गद्य खंड 14 शेर, पहचान, चार हाथ, साझा

असगर वजाहत

(जन्म सन् 1946)

असगर वजाहत का जन्म फतेहपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा फतेहपुर में हुई तथा विश्वविद्यालय स्तर की पढ़ाई उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से की। सन् 1955-56 से ही असगर वजाहत ने लेखन कार्य प्रारंभ कर दिया था। प्रारंभ में उन्होने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेखन कार्य किया, बाद में वे दिल्ली के जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य करने लगे। वजाहत ने कहानी, उपन्यास, नाटक तथा लघुकथा तो लिखी ही हैं, साथ ही उन्हॉने फिल्मों और धारावाहिकों के लिए पटकथा लेखन का काम भी किया है। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं-दिल्ली पहुँचना है, स्विमिंग पूल और सब कहाँ कुछ, आधी बानी, में हिंदू हूँ (कहानी संग्रह), फिरंगी लौट आए, इन्ना की आवाज़, वीरगति, समिधा, जिस लाहॉर नई देख्या तथा अकी (नाटक) सबसे सस्ता गोश्त (नुक्कड़ नाटकों) का संग्रह और रात में जागने वाले, पहर दोपहर तथा सात आसमान, कैसी आगि लगाई (प्रमुख उपन्यास)।

असगर वजाहत की भाषा में गांभीर्य, सबल भावाभिव्यक्ति एवं व्यंग्यात्मकता है। मुहावरों तथा तद्भव शब्दों के प्रयोग से उसमें सहजता एवं सादरी आ गई है। असगर वजाहत ने गज़ल की कहानी वृत्ताचित्र का निर्देशन किया है तथा बूँद-बूँद धारावाहिक का लेखन भी किया है।

शेर, पहचान, चार हाथ और साझा नाम से उनकी चार लघुकथाएँ दी गई हैं। शेर प्रतीकात्मक और व्यंग्यात्मक लघुकथा है। शेर व्यवस्था का प्रतीक है जिसके पेट में जंगल के सभी जानवर किसी न किसी प्रलोभन के चलते समाते चले जा रहे हैं। ऊपर से देखने पर शेर अहिंसावादी, न्यायप्रिय और बुद्ध का अवतार प्रतीत होता है पर जैसे ही लेखक उसके मुँह में प्रवेश न करने का इरादा करता है शेर अपनी असलियत में आ जाता है और दहाड़ता हुआ उसकी और झपटता है। तात्पर्य यह कि सत्ता तभी तक खामोश रहती है जब तक सब उसकी आज्ञा का पालन करते रहें। जैसे ही कोई उसकी व्यवस्था पर उँगली उठाता है या उसकी आज्ञा मानने से इनकार करता है, वह खूँखार हो उठती है और विरोध में उठे स्वर को कुचलने का प्रयास करती है। इस कहानी के माध्यम से लेखक ने सुविधाभोगियों, छद्म क्रांतिकारियों, अहिंसावादियों और सह-अस्तित्ववादियों के बोंग पर भी प्रहार किया है।

पहचान में राजा को बहरी, गूँगी और अंधी प्रजा पसंद आती है जो बिना कुछ बोले, बिना कुछ सुने और बिना कुछ देखे उसकी आज्ञा का पालन करती रहे। कहानीकार ने इसी यथार्थ की पहचान कराई है। भूमडलाकरण और उदाराकरण के दोर में इन्हें प्रगाते और उत्पादन से जोड़कर संगत और ज़रूरी भी ठहराया जा रहा है। इस छद्म प्रगति और विकास के बहाने राजा उत्पादन के सभी साधनों पर अपनी पकड़ मजबबूत करता जाता है। वह लोगों के जीवन को स्वर्ग जैसा बनाने का झाँसा देकर अपना जीवन स्वर्गमय बनाता है। वह जनता को एकजुट होने से रोकता है और उन्हें भुलावे में रखता है। यही उसकी सफलता का राज है।

