अध्याय 10 संस्थाओं में वस्त्रों की देखभाल और रखरखाव

प्रस्तावना

परिवार में पोशाकों और घरेलू उपयोग में आने वाले कपड़ों के बारे में सब भली-भाँति जानते हैं। आप यह भी जानते होंगे कि कुछ विशिष्ट प्रकार के कपड़े औद्योगिक उद्देश्यों के लिए कुछ संस्थाओं के आंतरिक भाग में ऊष्मा और ध्वनि को रोधित करने के लिए और अस्पतालों में पट्टियों, मास्क आदि के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं, क्योंकि विशेष गुणों वाले कपड़ों का विशेष प्रयोग और कार्यात्मकता के लिए चयन किया जाता है, अत: यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि ये विशेष गुण उन वस्त्रों के अपेक्षित जीवनकाल में बने रहें। उनकी अच्छी देखभाल करके यह प्रयास किए जाते हैं कि उस उत्पाद के काम में आने की अवधि बढ़ सके। वस्त्रों की देखभाल और रखरखाव में दो पहल शामिल हैं-

1. सामग्री को भौतिक क्षति से मुक्त रखना और यदि उसका प्रयोग करते समय कोई क्षति पहुँची है तो उसमें सुधार करना।

2. धब्बों और धूल को हटाते हुए उसके रूप-रंग और चमक को बनाए रखना एवं उसकी बनावट तथा दृष्ट्टिगोचर होने वाली विशेषताओं को बनाए रखना।

मूलभूत संकल्पनाएँ

Abstract

स्वच्छ चमकदार स्वास्थ्य के अनुकूल वस्त्र, दागरहित और कड़क घरेलू लिनेन सफल धुलाई या निर्जल धुलाई का परिणाम होते हैं। वस्त्रों की धुलाई एक विज्ञान और कला दोनों है। यह विज्ञान है, क्योंकि यह वैज्ञानिक सिद्धांतों और तकनीकों के अनुप्रयोगों पर आधारित है। यह एक कला भी है, क्योंकि सौंदर्दपरक रुचिकर परिणाम प्राप्त करने के लिए इसके अनुप्रयोग में कुछ कौशलों से संबंधित निपुणता की आवश्यकता होती है।

आप जानते ही हैं कि विभिन्न वस्त्रों की देखरेख और रखरखाव उनके रेशों की मात्रा, धागे के प्रकार और वस्त्र निर्माण तकनीकों, वस्त्रों की दी गई सुसज्जा और उनको कहाँ उपयोग में लाना है, इस सब पर निर्भर करता है। आप धुलाई (लाँड्री) की प्रक्रिया, धण्बे हटाना, जल की भूमिका—साबुनों और अपमार्जकों (डिटर्जेंट) की उपयुक्तता, धुलाई की विधियाँ, सुसज्जा उपचार, इस्तरी करने और गरम प्रेस करने, तह लगाने से परिचित हैं। आइए, अब इन गतिविधियों के लिए आवश्यक उपकरणों के बारे में संक्षिप्त चर्चा कीजिए। सामान्यत: उपयोग में लिए जाने वाले तीन प्रकार के मुख्य उपकरण हैं-

1. धुलाई के उपकरण

2. सुखाने के उपकरण

3. इस्तरी/्रेस करने के उपकरण

घरेलू स्तर पर, अधिकांश धुलाई हाथ से की जाती है, जिसमें बालटियों, चिलमचियों, तसलों और रगड़ने के तख्तों और ब्रुशों जैसे उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। कुछ मामलों में, मूल धुलाई की मशीनें भी प्रयोग की जाती हैं।

1. धुलाई के उपकरण

धुलाई की मशीनों के दो प्रकार के मॉडल उपलब्ध हैं — ऊपर से भराई वाले (जिनमें मशीन में कपड़े ऊपर से डाले जाते हैं) और सामने से भराई वाले (जिनमें मशीन में कपड़े सामने से भरे जाते हैं) ये मशीनें भी तीन प्रकार की हो सकती हैं-

(i) पूर्णतया स्वचालित-इन मशीनों में प्रत्येक बार उपयोग करने अर्थात् पानी भरने, पानी को निश्चित ताप पर गरम करने, धुलाई चक्र और खंगालने की संख्या के लिए नियंत्रण को एक बार सेट करना पड़ता है। इसके बाद मशीन को चला रहे व्यक्ति के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होती।

क्रियाकलाप 10.1

बाज़ार में उपलब्ध विभिन्न प्रकार की धुलाई मशीनों का सर्वेक्षण कीजिए। इनके चित्र भी इकट्ठा करिए और उन्हें दिए गए बॉक्सों में चिपकाइए।

