अध्याय 07 बच्चों, युवाओं और वृद्धजनों के लिए सहायक सेवाओं, संस्थानों और कार्यक्रमों का प्रबंधन

महत्त्व

आप जानते ही हैं कि परिवार समाज की मूल इकाई होता है और इसका एक मुख्य कार्य अपने सदस्यों की आवश्यकताओं को देखना और ध्यान रखना है। परिवार के सदस्यों में माता-पिता, उनके विभिन्न आयु के बच्चे और दादा-दादी/नाना-नानी शामिल हो सकते हैं। परिवार का संयोजन एक से दूसरे परिवार में भिन्न हो सकता है, लेकिन अपने जीवन-चक्र के विभिन्न चरणों में परिवार, का संयोजन भिन्न होता है

और सदस्य मिलकर एक दूसरे की आवश्यकताएँ पूरी करने का प्रयास करते हैं, परंतु परिवार हमेशा अपने सदस्यों की इष्टतम वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक सभी विशिष्ट सेवाएँ प्रदान नहीं कर पाता है। उदाहरण के लिए छोटे बच्चों को औपचारिक शिक्षा की आवश्यकता होती है सभी सदस्यों को स्वास्थ्य देखभाल की ज़रूरत होती है। इसलिए प्रत्येक समुदाय अन्य ऐसी संरचनाओं जैसे - विद्यालयों, अस्पतालों, विश्वविद्यालयों, मनोरंजन केंद्रों, प्रशिक्षण केंद्रों आदि का निर्माण करता है, जो विशिष्ट सेवाएँ अथवा सहायक सेवाएँ प्रदान करते हैं, जिन तक परिवार के विभिन्न सदस्य अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पहुँच सकते हैं।

सामान्यत: एक परिवार से समाज की अन्य संरचनाओं जैसे - विद्यालयों, अस्पतालों आदि के साथ मिलकर अपने परिवार के सदस्यों की आवश्यकताओं को पूरा करने की उम्मीद की जाती है। परंतु, हमारे देश में अनेक परिवार विभिन्न कारणों से अपने सदस्यों की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने और/ अथवा समाज की अन्य संरचनाओं द्वारा प्रदान की जाने वाली विभिन्न सेवाओं तक पहुँचने और उनका उपयोग करने में असमर्थ होते हैं, इनमें से एक प्रमुख कारण परिवार में संसाधनों की विशेषरूप से वित्तीय संसाधनों की कमी है। इस संबंध में कुछ प्रासंगिक विवरणों के लिए नीचे दिए गए बॉक्स को देखिए। यही नहीं, अनेक बच्चे, युवा और वृद्धजन अपने परिवारों से अलग हो जाते हैं और अपने दम पर ही जीवनयापन करने के लिए छोड़ दिए जाते हैं। उनको अपनी आवश्यकताओं को खुद ही पूरा करने में कठिनाई होती है।

  • भारत में व्यापक स्तर पर गरीबी है और देश में विश्व के एक तिहाई गरीब हैं।
  • भारत में योजना आयोग के अनुसार 2004-2005 में 37.2 प्रतिशत जनसंख्या राष्ट्रीय गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रही थी।
  • हमारी 30 प्रतिशत से भी कम जनसंख्या के लिए उचित सफ़ाई-सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
  • वर्ष भर में होने वाले सभी प्रसवों में से अच्छे से भी कम प्रशिक्षित दाईयों द्वारा कराए जाते हैं जो अधिक मातृ और शिशु मृत्युदर तथा अस्वस्थता दर का कारण हैं।
  • देश के आधे से भी कम परिवार आयोडीन युक्त नमक खाते हैं। आयोडीन की कमी बच्चे की मानसिक और शारीरिक वृद्धि को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है।
  • बालिकाओं और महिलाओं के प्रति भेदभाव की भावना जो पोषण और शैक्षिक नतीजों तथा विशेषरूप से सबसे छोटे आयु वर्ग में लड़कों की तुलना में लड़कियों के घटते अनुपात समेत अनेक प्रतिकूल सूचकों में परिलक्षित होती है।
  • पाँच वर्ष से कम उम्र के लगभग दो तिहाई बच्चे मध्यम अथवा गंभीर कुपोषण से पीड़ित हैं। कुपोषण सभी क्षेत्रों के विकास को प्रभावित करता है।

ऐसे परिवारों अथवा चुनौतीपूर्ण और कठिन चुनौतीपूर्ण तथा कठिन परिस्थितियों में काम करने वाले सदस्यों के लिए सरकार/समाज को आगे बढ़कर अपने सदस्यों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रयास करने चाहिए। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यह सरकार और समाज का दायित्व है कि वे यह सुनिश्चित करें कि सभी नागरिक अच्छा जीवन जीएँ, बच्चों और युवाओं को स्वास्थ्य और प्रेरक परिवेश में समग्र विकास के अवसर मिलें। सरकार द्वारा कठिन परिस्थितियों में जीने वाले व्यक्तियों की आवश्यकताओं को पूरा करने का एक तरीका संस्थान स्थापित करना और बच्चों, युवाओं और वृद्धजनों के लिए समर्पित कार्यक्रमों को शुरू करना है। यह निजी क्षेत्र और/अथवा गैर - सरकारी संगठनों के प्रयासों को भी सहायता प्रदान कर सकती है। इनमें से कुछ संस्थान और कार्यक्रम विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करने पर तथा कुछ कार्यक्रम समग्र परिप्रेक्ष्य को अपनाकर व्यक्तियों की विभिन्न आवश्यकताओं को एक साथ पूरा करने के लिए उपाय और सेवाएँ प्रदान करने पर अपने प्रयास केंद्रित कर सकते हैं। यह सोच इस दर्शन से उपजी है कि व्यक्ति की सभी आवश्यकताएँ एक साथ पूरी की जानी चाहिए जिसके परिणाम स्वरूप इनका इष्टतम/अनुकूल प्रभाव हो सके।

मूलभूत संकल्पनाएँ

हम बच्चों, युवाओं और वृद्धजनों पर अधिक ध्यान क्यों केंद्रित कर रहे हैं? ऐसा इसलिए है, क्योंकि ये हमारे समाज के ‘संवेदनशील’ समूह हैं। ‘संवेदनशील’ से क्या अभिप्राय है? ‘संवेदनशील’ शब्द का अर्थ समाज के उन व्यक्तियों/समूहों से है जिनकी प्रतिकूल परिस्थितियों द्वारा अधिक प्रभावित होने की संभावना होती है और जिनपर प्रतिकूल परिस्थितियों का अधिक हानिकारक प्रभाव हो सकता है। बच्चे, युवाओं और वृद्धजनों को क्या संवेदनशील बनाता है? इसका उत्तर इन समूहों की आवश्यकताओं को समझ कर दिया जा सकता है। यदि किसी व्यक्ति की आवश्यकताएँ दैनिक जीवन के क्रम में पूरी नहीं होती हैं तो वह व्यक्ति संवेदनशील बन जाता है।

क्रियाकलाप 1

कक्षा को तीन समूह में बाँटिए और कक्षा 11 में आपने जो सीखा है उसके आधार पर (1) बच्चों, (2) युवाओं, (3) वृद्धजनों की आवश्यकताओं की सूची बनाइए। प्रत्येक समूह की विशिष्ट आवश्यकताओं (कम से कम 5-8) की सूची बनाने का प्रयास कीजिए। फिर समूह का मुखिया कक्षा के बाकी बच्चों को वह सूची दे दे।

बच्चे संवेदनशील क्यों होते हैं?