चार हाथ पूँजीवादी व्यवस्था में मज़दूरों के शोषण को उजागर करती है। पूँजीयति भाँति-भाँते के उपाय कर मज़दूरों को पंगु बनाने का प्रयास करते हैं। वे उनके अहम और अस्तित्व को छिन्न-भिन्न करने के नए-नए तरीके बूँछते हैं और अंततः उनकी अस्मिता ही समाप्त कर देते हैं। मजदूर विरोध करने की स्थिति में नहीं हैं। वे मिल के कल-पुर्जे बन गए हैं और लाचारी में आधी मज़दूरी पर भी काम करने के लिए तैयार हैं। मज़ूरों की यह लाचारी शोषण पर आधारित व्यवस्था का परदाफ़ाश करती है।

साझा में उद्योगों पर कब्जा जमाने के बाद पूँजीयतियों की नज़र किसानों की ज़मीन और उत्पाद पर जमी है। गाँव का प्रभुत्वशाली वर्ग भी इसमें शामिल है। वह किसान को साझा खेती करने का झाँसा देता है और उसकी सारी फसल हड़प लेता है। किसान को पता भी नहीं चलता और उसकी सारी कमाई हाथी के पेट में चली जाती है। यह हाथी और कोई नहीं बल्कि समाज का धनाब्य और प्रभुत्वशाली वर्ग है जो किसानों को धोखे में डालकर उसकी सारी मेहनत गड़ण कर जाता है। यह कहानी आजादी के बाद किसानों की बदहाली का वर्णन करते हुए उसके कारणों की भी पड़ताल करती है।

शेर

मैं तो शहर से या आदमियों से डरकर जंगल इसलिए भागा था कि मेरे सिर पर सींग निकल रहे थे और डर था कि किसी-न-किसी दिन कसाई की नज़र मुझ पर ज़रूर पड़ जाएगी।

जंगल में मेरा पहला ही दिन था जब मैंने बरगद के पेड़ के नीचे एक शेर को बैठे हुए देखा। शेर का मुँह खुला हुआ था। शेर का खुला मुँह देखकर मेरा जो हाल होना था वही हुआ, यानी मैं डर के मारे एक झाड़ी के पीछे छिप गया।

मैंने देखा कि झाड़ी की ओट भी गज़ब की चीज़ है। अगर झाड़ियाँ न हों तो शेर का मुँह-ही-मुँह हो और फिर उससे बच पाना बहुत कठिन हो जाए। कुछ देर के बाद मैंने देखा कि जंगल के छोटे-मोटे जानवर एक लाइन से चले आ रहे हैं और शेर के मुँह में घुसते चले जा रहे हैं। शेर बिना हिले-डुले, बिना चबाए, जानवरों को गटकता जा रहा है। यह दृश्य देखकर मैं बेहोश होते-होते बचा।

अगले दिन मैंने एक गधा देखा जो लंगड़ाता हुआ शेर के मुँह की तरफ़ चला जा रहा था। मुझे उसकी बेवकूफी पर सख्त गुस्सा आया और मैं उसे समझाने के लिए झाड़ी से निकलकर उसके सामने आया। मैंने उससे पूछा, “तुम शेर के मुँह में अपनी इच्छा से क्यों जा रहे हो?”

उसने कहा, “वहाँ हरी घास का एक बहुत बड़ा मैदान है। मैं वहाँ बहुत आराम से रहूँगा और खाने के लिए खूब घास मिलेगी।”

मैंने कहा, “वह शेर का मुँह है।”

उसने कहा, “गधे, वह शेर का मुँह ज़रूर है, पर वहाँ है हरी घास का मैदान।” इतना कहकर वह शेर के मुँह के अंदर चला गया।

फिर मुझे एक लोमड़ी मिली। मैंने उससे पूछा, “तुम शेर के मुँह में क्यों जा रही हो?”