(ii) अर्ध-स्वचालित——न मशीनों में समय-समय पर काम कर रहे व्यक्ति के हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है। प्रत्येक चक्र के साथ खंगालने का पानी इन मशीनों में भरना पड़ता है और निकालना पड़ता है। ये सामान्यत: दो-टब वाली मशीनें होती हैं।

(iii) हस्त-चालित — इन मशीनों में 50 प्रतिशत या अधिक काम प्रचालक को हाथ से करना पड़ता है। स्वचालित मशीन में निम्नलिखित प्रचलन होते हैं-

(क) जल भरना

(ख) जल स्तर नियंत्रण भी एक महत्वपूर्ण विशेषता है। जल का स्तर स्व-चालन अथवा हस्त-चालन द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

(ग) जल के तापमान का नियंत्रण—मशीन में एक बटन, डायल अथवा पैनल सूचक होता है जो जल के वांछित दाब का चयन करने में सहायक होता है। धोने और खंगालने का तापमान समान या भिन्न हो सकता है।

(घ) धुलाई-धुलाई की सभी मशीनों का सिद्धांत है कि वे धोने वाले घोल में कपड़ों से गंदगी हटाने के लिए कपड़ों को गतिशील रखें। इसकी प्रमुख विधियाँ हैं-

(i) आलोड़न— यह ऊपर से कपड़े डालने वाली मशीनों में प्रयोग में लाया जाता है। आलोड़क में ब्लेड होते हैं जो घूम सकते हैं (एक दिशा में गति) या दोलन कर सकते हैं (दो दिशाओं में बारी-बारी से गति)। इससे टब में धारा का प्रवाह होता है, जिससे जल वेगपूर्वक कपड़े को गीला कर देता है। (ii) स्पंदन — यह भी ऊपर से भरने वाली मशीनों में उपयोग में लाया जाता है। गति ऊधर्ध्व स्पंदन द्वारा की जाती है जो बहुत तेज़ ऊर्ध्व गति करता है।

(iii) अवपातन (टंबलिंग) —इसका प्रयोग सामने से भरने वाली मशीनों में किया जाता है। धुलाई क्षैतिज अवस्था में रखे बेलन में होती है जो छिद्रयुक्त होता है और आंशिक रूप से भरे टब में यह घूमता है। प्रत्येक चक्कर के साथ कपड़े ऊपर तक ले जाए जाते हैं और फिर धुलाई वाले जल में गिरा दिए जाते हैं। इसका अर्थ है कपड़े जल में से गुज़रते हैं, बजाय इसके कि जल कपड़ों में से गुजरर, जैसा कि पिछली दो विधियों में आपने देखा।

मशीन के साइज और धोए जाने वाले वस्त्रों के प्रकार के आधार पर आलोड़कों को प्लास्टिक, धातु (ऐलुमिनियम) अथवा बैकलाइट का बनाया जाता है और इस प्रकार वे अपमार्जकों, विरंजकों, मृदुकारकों, इत्यादि से प्रभावित नहीं होते। वस्त्र के प्रकार के आधार पर आलोड़क की गति को परिवर्तित किया जा सकता है।

(ङ) खंगालना (रिंसिंग)—धुलाई के चक्र में यह एक महत्वपूर्ण चरण है। यदि कपड़ों को अच्छी तरह खंगाला न जाए, तो वे मटमैले दिखाई देते हैं और उनकी बुनावट कड़ी हो सकती है।

(च) जल निष्कर्षण—धुलाई और प्रत्येक खंगालने की प्रक्रिया के बाद जल को निकाल दिया जाता है। यह तीन तरीकों से किया जा सकता है-

(i) चक्रण-300 rpm (300 चक्कर प्रति मिनट) से अधिक गति से चक्रण होने पर एक अपकेंद्री बल उत्पन्न होता है, जो जल को ऊपर और बाहर फेंकता है। यह जल पंप द्वारा नाली में बहा दिया जाता है।

(ii) तली-निकास — छिद्रित टबों वाली मशीनें धुलाई की प्रक्रिया समाप्त होने पर और फिर खंगालाने की प्रक्रिया समाप्त होने पर रुक जाती हैं और जल तली में नाली द्वारा बाहर निकल जाता है। निकास अवधि के अंत में टब ऊपर दिए अनुसार चक्रण करता है, जिससे कपड़ों में से बचा-खुचा जल भी निकल जाता है।

(iii) तली-निकास और चक्रण का संयोजन - कुछ मशीनें बिना रुके तली से जल निकास करती हैं अर्थात् तली से निकास चक्रण की अवधि में ही होता है। यह पद्धति जल का श्रेष्ठ निकास उपलब्ध कराती है, क्योंकि यह तली से भारी गंदगी और जल में निलंबित गंदगी को निकाल देती है।

