भय और घृणा की दृष्टि से देखते थे। फिर भी मंगोलों के लिए चंगेज़ खान अब तक का सबसे महान शासक था : उसने मंगोलों को संगठित किया, लंबे समय से चली आ रही कबीलाई लड़ाइयों और चीनियों द्वारा शोषण से मुक्ति दिलवाई, साथ ही उन्हें समृद्ध बनाया। एक शानदार पारमहाद्वीपीय साम्राज्य बनाया और व्यापार के रास्तों और बाज़ारों को पुनर्स्थापित किया जिनसे वेनिस के मार्कोपोलो की तरह दूर के यात्री आकृष्ट हुए। चंगेज़ खान के इन परस्पर विरोधी चित्रों का कारण एकमात्र परिप्रिक्ष्य की भिन्नता नहीं बल्कि ये विचार हमें यह सोचने पर मजबूर करते हैं कि किस तरह से एक (प्रभावशाली) दृष्टिकोण अन्य को पूरी तरह से मिटा देता है।

स्थानबद्ध पराजित लोगों की सोच से परे कुछ देर के लिए तेरहवीं शताब्दी के उस छोटे से मंगोल अधिराज्य के बारे में सोचिए जिसने विविध मतों और आस्था वाले लोगों को सम्मिलित किया। हालांकि मंगोल शासक स्वयं भी विभिन्न धर्मों, आस्थाओं से संबंध रखने वाले थे-शमन, बौद्ध, ईसाई और अंततः इस्लाम-लेकिन उन्होंने सार्वजनिक नीतियों पर अपने वैयक्तिक मत कभी नहीं थोपे। मंगोल शासकों ने सब जातियों और धर्मो के लोगों को अपने यहाँ प्रशासकों और हथियारबंद सैन्य दल के रूप में भर्ती किया। इनका शासन बहु-जातीय, बहु-भाषी, बहु-धार्मिक था जिसको अपने बहुविध संविधान का कोई भय नहीं था। यह उस समय के लिए एक असामान्य बात थी। इतिहासकार अब उन विधियों का अध्ययन करने में लगे हैं जिनके माध्यम से मंगोल अपने बाद में आनेवाली शासन-प्रणालियों (जैसे कि भारत में मुगल शासकों की) के अनुसरण के लिए आदर्श प्रस्तुत कर सके।

मंगोलों और किसी भी यायावर शासन प्रणाली से संबंधित जिस तरह के प्रलेख हैं, उनसे यह समझना वस्तुतः असंभव है कि वह कौन सा ऐसा प्रेरणा-स्रोत था जिसने साम्राज्य निर्माण की महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए अनेक समुदाय में बंटे हुए लोगों का एक परिसंघ बनाया। अंततः मंगोल साम्राज्य भिन्न-भिन्न वातावरण में परिवर्तित हो गया तथापि मंगोल साम्राज्य के संस्थापक की प्रेरणा एक प्रभावशाली शक्ति बनी रही। चौदहवीं शताब्दी के अंत में एक अन्य राजा तैमूर, जो एक विश्वव्यापी राज्य की आकांक्षा रखता था, ने अपने को राजा घोषित करने में संकोच का अनुभव किया, क्योंकि वह चंगेज़ खान का वंशज नहीं था। जब उसने अपनी स्वतंत्र संप्रभुता की घोषणा की तो अपने को चंगेज़ खानी परिवार के दामाद के रूप में प्रस्तुत किया।

मंगोलों द्वारा बग़ाद पर कब्जा।

रशीद अल-दीन, तबरेज़ का इतिवृत्त में दिया गया चौदहवों शताब्दी का एक लघुचित्र।

आज, दशकों के रूसी नियंत्रण के बाद, मंगोलिया एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान बना रहा है। उसने चंगेज़ खान को एक महान राष्ट्र-नायक के रूप में लिया है जिसका सार्वजनिक रूप से सम्मान किया जाता है और जिसकी उपलब्धियों का वर्णन गर्व के साथ किया जाता है। मंगोलिया के इतिहास में इस निर्णायक समय पर चंगेज़ खान एक बार फिर मंगोलों के लिए एक आराध्य व्यक्ति के रूप में उभरकर सामने आया है जो महान अतीत की स्मृतियों को जागृत कर राष्ट्र की पहचान बनाने की दिशा में शक्ति प्रदान करने के साथ-साथ राष्ट्र को भविष्य की ओर ले जाएगा।

कुबलई खान और चाबी, शिविर में

अभ्यास

संक्षेप में उत्तर दीजिए

1. मंगोलों के लिए व्यापार क्यों इतना महत्त्वपूर्ण था?

2. चंगेज़ खान ने यह क्यों अनुभव किया कि मंगोल कबीलों को नवीन सामाजिक और सैनिक इकाइयों में विभक्त करने की आवश्यकता है?

3. यास के बारे में परवर्ती मंगोलों का चिंतन किस तरह चंगेज़ खान की स्मृति के साथ जुड़े हुए उनके तनावपूर्ण संबंधों को उजागर करता है?

4. यदि इतिहास नगरों में रहने वाले साहित्यकारों के लिखित विवरणों पर निर्भर करता है तो यायावर समाजों के बारे में हमेशा प्रतिकूल विचार ही रखे जाएँगे। क्या आप इस कथन से सहमत हैं? क्या आप इसका कारण बताएँगे कि फ़ारसी इतिवृत्तकारों ने मंगोल अभियानों में मारे गए लोगों की इतनी बढ़ा-चढ़ा कर संख्या क्यों बताई है?

संक्षेप में निबंध लिखिए

5. मंगोल और बेदोइन समाज की यायावरी विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए, यह बताइए कि आपके विचार में किस तरह उनके ऐतिहासिक अनुभव एक दूसरे से भिन्न थे? इन भिन्नताओं से जुड़े कारणों को समझाने के लिए आप क्या स्पष्टीकरण देंगे?

6. तेरहवीं शताब्दी के मध्य में मंगोलिया द्वारा निर्मित ‘पैक्स मंगोलिका’ का निम्नलिखित विवरण उसके चरित्र को किस तरह उजागर करता है?

एक फ्रेन्सिसकन भिक्षु, रूब्रुक निवासी विलियम को फ्रांस के सम्राट लुई $I X$ ने राजदूत बनाकर महान खान मोंके के दरबार में भेजा। वह 1254 में मोंके की राजधानी कराकोरम पहुँचा और वहाँ वह लोरेन, फ्रांस की एक महिला पकेट (Paquette) के संपर्क में आया जिसे हंगरी से लाया गया था। यह महिला राजकुमार की पत्नियों में से एक पत्नी की सेवा में नियुक्त थी जो नेस्टोरियन ईसाई थी। वह दरबार में एक फ़ारसी जौहरी ग्वीयोम् बूशेर के संपर्क में आया, ‘जिसका भाई पेरिस के ‘ग्रेन्ड पोन्ट’ में रहता था। इस व्यक्ति को सर्वप्रथम रानी सोरगकतानी ने और उसके उपरांत मोंके के छोटे भाई ने अपने पास नौकरी में रखा। विलियम ने यह देखा कि विशाल दरबारी उत्सवों में सर्वप्रथम नेस्टोरिन पुजारियों को उनके चिह्नों के साथ तथा इसके उपरांत मुसलमान, बौद्ध और ताओ पुजारियों को महान खान को आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित किया जाता था। …



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