उसने कहा, “शेर के मुँह के अंदर रोज़गार का दफ़्तर है। मैं वहाँ दरख्वास्त दूँगी, फिर मुझे नौकरी मिल जाएगी।”

मैंने पूछा, “तुम्हें किसने बताया।”

उसने कहा, “शेर ने।” और वह शेर के मुँह के अंदर चली गई।

फिर एक उल्लू आता हुआ दिखाई दिया। मैंने उल्लू से वही सवाल किया।

उल्लू ने कहा, “शेर के मुँह के अंदर स्वर्ग है।”

मैंने कहा, “नहीं, यह कैसे हो सकता है।”

उल्लू बोला, “नहीं, यह सच है और यही निर्वाण का एकमात्र रास्ता है।” और उल्लू भी शेर के मुँह में चला गया।

अगले दिन मैंने कुत्तों के एक बड़े जुलूस को देखा जो कभी हँसते-गाते थे और कभी विरोध में चीखते-चिल्लाते थे। उनकी बड़ी-बड़ी लाल जीभें निकली हुई थीं, पर सब दुम दबाए थे। कुत्तों का यह जुलूस शेर के मुँह की तरफ़ बढ़ रहा था। मैंने चीखकर कुत्तों को रोकना चाहा, पर वे नहीं रुके और उन्होंने मेरी बात अनसुनी कर दी। वे सीधे शेर के मुँह में चले गए।

कुछ दिनों के बाद मैंने सुना कि शेर अहिंसा और सह-अस्तित्ववाद का बड़ा ज़बरदस्त समर्थक है इसलिए जंगली जानवरों का शिकार नहीं करता। मैं सोचने लगा, शायद शेर के पेट में वे सारी चीज़ें हैं जिनके लिए लोग वहाँ जाते हैं और मैं भी एक दिन शेर के पास गया। शेर आँखें बंद किए पड़ा था और उसका स्टाफ़ आफ़िस का काम निपटा रहा था। मैंने वहाँ पूछा, “क्या यह सच है कि शेर साहब के पेट के अंदर, रोज़गार का दफ़्तर है?”

बताया गया कि यह सच है।

मैंने पूछा, “कैसे?”

बताया गया, “सब ऐसा ही मानते हैं।”

मैंने पूछा, “क्यों? क्या प्रमाण है?”

बताया गया, “प्रमाण से अधिक महत्त्वपूर्ण है विश्वास?”

मैंने कहा, “और यह बाहर जो रोज़गार का दफ़्तर है?”

बताया गया, “मिथ्या है।”

मैंने कहा, “तुम लोग मुझे उल्लू नहीं बना सकते। वह शेर का मुँह है। शेर के मुँह और रोज़गार के दफ़्तर का अंतर मुझे मालूम है। मैं इसमें नहीं जाऊँगा।” मेरे यह कहते ही गौतम बुद्ध की मुद्रा में बैठा शेर दहाड़कर खड़ा हो गया और मेरी तरफ झपट पड़ा।

पहचान

राजा ने हुक्म दिया कि उसके राज में सब लोग अपनी आँखें बंद रखेंगे ताकि उन्हें शांति मिलती रहे। लोगों ने ऐसा ही किया क्योंकि राजा की आज्ञा मानना जनता के लिए अनिवार्य है। जनता आँखें बंद किए-किए सारा काम करती थी और आश्चर्य की बात यह कि काम पहले की तुलना में बहुत अधिक और अच्छा हो रहा था। फिर हुक्म निकला कि लोग अपने-अपने कानों में पिघला हुआ सीसा डलवा लें क्योंकि सुनना जीवित रहने के लिए बिलकुल ज़रूरी नहीं है। लोगों ने ऐसा ही किया और उत्पादन आश्चर्यजनक तरीके से बढ़ गया।

फिर हुक्म ये निकला कि लोग अपने-अपने होंठ सिलवा लें, क्योंकि बोलना उत्पादन में सदा से बाधक रहा है। लोगों ने काफ़ी सस्ती दरों पर होंठ सिलवा लिए और फिर उन्हें पता लगा कि अब वे खा भी नहीं सकते हैं। लेकिन खाना भी काम करने के लिए बहुत आवश्यक नहीं माना गया। फिर उन्हें कई तरह की चीज़ें कटवाने और जुड़वाने के हुक्म मिलते रहे और वे वैसा ही करवाते रहे। राजा रातदिन प्रगति करता रहा।

फिर एक दिन खैराती, रामू और छिद्दू ने सोचा कि लाओ आँखें खोलकर तो देखें। अब तक अपना राज स्वर्ग हो गया होगा। उन तीनों ने आँखें खोलीं तो उन सबको अपने सामने राजा दिखाई दिया। वे एक-दूसरे को न देख सके।

चार हाथ

एक मिल मालिक के दिमाग में अजीब-अजीब खयाल आया करते थे जैसे सारा संसार मिल हो जाएगा, सारे लोग मज़दूर और वह उनका मालिक या मिल में और चीज़ों की तरह आदमी भी बनने लगेंगे, तब मज़दूरी भी नहीं देनी पड़ेगी, वगैरा-वगैरा। एक दिन उसके दिमाग में खयाल आया कि अगर मज़दूरों के चार हाथ हो तो काम कितनी तेज़ी से हो और मुनाफ़ा कितना ज्यादा। लेकिन यह काम करेगा कौन?