चक्रण के समय वस्त्रों से निकाले गए जल की मात्रा टब के चक्रण की गति से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होती है। यह गति 333-1100 rpm तक अलग-अलग हो सकती है। लगभग सूखने तक चक्रण नहीं किया जाता, क्योंकि इससे वस्त्रों में सिलवटें पड़ जाती हैं जो इस्तरी द्वारा बहुत कठिनाई से हटती हैं। चक्रण की उपयुक्त गति $600-620 \mathrm{rpm}$ है।

2. सुखाने के उपकरण और प्रक्रिया

खुले में सुखाने के अलावा, व्यापारिक और संस्थागत स्तरों पर वस्त्रों को सुखाने के लिए शुष्ककों (ड्रायर) का प्रयोग किया जाता है।

शुष्ककों में दो प्रकार के परिचालन होते हैं-

(i) अपेक्षाकृत निम्न तापमान की वायु को उच्च वेग से परिचालित किया जाता है। कमरे की वायु शुष्कक में सामने के पैनल के नीचे से प्रवेश करती है, ऊष्मा के स्रोत के ऊपर से प्रवाहित होती है और फिर वस्त्रों में से होती हुई एक निकास नली से बाहर निकल जाती है। इससे कमरे का तापमान और आर्द्रता सामान्य बनी रहती है।

(ii) उच्च ताप की वायु धीरे-धीरे परिचालित की जाती है। इसमें जब वायु शुष्कक में प्रवेश करती है और ऊष्मा के स्रोत के ऊपर से गुज़रती है तो इसे शुष्कक के शीर्ष परिस्थत छिद्रों के माध्यम से एक छोटे पंखे द्वारा खींच लिया जाता है, फिर नीचे की ओर वस्त्रों के बीच से गुज़रते हुए निकासनली द्वारा बाहर भेज दिया जाता है, क्योंकि शुष्ककों में वायु की गति धीमी होती है, अत: निष्कासित वायु की आर्द्रता उच्च होती है।

3. इस्तरी करना और गरम प्रेस करना

अधिकांश घरों में एक इस्तरी होती है और प्रेस करने के लिए एक अस्थायी या स्थायी स्थान होता है। इस्तरी करना एक प्रक्रिया है, जिससे वस्त्रों को प्रयोग में लाते या धोते समय पड़ने वाली सिलवटों को समतल किया जाता है। प्रेस करने से पोशाक की बाँहों पर, पेंट पर और चुन्नट वाली स्कर्ट में क्रीज़ डालने में मदद मिलती है। इस्तरी में चिकनी धात्विक सतह होती है, जिसे गरम किया जा सकता है। अधिकांश विद्युत इस्तरियों में उनके भीतर ही तापस्थायी बना होता है जो कपड़े के लिए उपयुक्त ताप का समायोजन कर देता है। इस्तरी में ऐसा तंत्र भी हो सकता है जो उसके प्रयोग के समय भाप उत्पन्न करे। इस्तरी का भार 1.5 से 3.5 किग्रा. तक हो सकता है। घरेलू उपयोग के लिए हलकी इस्तरियाँ पसंद की जाती हैं, यद्यपि भारी वस्तुओं, जैसे - परदे, चादर, इत्यादि के लिए भारी इस्तरियों की आवश्यकता होती है।

यद्यपि अधिकांश मामलों में गरम करने का कार्य विद्युत से किया जाता है, भारत में अभी भी कोयले से गरम की जाने वाली इस्तरियाँ देखी जा सकती हैं। कोयले की इस्तरी एक ढक्कनदार धातु के बक्से की तरह होती है, जिसमें इस्तरी को गरम करने के लिए जलते हुए कोयले के टुकड़े रखे जाते हैं।

परिवार में काम आने वाली पोशाकों और घरेलू वस्तुओं की देखरेख और रखरखाव विभिन्न स्तरों पर किया जा सकता है। घरेलू धुलाई द्वारा वस्त्रों और दैनिक उपयोग की छोटी वस्तुओं का ध्यान रखा जाता है। घरेलू लिनेन की बड़ी वस्तुएँ और कुछ विशेष वस्तुएँ व्यावसायिक धुलाईघरों