बच्चे संवदेनशील होते हैं, क्योंकि बाल्यावस्था सभी क्षेत्रों में तीव्र विकास की अवधि होती है और एक क्षेत्र का विकास अन्य सभी क्षेत्रों के विकास को प्रभावित करता है। बच्चे के सभी क्षेत्रों में इष्टतम रूप से बढ़ने के लिए यह महत्वपूर्ण है कि बच्चे की भोजन आश्रय, स्वास्थ्य देखभाल, प्रेम, पालन और प्रोत्साहन की आवश्यकताओं को समग्र रूप से पूरा किया जाए। प्रतिकूल अनुभवों का बच्चे के विकास पर स्थायी प्रभाव पड़ सकता है।

सभी बच्चे संवेदनशील होते हैं, लेकिन कुछ बच्चे दूसरों की अपेक्षा अधिक संवेदनशील होते है। ये वे बच्चे हैं जो इतनी चुनौतीपूर्ण स्थितियों और कठिन परिस्थितियों में जीते हैं कि उनकी भोजन, स्वास्थ्य, देखभाल और पालन-पोषण की मूलभूत आवश्यकताएँ पूरी नहीं हो पाती हैं और यह उनकी पूरी क्षमताओं का विकास होने से रोकता है।

बॉक्स में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि बाल जनसंख्या के बड़े अनुपात की आवश्यकताएँ पूरी नहीं हो पाती हैं-

  • लगभग 30 लाख बच्चे सड़कों पर बिना किसी आश्रय के रहते हैं।
  • विद्यालय पूर्व आयु के तीन में से सिर्फ़ एक बच्चे को आरंभिक अधिगम कार्यक्रम में भाग लेने का अवसर मिलता है।
  • भारत में 6-14 वर्ष से बीच की आयु के आधे से भी कम बच्चे विद्यालय जाते हैं।
  • कक्षा 1 में नामांकन कराने वाले सभी बच्चों में से एक तिहाई से कुछ ही ज़्यादा बच्चे कक्षा 8 तक पहुँच पाते हैं, अन्य किसी-न-किसी कारण से विद्यालय छोड़ देते हैं।
  • भारत में अधिकारिक आकलनों के अनुसार 17 करोड़ बच्चे काम करते हैं। वास्तविक संख्या और भी अधिक हो सकती है। विश्व बैंक के अनुसार इनकी संख्या 44 करोड़ तक हो सकती है।

कठिन परिस्थितियों में रहने वाले सभी बच्चों को विशेष देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता होती है, लेकिन कुछ कानून का उल्लंघन कर सकते हैं अथवा गैर सामाजिक गतिविधियों में संलग्न हो सकते हैं। किशोर न्याय (बच्चों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम-2000 भारत में किशोरों के लिए न्याय का प्राथमिक विधिक ढाँचा है। अधिनियम का सरोकार बच्चों के दो संवर्गो से है — वे जो कानून का उल्लंघन करते हैं और वे जिन्हें देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता होती है। कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चे (जिन्हें बाल अपराधी भी कहते हैं) वे होते हैं, जिन्हें पुलिस द्वारा भारतीय दंड संहिता (इंडियन पीनल कोड) का उल्लंघन करने के लिए गिरफ़्तार किया जाता है। दूसरे शब्दों में, उन्हें पुलिस द्वारा इसलिए पकड़ा जाता है, क्योंकि उन्होंने जुर्म किया होता है और वे जुर्म के आरोपी होते हैं। इस अधिनियम में बाल-अपराध की रोकथाम और उनके साथ व्यवहार के लिए विशेष अधिगम का प्रावधान है और यह बच्चों के संरक्षण, उपचार/व्यवहार और पुर्नवास के लिए रूपरेखा प्रदान करता है। इसका संबंध ‘कानून का उल्लंघन करने वाले किशोरों और देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चों से है’ और यह उनकी विकास संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करके उचित देखभाल, संरक्षण और उपचार प्रदान करता है और इसमें बच्चों के सर्वोत्तम हित में मामलों का निर्णय और निबटान करने के लिए बाल मित्रवत् अधिगम को अपनाने और विभिन्न संस्थानों के द्वारा उनके पुर्नवास के लिए भी प्रावधान हैं। यह अधिनियम बाल-अधिकार समझौते के अनुरूप है और इसके अनुसार देखभाल और संरक्षण की आवश्यकता वाले बच्चे वे हैं -

  • जिनका कोई घर निश्चित स्थान अथवा आश्रय नहीं है अथवा जिनके पास निर्वहन का कोई साधन नहीं है। इनमें परित्यक्त बच्चे, सड़क पर पलने वाले बच्चे, घर छोड़कर भाग जाने वाले बच्चे और गुमशुदा बच्चे शामिल हैं ;
  • जो ऐसे व्यक्ति (अभिभावक अथवा कोई और) के साथ रहते हैं जो बच्चे पर नियंत्रण रखने के लिए अनुपयुक्त होता है अथवा जहाँ बच्चे के मारे जाने, उनके साथ दुर्य्यवहार होने अथवा व्यक्ति द्वारा उसके प्रति लापरवाही बरतने की संभावना होती है
  • जो बच्चे मानसिक अथवा शारीरिक रूप से विकलांग, बीमार अथवा किसी लंबी या ठीक न होने वाली बीमारी से पीड़ित हों और जिनके पास उनकी देखभाल अथवा सहायता के लिए कोई न हो;
  • जिन्हें यौन दुर्य्यवहार अथवा अनैतिक कार्यों के लिए प्रताड़ित या दंडित किया जाता है;
  • जो नशीली दवाओं की लत या उनके अवैध व्यापार के लिए संवेदनशील होते हैं;
  • जो सशस्त्र विद्रोह, नागरिक विद्रोह या प्राकृतिक आपदा के शिकार होते हैं,
  • जिनके साथ अनुचित लाभ के लिए दुर्र्यवहार होने की संभावना होती है। इनमें परित्यक्त, अनाथ, वेश्याओं के चुंगल से छुड़ाए गए बच्चे, कारखानों से छुड़ाए गए बाल-श्रमिक, गुम गए, भाग गए, विशेष ज़ूरतों वाले बच्चे और कैदियों के बच्चे शामिल हैं।

संस्थागत कार्यक्रम और बच्चों के लिए पहल

संवेदनशील बच्चों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए देश में अनेक कार्यक्रम और सेवाएँ प्रदान की जा रही हैं। यहाँ हम आपको सरकार और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों से परिचित कराने के लिए कुछ महत्वपूर्ण पहलों और प्रयासों के बारे में संक्षेप में बताएँगे।

  • भारत सकरार की समेकित बाल विकास सेवाएँ-(आई. सी.डी. एस.) यह विश्व का सबसे बड़ा आरंभिक बाल्यावस्था कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य समेकित तरीके से छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों के स्वास्थ्य, पोषण, आरंभिक अधिगम/शिक्षा की आवश्कताओं को पूरा करना है, जिससे उनके विकास को बढ़ावा दिया जा सके। यह कार्यक्रम माताओं के लिए स्वास्थ्य पोषण और स्वच्छता शिक्षा, तीन से छह वर्ष की आयु के बच्चों के लिए अनौपचारिक विद्यालय पूर्व शिक्षा, छह वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों तथा गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए पूरक भोजन, वृद्धि की निगरानी तथा मूलभूत स्वास्थ्य देखरेख सेवाओं जैसे छह वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए टीकाकरण और विटामिन ए पूरकों को प्रदान करता है। इस कार्यक्रम से वर्तमान में 41 करोड़ बच्चे लाभान्वित हो रहे हैं। ये सेवाएँ आँगनबाड़ी नामक देखरेख केंद्र पर समेकित तरीके से दी जाती हैं।
  • एस. ओ. एस. बाल गाँव — यह एक स्वतंत्र गै-सरकारी सामाजिक संगठन है जिसने अनाथ और परित्यक्त बच्चों की दीर्घावधि देखरेख के लिए परिवार अभिगम प्रारंभ किया है। एस. ओ. एस. गाँवों का उद्देश्य ऐसे बच्चों को परिवार-आधारित दीर्घावधि की देखरेख प्रदान करना है जो किन्हीं कारणों से अपने जैविक परिवारों के साथ नहीं रहते हैं। प्रत्येक एस. ओ. एस. घर में एक ‘माँ’ होती है जो 10-15 बच्चों की देखभाल करती है। यह इकाई एक परिवार की तरह रहती है और बच्चे एक बार फिर संबंधों और प्रेम का अनुभव करते हैं। जिससे उन्हें अपने त्रासद अनुभवों से उबरने में सहायता मिलती है। ये एक स्थिर पारिवारिक परिवेश में पलते हैं और एक स्वतंत्र युवा वयस्क बनने