उसने सोचा, वैज्ञानिक करेंगे, ये हैं किस मर्ज़ की दवा? उसने यह काम करने के लिए बड़े वैज्ञानिकों को मोटी तनख्वाहों पर नौकर रखा और वे नौकर हो गए। कई साल तक शोध और प्रयोग करने के बाद वैज्ञानिकों ने कहा कि ऐसा असंभव है कि आदमी के चार हाथ हो जाएँ। मिल मालिक वैज्ञानिकों से नाराज़ हो गया। उसने उन्हें नौकरी से निकाल दिया और अपने-आप इस काम को पूरा करने के लिए जुट गया।

उसने कटे हुए हाथ मंगवाए और अपने मज़दूरों के फिट करवाने चाहे, पर ऐसा नहीं हो सका। फिर उसने मज़दूरों के लकड़ी के हाथ लगवाने चाहे, पर उनसे काम नहीं हो सका। फिर उसने लोहे के हाथ फिट करवा दिए, पर मज़दूर मर गए।

आखिर एक दिन बात उसकी समझ में आ गई। उसने मज़दूरी आधी कर दी और दुगुने मज़दूर नौकर रख लिए।

साझा

हालाँकि उसे खेती की हर बारीकी के बारे में मालूम था, लेकिन फिर भी डरा दिए जाने के कारण वह अकेला खेती करने का साहस न जुटा पाता था। इससे पहले वह शेर, चीते और मगरमच्छ के साथ साझे की खेती कर चुका था, अब उससे हाथी ने कहा कि अब वह उसके साथ साझे की खेती करे। किसान ने उसको बताया कि साझे में उसका कभी गुज़ारा नहीं होता और अकेले वह खेती कर नहीं सकता। इसलिए वह खेती करेगा ही नहीं। हाथी ने उसे बहुत देर तक पट्टी पढ़ाई और यह भी कहा कि उसके साथ साझे की खेती करने से यह लाभ होगा कि जंगल के छोटे-मोटे

जानवर खेतों को नुकसान नहीं पहुँचा सकेंगे और खेती की अच्छी रखवाली हो जाएगी। किसान किसी न किसी तरह तैयार हो गया और उसने हाथी से मिलकर गन्ना बोया। हाथी पूरे जंगल में घूमकर डुग्गी पीट आया कि गन्ने में उसका साझा है इसलिए कोई जानवर खेत को नुकसान न पहुँचाए, नहीं तो अच्छा न होगा।

किसान फसल की सेवा करता रहा और समय पर जब गन्ने तैयार हो गए तो वह हाथी को खेत पर बुला लाया। किसान चाहता था कि फसल आधी-आधी बाँट ली जाए। जब उसने हाथी से यह बात कही तो हाथी काफ़ी बिगड़ा।

हाथी ने कहा, “अपने और पराए की बात मत करो। यह छोटी बात है। हम दोनों ने मिलकर मेहनत की थी हम दोनों उसके स्वामी हैं। आओ, हम मिलकर गन्ने खाएँ।”

किसान के कुछ कहने से पहले ही हाथी ने बढ़कर अपनी सूँड से एक गन्ना तोड़ लिया और आदमी से कहा, “आओ खाएँ।”

गन्ने का एक छोर हाथी की सूँड में था और दूसरा आदमी के मुँह में। गन्ने के साथ-साथ आदमी हाथी के मुँह की तरफ़ खींचने लगा तो उसने गन्ना छोड़ दिया।

हाथी ने कहा, “देखो, हमने एक गन्ना खा लिया।”

इसी तरह हाथी और आदमी के बीच साझे की खेती बँट गई।

प्रश्न-अभ्यास

शेर

1. लोमड़ी स्वेच्छा से शेर के मुँह में क्यों चली जा रही थी?