(लाँड्रियों) में भेज दी जाती हैं। कभी-कभी व्यवसायी व्यक्ति की सेवाएँ भाड़े पर ली जाती हैं, जो धोने और/अथवा इस्तरी और सुसज्जा करने के लिए घर से कपड़े इकट्ठे करता है। इस प्रकार के व्यवसायी (जिन्हें अकसर धोबी कहते हैं) घरों, विद्यार्थियों के छात्रावास, छोटे होटलों और रेस्टोंटों जैसी संस्थाओं को सेवाएँ देते हैं। वे सामान्यतः अपने घरों से काम करते हैं। धुलाई के लिए वे शहरों और नगरों में विशिष्ट निर्दिष्ट स्थानों का उपयोग करते हैं, जिन्हें ‘धोबी घाट’ कहते हैं।

वैयक्तिक कार्यकर्ताओं की संकल्पना ‘लाँड्रियों’ या ‘ड्राइक्लिनिंग शॉप्स’ (धुलाईघरों या निर्जल धुलाई की दुकानों) में विकसित हो गई । यहाँ ग्राहक धुलवाने के लिए वस्त्र लाते हैं और कुछ दिन बाद धुले और इस्तरी किए हुए वस्त्रों को ले जाते हैं। ये ग्राहक कोई व्यक्ति या संस्था हो सकती है। बड़े धुलाईघरों के अकसर शहर के विभिन्न भागों में कई केंद्र या दुकानें होती हैं। कुछ धुलाईघर ग्राहक से सामग्री लेने और पहुँचाने की सेवाएँ भी देते हैं। यह विशेष रूप से छात्रावासों, छोटे होटलों, रेस्टोरेंटों और छोटे अस्पतालों एवं नर्सिंग होम्स जैसी संस्थाओं के लिए होता है।

व्यावसायिक धुलाईघर विभिन्न भागों में व्यवस्थित किए जाते हैं। प्रत्येक भाग एक विशिष्ट कार्य से संबंधित होता है, जैसे - धुलाई, जल निष्कासन, सुखाना, प्रेस करना। कुछ धुलाईघरों में अस्पतालों और संस्थाओं के लिए अलग खंड हो सकता है और वैयक्तिक तथा निजी कार्यों के लिए अलग खंड हो सकता है। उनमें निर्जल-धुलाई रेशा विशिष्ट वस्तुओं, जैसे - ऊनी वस्त्र, रेशमी वस्त्र और सिंथेटिक वस्त्र, कंबलों और कालीनों जैसी विशिष्ट वस्तुओं के लिए अलग खंड हो सकते हैं। कुछ धुलाईघरों में रँगाई और जरी पॉलिश जैसी विशिष्ट सुसज्जा की व्यवस्था भी होती है। अधिकांश धुलाईघरों में निरीक्षण, सामग्री को छाँटकर अलग करना और पूर्व उपचारों, जैसे - रफू करना, मरम्मत करना और धब्बे हटाना के लिए इकाइयाँ होती हैं।

इन धुलाईघरों में बड़े-बड़े उपकरण होते हैं और अधिक संख्या में होते हैं। इन धुलाई की मशीनों में एक चक्र में 100 कि.ग्रा. या अधिक भार (घरेलू धुलाई मशीनों के 5-10 कि.ग्रा. भार की तुलना में) लेने की क्षमता होती है। निर्जल-धुलाई के लिए उनके पास अलग मशीनें होती हैं। अन्य उपकरणों में शामिल हैं-जल निष्कासक, शुष्कक, समतल सतह प्रेस करने के उपकरण, रोलर इस्तरी और कैलेंडरिंग मशीन, तह लगाने और पैक करने की मेज़ और सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने हेतु ट्रालियाँ।

सभी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में रिकॉर्ड रखने की एक पद्धति होती है। जब कोई वस्तु (वस्त्र) प्राप्त की जाती है तो उसकी जाँच की जाती है और कोई भी क्षति अथवा आवश्यक विशेष देखभाल को लिख लिया जाता है। ग्राहक को एक रसीद दी जाती है जिसमें वस्त्रों की संख्या, उनका प्रकार और तैयार होने पर देने की तारीख लिखी जाती है। रसीद के अनुरूप वस्त्रों पर सांकेतिक पट्टियों की पद्धति प्रत्येक ग्राहक या रसीद के वस्त्रों को पहचानने में मदद करती है।

क्रियाकलाप 10.2

अपने घर के विभिन्न प्रकार के वस्त्रों की सूची बनाइए। इन्हें घर में होने वाली गतिविधियों, व्यापारिक धुलाई-घर में भेजे जाने अथवा कुछ व्यावसायिकों के उपयोग में आने के अनुसार वर्गीकृत कीजिए।