तक उनकी व्यक्ति रूप से सहायता की जाती है। एस. ओ. एस. परिवार एक साथ रहते हैं सहायक ‘ग्राम’ परिवेश बनाते हैं। ये स्थानीय समुदाय के साथ जुड़े रहते हैं और सामाजिक जीवन में योगदान देते हैं

  • 3-18 वर्ष के बच्चों के लिए, जो विभिन्न कारणों से राज्य की परिधि में हैं, सरकार द्वारा चलाए जाने वाले बाल गृह।

भारत में पहला एस. ओ. एस. गाँव 1964 में स्थापित किया गया था। अब यह संगठन देशभर में 40 विशिष्ट गाँवों में लगभग 6000 जरूरतमंद/परित्यक्त बच्चों की देखभाल करता है। भारत में जब भी कोई विद्रोह अथवा पर्यावरण और प्राकृतिक आपदा, जैसे — भोपाल में 1984 में विषैली गैस के रिसाव की घटना या भीषण चक्रवात तथा विनाशकारी भूकंप और सूनामी के आने पर एस. ओ. एस. बच्चों के गाँवों ने आपातकालीन राहत कार्यक्रमों के द्वारा तत्काल सहायता प्रदान की है, जहाँ विशेष रूप से इन ओ. एस. गाँवों को स्थायी सुविधाओं से सज्जित किया गया है।

बच्चों के लिए तीन प्रकार के घर स्थापित किए गए हैं। ये निम्नलिखित हैं -

(a) प्रेक्षण गॄह जहाँ बच्चे अस्थायी रूप से अपने माता-पिता का पता लगाए जाने और उनकी पारिवारिक पृष्ठभूमि के बारे में जानकारी एकत्रित किए जाने तक रहते हैं।

(b) विशेष गृह जहाँ कानून का उल्लंघन करने वाले किशोरों ( 18 वर्ष से कम आयु के बच्चे) को हिरासती देख-रेख में रखा जाता है।

(c) किशोर/बालगृह जहाँ उन बच्चों को रखा जाता है जिनके परिवार का पता नहीं चल पाता है अथवा जिनके अभिभावक अस्वस्थ/मृत होते हैं अथवा जो बच्चों को वापस नहीं ले जाना चाहते हैं। सरकार पर इन्हें घर, बोर्ड, शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण दिलाने का दायित्व होता है। इनमें से अधिकांश गृह सरकार द्वारा गै-सरकारी संगठनों के साथ भागीदारी में चलाए जा रहे हैं। बच्चों में ऐसे कौशल विकसित करने में सहायता करने के प्रयास किए जा रहे हैं जिससे वे समाज के उत्पादक/उपयोगी सदस्य बनने में सक्षम हो सकें।

गोद लेना (दत्तक ग्रहण) — भारत में बच्चा गोद लेने की परंपरा काफ़ी पुरानी है। पहले परिवार में से ही बच्चों को गोद लिया जाता था और इसमें सामाजिक और धार्मिक प्रथाएँ शामिल थीं, लेकिन समय के साथ, परिवार के बाहर के बच्चों को गोद लेने की प्रथा को संस्थागत और विधिक बना दिया गया। जहाँ भारत सरकार और राज्य सरकरों नीतियों और कार्यक्रमों द्वारा आवश्यक सहायता और मार्गदर्शन प्रदान करती हैं, वहीं गैरसरकारी संगठन (एन. जी. ओ.) गोद लेने की प्रक्रिया के लिए आवश्यक वितरण प्रणाली प्रदान करते हैं। गोद लेने के नियमों को सशक्त करने और गोद लेने को सुगम बनाने के लिए भारत सरकार ने उच्चतम न्यायालय की सलाह के तहत एssक केंद्रीय संस्था, केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन संस्था (सी. ए. आर. ए.) का गठन किया है जो बच्चों के कल्याण और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए गोद लेने के लिए दिशानिर्देश बनाती है।

युवा क्यों संवेदनशील हैं ?

युवा 13-35 वर्ष की आयु के व्यक्ति हैं जो आगे व्यापक रूप से दो उपसमूहों में उपविभाजित हैं 13-19 वर्ष के (जो किशोर भी कहलाते हैं) और 20-35 वर्ष के 2016 तक, युवा हमारी जनसंख्या का 40 प्रतिशत भाग बन जाएँगे। हमारी राष्ट्रीय प्रगति प्रमुख रूप से उन तरीकों और साधनों पर निर्भर करती है जिनके द्वारा युवाओं को राष्ट्र की वृद्धि के लिए प्रोत्साहित और पोषित किया जाता है और सामाजिक-आर्थिक विकास में योगदान देने में सक्षम बनाया जाता है। युवावस्था अनेक कारणों से संवेदनशील अवधि होती है। इस अवधि में कोई व्यक्ति अपने शरीर में होने वाले अनेक जैविक परिवर्तनों के साथ सामंजस्य बैठाने की कोशिश करता/ करती है, जिनका व्यक्ति की सेहत और पहचान के बोध पर असर होता है। यह वह अवधि भी है जब व्यक्ति एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए तैयारी करता है; जिनमें से दो सबसे महत्वपूर्ण आजीविका कमाना, विवाह करना और उसके बाद पारिवारिक जीवन प्रारंभ करना है।

निरंतर प्रतिस्पर्द्धी होती दुनिया में साथियों का दबाव और बेहतर करने का दबाव अन्य कारक हैं, जो अत्यधिक तनाव और परेशानी पैदा कर सकते हैं। जब परिवार/परिवेश किशोरों को सकारात्मक सहायता/ सहारा प्रदान नहीं कर पाता है, तो कुछ किशोर शराब या नशीली दवाओं का सेवन करने लगते हैं जिसे नशे की लत भी कहते हैं। तनाव दूर करने के लिए ऐसा गै-समझौतावादी व्यवहार बढ़ रहा है। स्वास्थ्य एक और पहलू है जो अत्यधिक सरोकार का है। युवाओं को यौन और जनन स्वास्थ्य संबंधी अनेक जोखिमों का सामना करना पड़ता है और अनेक लोगों को यौन और जनन स्वास्थ्य के सही विकल्पों की उचित जानकारी नहीं होती। ‘युवाओं’ के व्यापक संवर्ग में कुछ ऐसे समूह हैं जो विशेषरूप से संवेदनशील हैं। ये हैं -

  • ग्रामीण और जनजातीय युवा;
  • विद्यालय छोड़ चुके युवा;
  • किशोर विशेष रूप से किशोरियाँ;
  • अपंगताओं वाले युवा;
  • विशेष कठिन स्थितियों वाले युवा जैसे - अवैध धंधों के शिकार, अनाथ और सड़कों के आवारा बच्चे। सामाजिक रूप से उपयोगी और अर्थिक रूप से उत्पादक होने के लिए युवाओं को उचित शिक्षा और प्रशिक्षण, लाभदायक रोज़गार और व्यक्तिगत विकास और तरक्की के लिए उचित अवसरों की आवश्यकता होती है और साथ ही अपेक्षित आश्रय, स्वच्छ परिवेश और अच्छी मूलभूत स्वास्थ्य सेवाओं, सभी प्रकार के शोषणों के विरुद्ध सामाजिक सुरक्षा, संरक्षण और युवाओं से संबंधित मुद्दों से सरोकार रखने वाली निर्णायक संस्थाओं तथा सामाजिक आर्थिक और सांस्कृतिक मामलों में उपयुक्त भागीदारी के अवसरों तक पहुँच की आवश्यकता होती है। इसके साथ ही खेलों, शारीरिक शिक्षा, साहसी और मनोरंजनात्मक अवसरों तक पहुँच प्राप्त करना भी आवश्यक होता है।