2. कहानी में लेखक ने शेर को किस बात का प्रतीक बताया है?

3. शेर के मुँह और रोज़गार के दफ़्तर के बीच क्या अंतर है?

4. ‘प्रमाण से अधिक महत्त्वपूर्ण है विश्वास’ कहानी के आधार पर टिप्पणी कीजिए।

पहचान

1. राजा ने जनता को हुक्म क्यों दिया कि सब लोग अपनी आँखें बंद कर लें?

2. आँखें बंद रखने और आँखें खोलकर देखने के क्या परिणाम निकले?

3. राजा ने कौन-कौन से हुक्म निकाले? सूची बनाइए और इनके निहितार्थ लिखिए।

4. जनता राज्य की स्थिति की ओर से आँखें बंद कर ले तो उसका राज्य पर क्या प्रभाव पड़ेगा? स्पष्ट कीजिए।

5. खैराती, रामू और छिद्दू ने जब आँखें खोलों तो उन्हें सामने राजा ही क्यों दिखाई दिया?

चार हाथ

1. मज़दूरों को चार हाथ देने के लिए मिल मालिक ने क्या किया और उसका क्या परिणाम निकला?

2. चार हाथ न लग पाने पर मिल मालिक की समझ में क्या बात आई?

साझा

1. साझे की खेती के बारे में हाथी ने किसान को क्या बताया?

2. हाथी ने खेत की रखवाली के लिए क्या घोषणा की?

3. आधी-आधी फसल हाथी ने किस तरह बाँटी?

योग्यता-विस्तार

शेर

1. इस कहानी में हमारी व्यवस्था पर जो व्यंग्य किया गया है, उसे स्पष्ट कीजिए।

2. यदि आपके भी सींग निकल आते तो आप क्या करते?

पहचान

1. गांधी जी के तीनों बंदर आँख, कान, मुँह बंद करते थे किंतु उनका उद्देश्य अलग था कि वे बुरा न देखेंगे, न सुनेंगे, न बोलेंगे। यहाँ राजा ने अपने लाभ के लिए या राज्य की प्रगति के लिए ऐसा किया। दोनों की तुलना कीजिए।

2. भारतेंदु हरिश्चंद्र का ‘अंधेर नगरी चौपट राजा’ नाटक देखिए और उस राजा से ‘पहचान’ के राजा की तुलना कीजिए।

चार हाथ

1. आप यदि मिल मालिक होते तो उत्पादन दो गुना करने के लिए क्या करते?

साझा

1. ‘पंचतंत्र की कथाएँ’ भी पढ़िए।

2. ‘भेड़ और भेड़िए’ हरिशंकर परसाई की रचना पढ़िए।

3. कहानी और लघुकथा में अंतर जानिए।

शब्दार्थ और टिप्पणी

सींग निकलना - इसका प्रयोग प्रतीक रूप में किया गया है। गधे के सिर पर सींग निकलने की कहावत आपने सुनी होगी। यहाँ इसी कहावत को प्रतीक के रूप में प्रयुक्त किया गया है। यहाँ इसका अर्थ है, व्यवस्था से अलग रहना, बनी बनाई लीक से अलग चलना।
डुग्गी पीटना - प्रचार करना, पुराने ज़माने में डुग्गी (एक प्रकार का वाद्य) बजाकर लोगों को इकट्ठा किया जाता था और ज़रूरी सूचना सुनाई जाती थी।
पट्टी पढ़ाना - बहकाने वाली शिक्षा देना
निर्वाण - जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्ति
उल्लू बनाना - मूर्ख बनाना



विषयसूची

sathee Ask SATHEE

Welcome to SATHEE !
Select from 'Menu' to explore our services, or ask SATHEE to get started. Let's embark on this journey of growth together! 🌐📚🚀🎓

I'm relatively new and can sometimes make mistakes.
If you notice any error, such as an incorrect solution, please use the thumbs down icon to aid my learning.
To begin your journey now, click on

Please select your preferred language
कृपया अपनी पसंदीदा भाषा चुनें