संस्थाएँ

अस्पतालों, जेलों और होटलों जैसी बड़ी संस्थाओं को बिछाने के साफ़ कपड़ों, काम करने के कपड़ों या वर्दियों की लगातार आवश्यकता रहती है और सामान्यत: इनके अपने धुलाई विभाग होते हैं। संस्था के संचालन के लिए वस्त्रों को व्यवस्थित रूप से इकट्ठा करना, उनकी धुलाई और समय पर सुपुर्दगी करना बहुत आवश्यक होता है।

दो प्रकार की संस्थाएँ होती हैं, जिनके अंदर वस्त्रों की धुलाई और रखरखाव की अपनी व्यवस्था होती है। ये संस्थाएँ होटल और अस्पताल हैं। दोनों में बड़ी मात्रा में बिस्तरों की चादों, कमरे की सज्जा की अन्य सामग्री के साथ कर्मचारियों की वर्दियाँ और अन्य सामग्री,जैसे - ऐप्रन, टोपियाँ, सिर के परिधान और मास्क होते हैं।

अस्पताल के धुलाईघर में स्वास्थ्य, स्वच्छता और विसंक्रमण का ध्यान रखा जाता है, परंतु बहुत से अस्पतालों ने उपयोग के बाद फेंक देने वाली सामग्री उपयोग में लेना प्रारंभ कर दिया है, जहाँ संक्रमण का खतरा अधिक रहता है, वहाँ फेंकी गई सामग्री को जलाकर नष्ट कर दिया जाता है। अस्पतालों की अधिकांश सामग्री सूती और रंगी हुई (अस्पताल और विभाग के विशेष रंग में) होती है। ये रंग बहुत पक्के होते हैं। केवल कंबल ऊनी होते हैं। प्रतिदिन की धुलाई मुख्य रूप से सूती वस्त्रों की होती है। यहाँ पर भी पक्के धब्बों पर बहुत ध्यान नहीं दिया जाता है और स्टार्च लगाने और सफ़ेदी लाने जैसी सुसज्जा को भी शामिल नहीं किया जाता। यहाँ तक कि प्रेस करना भी बहुत पूर्णता से नहीं होता। मरम्मत करना और सुधारना तथा अनुपयोगी सामग्री का निपटान करना अपेक्षित सेवाओं में शामिल किया भी जा सकता है और नहीं भी।

आतिथ्य-सत्कार के क्षेत्र में, अर्थात् होटलों और रेस्टोरेंटों के लिए सामग्री का सौंदर्यबोध और अंतिम सज्जा सबसे अधिक महत्वपूर्ण होते हैं। अस्पतालों की अपेक्षा यहाँ की सामग्री भिन्न रेशों वाली हो सकती है। धुले हुए वस्त्रों की अंतिम परिसज्जा, अर्थात् स्टार्च लगाना, प्रेस करना और सही तथा दक्ष तह लगाने पर बल दिया जाता है। उन्हें आवश्यकता पड़ने पर मेहमानों के व्यक्तिगत कपड़ों की धुलाई का भी ध्यान रखना पड़ता है। जैसे पहले बताया जा चुका है कि छोटे होटलों का धुलाई संबंधी काम बाहर के व्यावसायिक धुलाईचरों से कराया जाता है।

अस्पतालों में धुलाईघर के कार्य करने की प्रक्रिया

1. आपात विभाग, मुख्यओ.टी. (ऑपेशेन थिएटर), ओ.पी.डी. (बाह्य रोगी विभाग), विभिन्न विशेषज्ञता केंद्र और वार्ड

2. कपड़ों के भंडार या सीधे अस्पताल से धुलाईघर संयंत्र तक परिवहन (कपड़ों को ले जाना)

3. गंदे कपड़ों को उतारना और अलग करना-

  • बिस्तर की चादर — साफ़, हलकी गंदी और ज़्यादा गंदी
  • रोगियों की पोशाकें
  • डॉक्टरों की पोशाकें
  • कंबल

4. धुलाई का काम बड़ी मशीनों में किया जाता है, जिनकी क्षमता 100 कि.ग्रा. प्रति भार की होती है।

5. जल-निष्कासन—-जल-निष्कासन अपकेंद्री गति पर कार्य करते हैं और ये $60-70$ प्रतिशत नमी को वस्त्रों से हटा देते हैं

6. सुखाना

7. प्रेस करना, तह लगाना और ढेर लगाना

8. सुधार करना और अनुपयोगी सामग्री को अलग करना

9. पैकिंग (पैक करना)