भारत में युवाओं के लिए कार्यक्रम

युवा मामलों और खेलकूद के मंत्रालय ने 2003 में राष्ट्रीय युवा नीति अपनाई थी, जिसमें -

  • राष्ट्रीय सेवा योजना (एन. एस. एस.) का उद्देश्य-विद्यालय स्तर के विद्यार्थियों को समाज सेवा और राष्ट्रीय विकास के कार्यक्रमों जैसे- सड़कों के निर्माण और मरम्मत, विद्यालय की इमारत, गाँव के तालाब, ताल आदि के निर्माण पर्यावरण और पारिस्थितिकी सुधार जैसे -वृक्षोरोपण, तालाबों से खरपतवारों को निकालना, गड्ढे खोदना, स्वास्थ्य और सफ़ाई से संबंधित कार्यकलाप, परिवार कल्याण, बाल-देखरेख, सामूहिक टीकाकरण शिल्प, सिलाई, बुनाई और सहकारी संघों के आयोजन और व्यावसायिक प्रशिक्षण में शामिल करना है। राष्ट्रीय सेवा योजना के विद्यार्थी समाज के आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए विभिन्न राहत और पुनर्वास कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के लिए भी स्थानीय अधिकारियों को सहायता प्रदान करते हैं।
  • राष्ट्रीय सेवा स्वयंसेवक योजना — उन विद्यार्थियों को (जो अपनी पहली डिग्री पूरी प्राप्त कर चुके हैं) पूर्णकालिक रूप से एक या दो वर्ष की अल्पावधि के लिए, प्रमुख रूप से नेहरू युवक केंद्रों के द्वारा राष्ट्रीय विकास के कार्यक्रमों में शामिल होने का अवसर प्रदान करती है। ये प्रौढ़ क्लबों की स्थापना, कार्य शिविरों के आयोजन, युवा नेतृत्व के प्रशिक्षण कार्यक्रमों, व्यावसायिक प्रशिक्षण, ग्रामीण खेलकूद और खेलों को बढ़ावा देने आदि के कार्यक्रमों में शामिल होते हैं। नेहरू युवक केंद्रों का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों के गैर-विद्यार्थी युवकों को ग्रामीण क्षेत्रों के विकास में योगदान देने में सक्षम बनाना भी है। केंद्रों का उद्देश्य विभिन्न कार्यकलापों के द्वारा राष्ट्रीय रूप से मान्य उद्देश्य जैसे - आत्म, निर्भरता, धर्म निरपेक्षता, सामाजिकता, प्रजातंत्र, राष्ट्रीय एकता और वैज्ञानिक सोच को प्रचलित करना भी है। कुछ ऐसे कार्यकलाप औपचारिक शिक्षा, समाज सेवा शिविर, युवाओं के लिए खेलों का आयोजन, सांस्कृतिक और मनोरंजन के कार्यक्रम, व्यावसायिक प्रशिक्षण, युवा नेतृत्व प्रशिक्षण शिविर तथा युवाक्लबों को प्रोत्साहन देना और स्थापित करना है। इन कार्यकलापों का आयोजन विद्यालय नहीं जाने वाले युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए, उन्हें साक्षर बनाने और गणितीय कौशल विकसित करने, उनकी कार्य क्षमता को बेहतर बनाने और उन्हें उनके विकास की संभावनाओं के बारे में जानकार बनाने के उद्देश्य से किया जाता है, जिसमें युवा क्रियात्मक रूप से सक्षम, आर्थिक रूप से उत्पादक और सामाजिक रूप से उपयोगी बन सकें।
  • साहसिक कार्यों को प्रोत्साहन — अनेक युवा क्लब और स्वयंसेवी संगठन पर्वतारोहण, पैदल यात्रा, आँकड़ों के सग्रहण के लिए पड़ताल यात्रा, पहाड़ों की वनस्पतियों और जंतुओं वनों, मरुस्थलों और सागरों के अध्ययन, नौकायन, तटीय जलयात्रा, राफ्ट प्रदर्शनियाँ, तैरने और साइकिल चलाने आदि साहसिक कार्यो के प्रोत्साहन के लिए सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता का उपयोग करके इन गतिविधियों का आयोजन करते हैं। इन कार्यकलापों/गतिविधियों का उद्देश्य युवाओं में साहस, जोखिम लेने, सहयोगात्मक रूप से दल में काम करने, पढ़ने की क्षमता और चुनौती पूर्ण स्थितियों के लिए सहन-शीलता विकसित करने को प्रोत्साहन देना है। सरकार भी ऐसे कार्यकलापों को सुगम बनाने के लिए संस्थानों की स्थापना और विकास के लिए सहायता प्रदान करती है।
  • स्काउट और गाइड-सरकार स्काउट और गाइड के प्रशिक्षण, रैलियों और जम्बूरियों आदि के आयोजन के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करती है। इसका उद्देश्य लड़के और लड़कियों में निष्ठा,

देशभक्ति और दूसरों के प्रति विचारशील होने की भावना को बढ़ावा देकर उनके चरित्र को विकसित करना है। यह संतुलित शारीरिक और मानसिक विकास को भी बढ़ावा देता है और समाज सेवा की भावना विकसित करता है।

  • राष्ट्रमंडल युवा कार्यक्रम — भारत राष्ट्रमंडल युवा कार्यक्रम में भागीदारी कर रहा है, जिसका उद्देश्य युवाओं को अपने देशों की विकास प्रक्रियाओं में भागीदारी करने और राष्ट्रमंडल देशों में सहयोग और समझ को बढ़ाने के लिए मंच प्रदान करना है। इस कार्यक्रम के तहत भारत, जाम्बिया और गुआना में युवा कार्यों में उन्नत अध्ययन के लिए तीन क्षेत्रीय केंद्र स्थापित किए गए हैं। एशिया पैसीफ़िक क्षेत्रीय केंद्र, चंडीगढ़, भारत में स्थापित किया गया है।
  • राष्ट्रीय एकता को प्रोत्साहन — सरकार द्वारा अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं को एक प्रदेश में रहने वाले युवाओं को दूसरे ऐसे प्रदेशों के दौरे पर भेजने के लिए जिनमें काफ़ी सांस्कृतिक भिन्नताएँ हों, जिससे उनमें देश की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहरों, विभिन्न क्षेत्रों और परिवेशों के लोगों द्वारा झेली जाने वाली कठिनाइयों, देश के अन्य भागों के सामाजिक रीति-रिवाजों आदि की अधिक समझ विकसित हो सके, वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देने के लिए शिविरों, सेमीनारों/सम्मेलनों आदि का भी आयोजन किया जाता है।

वृद्धजन क्यों संवेदनशील हैं?