10. वितरण

काम की मात्रा विशेष रूप से बिस्तर की चादरों के लिए होटलों की तुलना में अस्पतालों के लिए बहुत ज़्यादा होती है। बड़े होटलों में 400-500 कमरे होते हैं। बड़े अस्पतालों में 1800-2000 बिस्तर या और भी अधिक हो सकते हैं, जिनकी देखभाल करनी पड़ती है। ऑपरेशन थिएटर, प्रसूति-वार्ड और प्रसव-कक्ष में प्रतिदिन पाँच या अधिक बार चादोें बदलनी पड़ सकती है। भंडार में प्रति बिस्तर कम से कम छः चादरों के सेट रखे जाते हैं। प्रत्येक सेट में एक बिस्तर पर बिछाने की चादर, एक ओढ़ने की चादर और एक तकिए का कवर होता है। कंबल प्रतिदिन बदले नहीं जाते, जब तक कि गंदे न हो जाएँ। रोगियों के बिस्तरों की चादरों के अलावा धोए जाने वाले कपड़े रोगियों की पोशाकें (गाउन, कुर्ता, पजामा, इत्यादि), डॉक्टरों की पोशाकें (कोट, गाउन, कुर्ता और पजामा जो रोगियों की पोशाक से सामान्यत: भिन्न रंग के हो सकते हैं और टेरीकॉट कपड़े के हो सकते हैं) और कुछ सामान्य सामग्री, जैसे - मेज़पोश और परदे हो सकते हैं।

व्यावसायिक धुलाईघरों के समान यहाँ भी कपड़े इकट्ठे करने और प्रत्येक विभाग को उनके वितरण करने से संबंधित रिकॉर्ड रखने की पद्धति है। एक उदाहरण याँँ दिया जा रहा है-

अस्पताल का नाम
धुलाई के कपड़ों की रसीद
रसीद सं…………………….
देने वाले का नाम…………………….
दिनांक……………………. समय………
क्रम सं. कपड़े का नाम संख्या टिप्पणी
1. चादर
2. ओढ़ने की चादर (सफ़ेद)
3. ओढ़ने की चादर (हरी)
4. रोगी का कुर्ता
5. रोगी का पजामा
6. डॉक्टर का कुर्ता
7. डॉक्टर का पजामा
8. डॉक्टर का गाउन
9. तौलिए की पट्टी
10. हाथ पोंछने का तौलिया
11. चेहरे का मास्क
12. बच्ची की फ्रॉक
13. कंबल बड़ा/बच्चे का
14. तकिए का कवर
15. गलपट्टी
16. ऐप्रन
17. गंदे कपड़ों का थैला

जीविका के लिए तैयारी

वस्त्रों की देखभाल और रखरखाव का क्षेत्र एक तकनीकी क्षेत्र है। इसकी प्राथमिक आवश्यकताएँ हैं-

  • आवश्यक देखभाल के प्रभाव के संदर्भ में सामग्री का ज्ञान अर्थात् इसके रेशों की मात्रा, धागा और कपड़ा उत्पादन तकनीक और कपड़ों का रंग तथा की जाने वाली परिसज्जा
  • अंतर्निहित प्रक्रियाओं का ज्ञान
  • प्रक्रिया में प्रयुक्त रसायनों और अन्य अभिकर्मकों का और वस्त्र पर उनके प्रभाव का ज्ञान
  • मशीनों की आवश्यकताओं और इनकी कार्यप्रणाली का व्यावहारिक ज्ञान

सामान्यत: धुलाई प्रबंधन पाठ्यक्रम लघु अवधि के कार्यक्रम होते हैं, जो अनुशिक्षण, रोज़गार प्राप्ति सहायता, व्यापार प्रारंभ करने हेतु सहायता, उच्च विशेषजता वाले धुलाईघर में वृत्ति के साथ व्यावहारिक प्रशिक्षण, विमान कंपनी, जलयान, रेलवे, होटलों और उच्च विशेषजता वाले अस्पतालों में रोज़गार के अवसर उपलब्ध कराते हैं, परंतु प्रत्येक व्यवस्था में विभिन्न प्रकार की आवश्यकताएँ हो सकती हैं, अत: एक व्यावहारिक प्रशिक्षण अथवा इंटर्नशिप की आवश्यकता पड़ सकती है। वस्त्र विज्ञान, वस्त्र रसायन, वस्त्र और परिधान में शैक्षिक योग्यताएँ अत्यधिक उपयोगी होंगी। पूरे देश में गृह विज्ञान विषय वाले बहुत से संस्थान स्नातक डिग्री के लिए विशेषज्ञता के रूप में ये पाठ्यक्रम उपलब्ध कराते हैं।

कार्यक्षेत्र

यह एक क्षेत्र है जहाँ वस्त्र निर्माण और पोशाक निर्माण, वस्त्र और परिधान में विशेषज्ञता प्राप्त लोग स्वउद्यमी गतिविधियों में प्रवेश करने का प्रयास कर