अनेक देशों में, वरिष्ठ नागरिक 65 वर्ष या अधिक की आयु वाले व्यक्ति होते हैं। जबकि भारत में 60 वर्ष या अधिक आयु के व्यक्तियों को वरिष्ठ नागरिक माना जाता है। भारत में वृद्धजनों की जनसंख्या में लगातार वृद्धि हो रही है चूँकि जीवन प्रत्याशा जो 1947 में लगभग 29 वर्ष थी, अब बढ़कर 63 वर्ष हो गई है। भारत वरिष्ठ जनों की जनसंख्या में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। वर्ष 2016 में वृद्धजनों की जनसंख्या कुल जनसंख्या की लगभग 9 प्रतिशत हो जाएगी (स्रोत-मानव विकास रिपोर)।

भारत में वृद्धजनों की जनसंख्या की विशिष्ट विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -

  • इनमे से अधिकांश ( 80 प्रतिशत) ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं, जिससे सेवाओं का वितरण चूनौतीपूर्ण हो जाता है,
  • वृद्ध जनसंख्या में स्त्रियों की संख्या में वृद्धि वर्ष 2011 तक (वृद्ध जनसंख्या का 51 प्रतिशत महिलाएँ होंगी),
  • अति वृद्ध व्यक्तियों ( 80 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति) की संख्या में वृद्धि,
  • वरिष्ठ नागरिकों की बड़ी जनसंख्या (30 प्रतिशत) गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रही है।

वृद्धजन विभिन्न कारणों से संवेदनशील समूह हैं। एक तो इस उम्र में अनेक व्यक्तियो के लिए स्वास्थ्य एक प्रमुख सरोकार होता है, वृद्धजन कम शारीरिक शक्ति और रक्षा क्रियाविधियों के कारण रोगों के लिए अधिक संवेदनशील होते हैं। बीमारियों के अतिरिक्त, उम्र बढ़ने के साथ अनेक अपंगताएँ जैसे - दृष्टि कमजोर होना और मोतियाबिंद के कारण अंधापन, तंत्रिका विकार के कारण बहरापन, गठिया के कारण चलने फिरने में परेशानी और अपनी देखभाल कर पाने में अक्षमता आदि हो सकती हैं।

दूसरे, अनेक लोगों के लिए पारिवारिक जीवनचक्र में यह अवस्था ऐसी अवधि हो सकती है जब वे अपने बच्चों के विवाह हो जाने से अथवा आजीविका कमाने के लिए परिवार से बाहर चले जाने के कारण अकेलेपन की पीड़ा झेलते हैं। अनेक व्यक्ति अकेलेपन, पृथक्करण और दूसरों पर बोझ बन जाने की भावना अनुभव कर सकते हैं। अनेक व्यक्ति आर्थिक रूप से अपने बच्चों पर निर्भर हो जाते हैं, जिसकी वजह से वे तनाव महसूस कर सकते हैं। इसके अलावा, विशेषरूप से महानगरों में पारंपरिक पारिवारिक ढाँचे में बिखराव होने के साथ ही पारंपरिक मूल्यों में भी परिवर्तन हो रहे हैं। शहरी जीवन की कुछ विशेषताएँ (छोटा परिवार, एकल परिवार, बुजुर्गो की देखभाल के लिए समय की कमी, रहने के लिए सीमित स्थान, महँगे रहन-सहन, अधिक कार्य घंटे) निकट और विस्तारित परिवार के अंतर्गत कम सहायता का कारण हैं। कभी-कभी निजता अपने लिए समय स्वतंत्रता, भौतिकता और आत्मकेंद्रित होने जैसी प्रवृत्तियाँ भी वृद्धजनों की उचित देखभाल में सक्षम न होने का कारण होती हैं। अत: अनेक वृद्धजन ऐसे समय में अकेले रहते हैं, जब परिवार का सहारा उनके लिए सबसे अधिक आवश्यक होता है। इस प्रकार, जरा (एजिंग) एक प्रमुख सामाजिक चुनौती बन गया है। और बुज़ुर्गों की आर्थिक और स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा करना और एक ऐसे सामाजिक परिवेश का निर्माण करना आवश्यक हो गया है, जो वृद्धजनों की भावनात्मक आवश्यकताओं के लिए अनुकूल और संवेदनशील हो।

उपर्युक्त विवरण से आपको यह नहीं सोचना चाहिए कि वृद्धावस्था में सिर्फ़ परेशानियाँ होती हैं। अनेक बुज़ुर्ग अच्छा सार्थक जीवन जीते हैं। अनेक परिवारों में बुज़ुर्गों का सम्मान और उनकी आज्ञा का पालन किया जाता है। बुज़ुर्ग जनसंख्या की एक सकारात्मक विशेषता यह है कि 60 वर्ष या अधिक आयु के अधिकांश व्यक्ति आर्थिक रूप से सक्रिय हैं, ऐसा संभवत: इसलिए है, क्योंकि वे ऐसे क्षेत्रों में कार्यरत् हैं जाँ सेवानिवृत्ति की कोई विशेष उम्र निर्धारित नहीं है। आवश्यकता इस बात की है कि बुज़ुर्गों को मानव संसाधन के रूप में माना जाए और उनके व्यापक अनुभव और बाकी क्षमताओं का इष्टतम उपयोग राष्ट्र के विकास के लिए किया जाए। सरकार द्वारा उनके स्वस्थ और अर्थपूर्ण जीवनयापन की क्षमता को सुनिश्चित किया जाना चाहिए। सरकार ने 1999 में वृद्धजनों के लिए राष्ट्रीय नीति को अपनाया।

क्रियाकलाप 2

कक्षा को दो समूहों में बाँट लें। एक समूह अपने आस-पड़ोस में बुज़ुर्गों की स्थिति पर चर्चा करे। दूसरा समूह इस पर चर्चा करे कि बुज़ुर्ग किस प्रकार परिवार और समाज में योगदान दे सकते हैं। प्रत्येक समूह की चर्चा को समूह के मुखिया द्वारा कक्षा में प्रस्तुत किया जाए।

वृद्धजनों के लिए कुछ कार्यक्रम

सरकारी, गैर सरकारी संगठन, पंचायती राज संस्थान और स्थानीय निकाय भारत में वृद्धजनों के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का क्रियान्वयन कर रहे हैं। देश में वृद्धजनों के लिए चलाए जा रहे कुछ कार्यक्रम निम्नलिखित हैं -

  • बुज़ुर्गो की मूलभूत ज़रूरतों विशेषरूप से परित्यक्त बुज़ुर्गो के भोजन, आश्रय और स्वास्थ्य देखभाल की पूर्ति के लिए चलाए जा रहे कार्यक्रम;
  • अंतरपीढ़ीय संबंधों विशेष रूप से बच्चों/युवाओं और वृद्धजनों के बीच संबंधो के विकास और उन्हें सशक्त करने के लिए कार्यक्रम;
  • सक्रिय और उत्पादक/अर्थपूर्ण रूप से वृद्धावस्था गुजजारने को प्रोत्साहन देने के लिए कार्यक्रम;
  • वृद्धजनों को संस्थागत और गैर-संस्थागत देखरेख/सेवाएँ प्रदान करने के लिए कार्यक्रम;
  • वृद्धावस्था के क्षेत्र में अनुसंधान पैरवी और जागरूकता बढ़ाने के लिए कार्यक्रम;
  • भोजन, देख-रेख और आश्रय प्रदान करने के लिए वृद्धावस्था सदन;
  • वृद्धावस्था सदनों में रहने वाले ऐसे बुज़ुर्गो के लिए विश्राम गृह सतत् देखभाल गृह जो गंभीर रूप से बीमार हों और जिन्हें सतत् उपचर्या (नर्सिंग) देखभाल और आराम की आवश्यकता हो;
  • बुज़ुर्गों के लिए बहु-सेवा केंद्र जो उन्हें दिन में देखभाल शिक्षा और मनोरंजन के अवसर स्वास्थ्य देखभाल और संगी-साथी प्रदान करते हैं;
  • ग्रामीण और सुदूर तथा पिछड़े इलाकों में रहने वाले वृद्धजनों के लिए मोबाइल चिकित्सा देखभाल इकाइयाँ प्रदान करते हों;
  • अल्जाइमर रोग/पागलपन के रोगियों के लिए डे-केयर सेंटर (दैनिक देखभाल केंद्र) जिससे अल्जाइमर के रोगियों को विशेष दैनिक देखभाल प्रदान की जा सके;
  • बुज़ुर्गों के लिए सहायता और परामर्श केंद्र;
  • मानसिक स्वास्थ्य देखभाल और बुजुर्गों के लिए विशेषीकृत देखभाल जिससे वृद्धजनों को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल हस्तक्षेप कार्यक्रम प्रदान किए जा सकें;
  • वृद्धजनों के लिए अपंगता और सुनने में सहायता के लिए सहायक यंत्र/उपकरण ;
  • बुज़र्गों के लिए फ़िजियोथिरेपी क्लीनिक भौतिक चिकित्सा केंद्र ;
  • वृद्धजनों और देखभाल करने वालों के लिए जैसे-उनकी अपनी देखभाल, निवारक स्वास्थ्य देखरेख, रोग प्रबंधन, उत्पादन और स्वस्थ बुज़ुर्गियत के लिए तैयारी, अंतर पीढ़ीय संबंध के लिए जागरूकता कार्यक्रम;
  • वृद्धजनों की देखभाल करने वालों के लिए प्रशिक्षण;
  • बच्चों विशेषरूप से विद्यालयों और महाविद्यालयों के बच्चों में संवेदनशीलता जगाने के कार्यक्रम;
  • राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (एन.ओ.ए.पी.एस.) ऐसे बुज़ुर्गो के लिए बनी जिन्हें निराश्रित माना जाता है, अर्थात् जिनके पास अपना निजी अथवा परिवारजनों से वित्तीय सहायता द्वारा आजीविका का साधन नहीं होता है। लाभार्थियों को 65 वर्ष से अधिक का होना चाहिए और उनके पास अपना आयु-प्रमाणपत्र और निराश्रित होने का प्रमाण होना चाहिए। राज्य सरकरें अपने निजी संसाधनों से इस राशि को बढ़ा सकती हैं।