सकते हैं। ये सेवाएँ ग्राहकों को महानगरीय क्षेत्रों में बहुत मदद और सहायता दे सकती हैं, जहाँ महिलाएँ घर से बाहर काम करने जाती हैं। इन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में, उपचार गृह, छोटे अस्पताल, दिवस देखभाल केंद्र, इत्यादि भी हो सकते हैं, जिन्हें नियमित रूप से इन सेवाओं की आवश्यकता रहती है। कोई व्यक्ति रेलवे, विमान कंपनियों, पोत-परिवहन कंपनियों, होटलों और अस्पतालों अर्थात् संस्थाओं और प्रतिष्ठानों की उच्च तकनीक वाले धुलाईघरों में काम का चयन कर सकता हैं, जहाँ अंदर ही उनके अपने वस्त्रों और पोशाकों की देखभाल और रखरखाव की व्यवस्था रहती है।

प्रमुख शब्द

धुलाईघर, धुलाई, इस्तरी करना, निर्जल-धुलाई, विसंक्रमण, धुलाई मशीनें, जल-निष्कासक, कैलेंडर, सुरंग धुलाई पद्धतियाँ।

पुनरवलोकन प्रश्न

1. वस्त्रों की देखभाल और रखरखाव के दो पहलू क्या हैं?

2. वे कौन-से कारक हैं, जो वस्त्रों की सफ़ाई की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं?

3. एक व्यावसायिक या औद्योगिक धुलाईघर में विभिन्न विभागों की व्यवस्था कैसे की जाती है?

4. व्यावसायिक धुलाईघरों और अस्पतालों के धुलाईघरों के धुलाई कार्य की प्रक्रिया में क्या अंतर है?

प्रयोग 1

विषय-वस्तु— वस्त्र उत्पादों की देखभाल और रखरखाव—धब्बे हटाना

कार्य— विभिन्न प्रकार के धब्बे, जैसे - बॉल पेन, रक्त, कॉफ़ी, चाय, लिपिस्टिक, सब्जी, ग्रीस, स्याही के धब्बे हटाना

उद्देश्य- धब्बा वस्त्र पर अवांछनीय चिह्न या रंजन होता है, जो किसी बाहरी पदार्थ के संपर्क या अवशोषण से लगता है और वास्तविक धुलाई से पहले इसका विशेष उपचार करना पड़ता है।

प्रयोग कराना

धब्बे को हटाने की सही प्रक्रिया उपयोग में लाने के लिए धब्बे को पहचानना महत्वपूर्ण होता है।

“कक्षा 11 की एच.ई.एफ़.एस. की पाठ्यपुस्तक में वस्त्रों की देखभाल और रखरखाव को देखने के लिए अध्याय 17 को देखें”

विधि- " $4 \times 4$ " साइज़ के सफ़ेद सूती कपड़ों पर प्रत्येक धब्बे के दो नमूने लीजिए। एक का उपचार करिए और दूसरे को तुलना करने के लिए रख लीजिए। निम्नलिखित सारणी की सहायता से धण्बे को हटाइए -

धब्बा दशा सूती और लिनेन रेशमी और ऊनी संश्लेषित
1. रक्त ताज़ा ठंडे जल में भिगोएँ फिर पतले
अमोनिया के घोल में धोएँ।
ठंडे जल के साथ स्पंज
करके साफ़ कीजिए।
ठंडे जल में धोएँ
पुराना ठंडे जल और नमक में कुछ समय
तक भिगोएँ रखें जब तक कि धब्बा
साफ़ न हो जाए ( 1 औंस से 2
पिंट)।
(क) सूती कपड़े की तरह
(ख) उस पर स्टार्च का
पेस्ट लगाइए। सूखने
के लिए छोड़िए और
फिर ब्रश से साफ़
करें।
2. बॉल पेन
की स्याही
(क) मेथिलीकृत स्पिरिट में डुबोएँ।
(ख) साबुन और जल से धोएँ।
सूती कपड़े की तरह ही सूती कपड़े की
तरह ही
3. सब्ज़ी का
धब्बा
ताज़ा (क) साबुन और जल से धोएँ।
(ख) धूप और हवा में विरंजित
कीजिए।
सूती कपड़े की तरह ही सूती कपड़े की
तरह ही
पुराना (क) साबुन और जल से धोएँ।
(ख) जैवेल जल से विरंजित
कीजिए।
पोटेशियम परमैंगनेट
विलयन और अमोनिया
विलयन में धब्बे वाले
भाग को बारी-बारी से
डुबोएँ।
सोडियम परबोरेट
द्वारा विरंजित
कीजिए।
4. ग्रीस ताज़ा गर्म जल और साबुन से धोएँ। (क) यदि धोने योग्य है तो
गर्म जल और साबुन
के साथ धोइए।
(ख) जो जल में धोने योग्य
नहीं है उस दाग पर
फ्रेंच चॉक फैलाएँ।
एक घंटे के बाद
पाउडर को ब्रुश से
साफ़ कर दें।
रेशम और ऊन की
तरह
पुराना (क) ग्रीस विलायक (पेट्रोल,
मैथिलीकृत स्पिरिट) से उपचार
कीजिए।
(ख) गर्म जल और साबुन से धोएँ।
सूती कपड़े की तरह ही सूती कपड़े की
तरह ही
5. स्याही ताज़ा (क) धब्बे को कटे हुए टमाटर और
नमक से रगड़ लीजिए और
फिर जल से धो लीजिए।
(ख) धब्बे को तुरंत फटे दूध या दही
में आधे घंटे तक भिगोएँ और
फिर जल से धो लीजिए।
(ग) नमक और नींबू का रस लगाइए
और आधे घंटे के लिए छोड़
दीजिए, फिर जल से धो
लीजिए।
सूती कपड़े की तरह फ़टे
दूध या दही से उपचार
कीजिए।
रेशम और ऊन की
तरह धोएँ।
पुराना (क) संख्या 2 और 3 को लंबे
समय तक कीजिए।
(ख) तनु ऑक्सेलिक अम्ल
विलयन में डुबोएँ।
(ग) तनु बोरेक्स विलयन में अच्छी
तरह खंगलें।
(क) सूती कपड़े की तरह
(ख) सूती कपड़े की तरह
(ग) तनु अमोनिया
विलयन में खंगालें।
रेशमी और ऊनी
कपड़ों की तरह
6. लिपिस्टिक ताज़ा मैथिलीकृत स्पिरिट में डुबोएँ और
साबुन तथा जल से धोएँ।
सूती कपड़े की तरह सूती कपड़े की तरह
पुराना ग्लिसरीन लगाकर नम और नरम
कीजिए। साबुन और जल के साथ
खंगालें और फिर धोएँ।
धब्बे पर उबलता हुआ जल डालें।
(क) गरम जल में भिगोएँ।
(ख) तनु बोरेक्स विलयन
(1/2 चम्मच 2 कप
जल) में भिगोइए।
मिट्टी के तेल या
तारपीन के तेल में
भिगोइए और फिर
साबुन और गुनगुने
जल से धोइए।
सोडियम परबोरेट
विलयन (1 चम्मच
लगभग आधा लीटर
जल में घोलें) में
भिगोइए।
7. चाय और
कॉफ़ी
पुराना (क) धब्बे पर बोरेक्स फैलाकर ऊपर
उबलता जल डालें।
(ख) ग्लिसरीन में भिगोइए जब तक
धब्बा हट न जाए।
(क) बोरेक्स विलयन में
भिगोएँ।
(ख) तनु हाइड्रोजन
पैरॉक्साइड के साथ
उपचार कीजिए।

नोट — प्रयोग करने के बाद तुलना और उपचारित नमूने अपनी फ़ाइल में लगाइए।

संदर्भ

कुंज़, जी. आई. 2009. मरचैंडाइजिंग:- थ्योरी, प्रिंसिपल्स एंड प्रैक्टिस. फ़ेयरचाइल्ड पब्लिकेशंस.

डी सौज़ा, एन. 1994. फ़ैब्रिक केयर. न्यू एज इंटरनेशनल, नयी दिल्ली.

देंत्यागी, एस. 1987. फंडामैंटल्स ऑफ़ टैक्सटाइल्स् एंड देयर केयर. ओरिएंट लॉगमैन.

बेलफर, एन. 1992. बाटिक एंड डाई टैक्नीक्स्. डोवर पब्लिकेशंस.

भेदा, आर. 2002. मैनेजिंग प्रोडक्टिविटी इन द ऐपेरल इंडस्ट्री. सी.बी.एस. पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीव्यूटर्स.

मिल्स, जे. और स्मिथ, जे. 1996. डिजाइन कॉन्सेप्ट्स. फ़ेयरचाइल्ड पब्लिकेशंस.

मेहता, प्रदीप वी. और एस.के. भारद्वाज. 1998. मैनेजिंग क्वालिटी इन द ऐपेरल इंडस्ट्री. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ फ़ैशन टैक्नोलॉजी एंड न्यू एज इंटरनेशनल पब्लिशर्स, नयी दिल्ली.

लैंडी, एस. 2002. द टैक्सटाइल कंजर्वेटर्स मैनुअल. बटरवर्थ-हीनमैन पब्लिकेशंस.

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