जीविका के लिए तैयारी करना

करिअर/रोजगार विकल्प के रूप में आप या तो किसी पहले से चल रहे कार्यक्रम/संस्थान में इंचार्ज अथवा प्रबंधक के रूप में काम कर सकते हैं अथवा आप युवाओं, बच्चों अथवा वृद्धजनों के लिए किसी संगठन/ कार्यक्रम को स्थापित करने की पहल कर सकते हैं। जैसा भी मामला हो, यह ऐसा करिअर/रोज़गार होगा जिसके लिए आपको व्यापक जानकारी और अनेक कौशलों की आवश्यकता होगी।

आइए पहले हम यह समझ लें कि संस्थानों और कार्यक्रमों के प्रबंधन में क्या शामिल है? बच्चों युवाओं और वृद्धजनों के लिए संस्थानों और कार्यक्रमों के प्रबंधन में करिअर/रोज़गार के लिए एक योजनाकार, प्रबंधक और परीक्षक की क्षमताओं और कौशलों का होना आवश्यक है। यह उद्यमी भी हो सकता है साथ ही उसे लक्ष्य समूह की आवश्यकताओं और देखभाल के तरीकों की पूरी जानकारी होनी चाहिए। निम्नलिखित कौशलों और क्षमताओं का विकास करना आवश्यक है -

  • जन कौशल - किसी संगठन को चलाने या उसमें काम करने का अर्थ है कि आपको विभिन्न पदों पर काम करने वाले भिन्न पृष्ठभूमियों के लोगों से बातचीत करनी है। नीचे लोगों के कुछ ऐसे समूहों के बारे में बताया गया है जिनसे आपको बातचीत करनी पड़ सकती है।

(i) समुदाय/समाज - बच्चों के लिए कोई कार्यक्रम अथवा संस्थान तभी सफ़ल होगा यदि समाज में उसमें शामिल होने या उसके अपना होने की भावना होगी। ऐसा तब होता है जब कार्यक्रम में शुरूआत से ही उन लोगों को सम्मिलित करने की योजना बनाई जाती है जिनके लिए उसे बनाया जाता है। भागीदारी से योजना बनाना और उनका प्रबंधन और क्रियान्वयन करना किसी प्रभावी कार्यक्रम के आधार स्तंभ होते हैं। अतः समाज के साथ संबंध और समाज की भागीदारी को बढ़ावा देना आपके काम के प्रमुख पहलू होंगे।

(ii) निजी क्षेत्र — निजी क्षेत्र के वित्तीय संस्थान, कंपनियों और संगठन जीवन/नवाचारी कार्यक्रमों की सहायता के लिए व्यापक तौर पर आगे आए हैं। यह एक सकारात्मक कदम है, क्योंकि यह निजी क्षेत्र के लिए सामाजिक दायित्वों को पूरा करने का एक अवसर है।

(iii) सरकारी अधिकारी — आपको वित्तीय सहायता और अन्य विधिक आवश्यकताओं को पूरा करने जैसे विभिन्न कार्यों के लिए सरकारी विभागों से बातचीत की आवश्यकता हो सकती है।

(iv) संगठन में काम करने वाले व्यक्ति —संगठन के सुचारु रूप से चलने के लिए, ये महत्वपूर्ण है कि वहाँ के सभी लोगों (लाभार्थी और काम करने वाले व्यक्ति दोनों) के बीच आपस में सौहार्दपूर्ण संबंध हों। किसी संगठन की सफ़लता के लिए यह एक प्रमुख कारक है।

  • प्रशासनिक कौशल — किसी संगठन या कार्यक्रम को चलाने या उसका प्रबंधन करने में वित्तीय हिसाब किताब रखना, व्यक्तियों की भर्ती कराना, स्थान किराए पर देना, उपकरण खरीदना, रिकॉर्ड और सामान का हिसाब रखना शामिल है। यद्यपि इनमें से प्रत्येक पहलू के लिए कोई अन्य व्यक्ति विशेष कार्यरत् हो सकता है, लेकिन आपके लिए भी यह आवश्यक और सहायक हो सकता है कि आपको इनमें से प्रत्येक मुद्दे की मूलभूत समझ होनी चाहिए।

कुछ व्यक्ति किसी विशिष्ट ज़रूरतमंद लक्ष्य समूह के लिए कोई नया संगठन शुरू और स्थापित करना चाह सकते हैं। ऐसे उद्यमी व्यक्तियों को उस उपयुक्त स्थान के सभी पहलुओं पर विचार कर लेना चाहिए जहाँ वह काम करेंगे, जिससे लक्षित लाभार्थियों को लाभ हो और उन्हें प्रदान की जाने वाली सेवा/सेवाओं का संयोजन, संगठन को चलाने के लिए वित्तीय सहायता, कार्यक्रम के विभिन्न पहलुओं की देखरेख के लिए विभिन्न कौशलों और जानाकरी वाले कर्मचारियों की भर्ती, जिनमें संगठन के पंजीकरण की औपचारिकताओं, कार्यक्रम के क्रियान्वयन, आवर्ती मूल्यांकन और फ़ीडबैक/प्रतिक्रिया पर आधारित कार्यकलापों को करना शामिल है।

अंत में यह आवश्यक है कि व्यक्ति की इस बारे में स्पष्ट और पूर्ण संकल्पना होनी चाहिए कि उसका लक्ष्य क्या है और संगठन किस प्रकार लक्षित समूह की आवश्यकताओं को पूरा करने में योगदान देगा। स्पष्ट संकल्पना वाला व्यक्ति सामान्यत: उस कारण के लिए पूर्णत: प्रतिबद्ध होता है और उसकी उस क्षेत्र में काम करने की प्रबल इच्छा होती है।

बच्चों, युवाओं वृद्धजनों के लिए ऐसे कार्यक्रमों और संस्थानों की आवश्यकता हमेशा रहती है जो अच्छी सेवाएँ प्रदान कर सकें, हमेशा ही किसी सभ्य समाज की मौलिक आवश्यकता बनी रहेगी। इस करिअर/रोजगार की तैयारी के लिए पहला चरण बच्चों, युवाओं और वृद्धजनों के बारे में जानकारी अर्जित करना और उनके प्रति समझ विकसित करना है। इसके लिए गृह विज्ञान (जिसे अन्य नामों जैसे - परिवार और समाज समुदाय विज्ञान के नाम से भी जाना जाता है) अथवा सामाजिक कार्य में अथवा समाज विज्ञान की किसी अन्य शाखा में पूर्व स्नातक डिग्री प्राप्त करना सही रहता है। ये डिग्री कार्यक्रम सामान्यत: जनसंख्या के इन तीनों संवेदनशील समूहों पर केंद्रित होते हैं। आप पूर्वस्नातक की डिग्री के बाद रोज़गार बाजार में प्रवेश कर सकते हैं अथवा आगे अध्ययन करने का विकल्प चुन सकते हैं। पारंपरिक प्रणाली से अध्ययन कार्यक्रम को जारी रखने के साथ-साथ आप कार्यक्रम करने के लिए देश में मुक्त और दूर शिक्षा प्रणाली द्वारा उपलब्ध कराए जा रहे अवसरों का पता लगा सकते हैं, जिससे आप बच्चों, युवाओं और वृद्धजनों के साथ काम करने के लिए सक्षम हो सकें। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय ऐसे कार्यक्रम चला रहा है, जिनमें आपकी दिलचस्पी हो सकती है। इन कार्यक्रमों को आप नियमित डिग्री पाठ्यक्रम में अध्ययन करने के साथ भी कर सकते हैं। कुछ ऐसे पाठ्यक्रम निम्नलिखित हैं -

  • गैर-सरकारी संगठन प्रबंधन में सर्टिफ़िकेट कार्यक्रम
  • युवा-विकास कार्य में डिप्लोमा

राज्य मुक्त विश्वविद्यालय भी हैं जो दूर शिक्षा के द्वारा कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। अधिक विवरण के लिए राज्य मुक्त विश्वविद्यालयों और इग्नू की वेबसाइट देखना उचित रहेगा।

कार्यक्षेत्र

अपनी रुचि के हिसाब से आप जिस प्रकार के कार्यक्रम में शामिल होना चाहते हैं, उस क्षेत्र में आप के लिए अनेक अवसर उपलब्ध हैं। करिअर/रोज़ार के अवसरों के बारे में बॉक्स में दिखाया गया है।

रोज़गार के अवसर

  • अपने लक्षित समूह को सेवाएँ प्रदान करने के लिए अपना निजी संस्थान स्थापित करें।
  • किसी प्रतिष्ठित संस्थान अथवा कार्यक्रम में प्रबंधन बन सकते हैं।
  • किसी स्तर/काडर में काम कर सकते हैं।
  • मौजूद कार्यक्रमों और संस्थानों में अनुसंधान कर्ता, मूल्यांकन कर्ता/परीक्षक
प्रमुख शब्द

बच्चे, युवा, वृद्धजन, संवेदनशील, कठिन और चुनौती पूर्ण परिस्थितियाँ , जन कौशल, प्रशासनिक कौशल

पुनरवलोकन प्रश्न

1. बच्चे, युवा और वृद्धजन क्यों संवेदनशील होते हैं ?

2. युवाओं के लिए किस प्रकार के कार्यक्रम उपयुक्त होते हैं ?

3. वृद्धजनों के संदर्भ में कुछ सरोकार क्या हैं?

4. बच्चों , युवाओं और वृद्धजनों में से प्रत्येक के लिए दो कार्यक्रमों के बारे में बताइए।

5. बच्चों/युवाओं/वृद्धजनों के लिए अपना निजी संस्थान खोलने की योजना बनाने वाले किसी व्यक्ति को आप क्या सलाह देंगे ?

6. बच्चों/युवाओं/वृद्धजनों के संस्थानों और कार्यक्रमों के प्रबंधन में करिअर बनाने के लिए आपको जिन कौशलों और जानकारी की आवश्यकता होगी उसके बारे में बताइए।

प्रायोगिक कार्य — 1

विषय- वृद्धजनों की देखभाल और कल्याण
कार्य - एक बड़े संयुक्त परिवार संचालन के बारे में पटकथा तैयार कीजिए और उस पर नाटक मंचन कीजिए।

उद्देश्य — परिवारों में सभी आयु वर्ग के व्यक्ति होते हैं। एक स्वस्थ, सुखी परिवार वह होता है जिसमें प्रत्येक आयु समूह के सदस्यों की आवश्यकताओं और ज़रूरतों की पूर्ति होती है और प्रत्येक सदस्य का परिवार में एक महत्वपूर्ण स्थान होता है। इनकी भूमिकाओं को समझाने के लिए नाट्य मंचन करना एक सशक्त एवं प्रभावी तकनीक है।

प्रयोग कराना

5-6 विद्यार्थियों के समूह का चयन करके उन्हें विभिन्न पारिवारिक सदस्यों, बच्चों, अभिभावकों और दादा/दादी की भूमिका दी जाती है। उन्हें 15 मिनट की एक भूमिका करने के लिए कहें, जिसके लिए उन्हें काल्पनिक स्थितियों में भिन्न चरित्रों के लिए पटकथा लिखनी होगी।

नाटकों पर चर्चा करके उनका विश्लेषण करके परिवार में वृद्धजनों की भूमिका पर विद्यार्थियों की समझ के बारे में मूल्यांकन किया जाएगा।

शिक्षक के लिए नोट -

नाटक की प्रस्तुति के बाद शिक्षकों को परिवार और समाज में वृद्धजनों की भागीदारी, युवा सदस्यों की सोच तथा व्यवहार और परिवार के कल्याण के संदर्भ में चर्चा करनी चाहिए।

प्रायोगिक कार्य — 1

विषयवस्तु — पर्यावरण, पक्षियों और जंतुओं पर चित्र सहित चार पंक्तियों की कविताओं की एक पुस्तिका बनाएँ।

उद्देश्य- विद्यार्थियों को खेल सामग्री कविताओं की पुस्तिका, विकसित और निर्मित करने के अधिगम-अनुभव प्रदान करना।

प्रयोग कराना

1. विद्यार्थियों को छह के समूहों में बाँट कर एक ऐसा विषय चुनने के लिए कहें, जिस पर वे एक कविता लिख सकें।

2. विषय पर्यावरण, पक्षी, जंतु, प्रकृति आदि हो सकता है।

3. विद्यार्थी अपने विषय से संबंधित पत्रिकाओं/समाचार पत्रों से प्रासंगिक चित्र एकत्रित कर सकते हैं। यदि विद्यार्थी चाहें तो वे स्वयं चित्र बनाकर उनमें रंग भर सकते हैं।

4. चार्ट पत्र की एक शीट से " $4 \times 6$ " के कार्ड काट दें। विद्यार्थी पुरानी पुस्तिकाओं के कवर भी प्रयोग कर सकते हैं।

5. एक कविता के लिए एक कार्ड का प्रयोग करें।

6. गोंद से प्रासंगिक चित्र को कविता के साथ चिपकाएँ/अथवा प्रासंगिक चित्र बनाएँ।

7. रंगीन पेन/मोम के रंगों से बड़े स्पष्ट अक्षरों में कविता लिखें।

8. इसी तरीके से $4-5$ कार्ड बनाएँ।

9. चित्रों सहित शीर्षक लिखते हुए मुखपृष्ठ बनाएँ।

10. कार्ड में छेद करके उन्हें किसी पुरानी रस्सी से बाँध दें। कविताओं पर पुस्तिका तैयार है।

अधिक जानकारी के लिए संदर्भ

आर्या एस, 1996. इनफेंट एडं चाइल्ड केअर, विकास पब्लिकेशंसू, नयी दिल्ली.

कक्कर, एस. 1981. द इनर वर्ड - द साइकोएनलिटिक स्टडी ऑफ़ चाइल्डहुड एंड सोसायटी इन इंडिया. ऑक्सफोर्ड पब्लिशर्स, नयी दिल्ली.

क्रिशनन, एल. 1998 चाइल्ड रिअरिंग - एन इंडियन पर्सपैक्टिव. इन-ए.के. श्रीवास्तव (ई.डी.), चाइल्ड डेवलोपमेंट - एन इंडियनपसपैक्टिव पृष्ठ संख्या 25 - 55 . राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद्, नयी दिल्ली. घोष, एस. 1981. द फ़ीडिंग एंड केअर ऑफ़ इनफेंटस एंड यंग चिल्ड्रन. वॉल्यूंटरी हैल्थ एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया, नयी दिल्ली.

डॉक्टर एन.डी.टी.वी. 2009. चाइल्ड डेवलोपमेंट बाइवर्ड बुक्स. नयी दिल्ली.

  • अडोलसेंस बाइवर्ड बुक्स. नयी दिल्ली.

स्वामीनाथन, एम. 1998. द फर्स्ट फ़ाइव इअर्स - ए क्रिटिकल पर्सपैक्टिव ऑन अरली चाइल्डहुड केअर एंड ऐजुकेशन इन इंडिया. सेज पब्लिकेशंस, नयी दिल्ली.

सैनट्रोक, जे. डब्ल्यू. 2006. चाइल्ड डेवलोपमेंट मैग्रा. हिल न्यूयार्क.

शर्मा, एन. 2009. अन्डस्टैंडिंग अडोलसेंस. नेशनल बुक ट्रस्ट.

पाठ्यक्रम

मानव पारिस्थितिकी एवं परिवार विज्ञान

तर्काधार

मानव पारिस्थितिकी एवं परिवार विज्ञान पहले गृह-विज्ञान के रूप में जाना जाता था, इससे संबंधित पाठ्यचर्या को एन.सी.ई.आर.टी. के राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा-2005 के सिद्धांतों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। पारंपरिक रूप से गृह-विज्ञान का क्षेत्र पाँच विषयों को सम्मिलित करता है, जिनके नाम खाद्य एवं पोषण, मानव विकास एवं परिवार अध्ययन, वस्त्र और परिधान, संसाधन प्रबंध तथा संचार और विस्तार हैं। इन सभी क्षेत्रों की अपनी विशिष्ट विषयवस्तु और लक्ष्य होते हैं, जो भारतीय सामाजिक सांस्कृतिक संदर्भ में व्यक्ति और परिवार के अध्ययन में योगदान करते हैं। इस नयी पाठ्यचर्या ने विशिष्ट तरीकों से विषय के पारंपरिक ढ़ाँचे से अलग होने के प्रयास किए हैं। इस नए संकल्पना-निर्धारण में विषय के विभिन्न क्षेत्रों के मध्य सीमाओं को विलीन कर दिया गया है। ऐसा विद्यार्थियों को घर और समाज में जीवन के समग्र विकास को विकसित बनाने में सक्षम बनाने के लिए किया गया है। गॄह विहीनों को शामिल करते हुए, विभिन्न परिवेशों में रह रहे ही लड़के और लड़कियों के लिए उपयुक्त पाठ्यचर्या बनाकर घर और समाज में प्रत्येक विद्यार्थी के जीवन को आदर देने के लिए विशेष प्रयास किया गया है। यह भी सुनिश्चित किया गया है कि सभी इकाइयाँ अपनी विषयवस्तुओं में समता, समानता और समावेशिता के विशिष्ट सिद्धांतों को उद्बोधित करती हैं। इसमें जेंडर संवेदनशीलता, ग्रामीण-शहरी जनजातीय स्थिति के संबंध में विविधता और अनेकत्व के लिए आदर, जाति, वर्ग, पारंपरिक और आधुनिक दोनों प्रभावों के लिए महत्त्व, समाज के लिए सरोकार और राष्ट्रीय प्रतीकों में गर्व शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, इस नूतन उपागम ने विज्ञान और सामाजिक विज्ञान विषयों के साथ संबंध स्थापित कर विद्यालय स्तर पर अधिगम को एकीकृत करने में विवेकपूर्ण प्रयास किए हैं।

प्रयोगों में नवाचारी और समकालीन लक्षण हैं और नवीन प्रौद्योगिकी तथा अनुप्रयोगों के उपयोग को प्रतिबिंबित करते हैं, जो लोगों की सजीव वास्तविकताओं के साथ विशेष जुड़ाव को सशक्त करेंगे। विशेष रूप से क्षेत्र-आधारित प्रायोगिक अधिगम की ओर बदलाव किया गया है। प्रयोग विवेचनात्मक सोच पोषित करने हेतु डिजाइन किए गए हैं। इसके अतिरिक्त रूढ़िवादी जेंडर भूमिकाओं से दूर हटने के सचेत

प्रयास किए गए हैं, इससे लड़के और लड़की दोनों के लिए अनुभव अधिक समावेशी और अर्थपूर्ण बन गए हैं। यह आवश्यक है कि प्रयोग परिवार और समाज में उपलब्ध संसाधनों को ध्यान में रखकर किए जाएँ। यह पाठ्यक्रम किशोरावस्था, विद्यार्थियों द्वारा अनुभव की जाने वाली विकास की अवस्था से प्रारंभ करते हुए, जीवन-अवधि दृष्टिकोण का उपयोग कर कक्षा 11 में विकासात्मक ढ़ाँचे को अपनाता है। यह अपने विकास की अवस्थाओं से प्रारंभ करते हुए रुचि उत्पन्न करेगा और शारीरिक और संवेगात्मक परिवर्तनों, जिनमें से विद्यार्थी गुजर रहा है, को पहचानने में सक्षम होगा। इसके अनुसरण में बचपन और वयस्कता का अध्ययन है। प्रत्येक इकाई में चुनौतियों और सरोकारों को चुनौतियों का सामना करने के लिए आवश्यक गतिविधियों और संसाधनों के साथ उद्बोधित किया गया है।

कक्षा 11 के लिए ‘स्वयं और परिवार’ तथा ‘घर’ वैयक्तिक जीवन और सामाजिक अंत:क्रिया की गत्यात्मकता को समझने के लिए केंद्र बिंदु हैं। इस उपागम को उपयोग में लेने का तर्काधार है कि यह परिवार के संदर्भ में किशोर विद्यार्थी को स्वयं को समझने में सक्षम बनाएगा, जो व्यापक भारतीय सामाजिक सांस्कृतिक परिवेश में निहित है।

कक्षा 12 के लिए, जीवन अवधि में कार्य और जीविका’ पर बल दिया गया है। इस संदर्भ में कार्य को आवश्यक मानव गतिविधि समझा गया है, जो व्यक्ति, परिवार और समाज के विकास और अस्तित्व में योगदान करता है। इसका महत्त्व केवल इसके आर्थिक शाखा-विस्तार से जुड़ा हुआ नहीं है अपितु विद्यार्थी को कार्य, नौकरियों और जीविकाओं तथा उनके अंर्तसंबधों को खोजने में मदद मिलेगी। इस अवधारणा को समझने में विद्यार्थी को एच.ई.एफ़.एस. के संबंधित क्षेत्रों में जीवन कौशलों और कार्य कौशलों का विकास करना होगा। यह पाठ्यक्रम में चर्चित चयनित क्षेत्रों में विशेषज्ञता के लिए आवश्यक उन्नत व्यावसायिक कौशलों के लिए आधारभूत कौशलों और अभिमुखीकरण की प्राप्ति को सहज करेगा। यह महत्वपूर्ण है कि ये कौशल विद्यार्थी के अपने व्यक्तिगत, सामाजिक जीवन के साथ-साथ भविष्य में जीविका प्राप्ति के लिए सहायक होंगे।

उद्देश्य

मानव पारिस्थितिकी एवं परिवार विज्ञान (एच. ई. एफ़. एस.) पाठ्यचर्या शिक्षार्थियों को निम्नलिखित में सक्षम बनाने हेतु निर्मित की गई है -

1. परिवार और समाज के संबंध में स्वयं की समझ विकसित करने हेतु।

2. एक उत्पादक व्यक्ति और अपने परिवार, समुदाय और समाज के सदस्य के रूप में अपनी भूमिका और उत्तरदायित्व समझने हेतु।

3. विविध क्षेत्रों में अधिगम को स्वीकृत करने और अन्य अकादमिक विषयों के साथ संबंध जोड़ने हेतु।

4. संवेदनशीलता विकसित करने और समता तथा विविधता के मुद्दों और सरोकारों का विवेचनात्मक विश्लेषण करने हेतु।

5. व्यावसायिक जीविकाओं के लिए एच. ई. एफ़. एस. के विषय की सराहना करने हेतु।



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