अध्याय 08 भारत माता

जवाहरलाल नेहरू

( सन् 1889-1964 )

जन्मः सन् 1889 , इलाहाबाद (उ.प्र.)

प्रमुख रचनाएँ: मेरी कहानी (आत्मकथा) विश्व इतिहास की झलक, हिंदुस्तान की कहानी, पिता के पत्र पुत्री के नाम (हिंदी अनुवाद), हिंदुस्तान की समस्याएँ, स्वाधीनता और उसके बाद, राष्ट्रपिता, भारत की बुनियादी एकता, लड़खड़ाती दुनिया आदि (लेखों और भाषणों का संग्रह)

मृत्यु: सन् 1964

जवाहरलाल नेहरू का जन्म इलाहाबाद के एक संपन्न परिवार में हुआ। उनके पिता वहाँ के बड़े वकील थे। नेहरू की प्रारंभिक शिक्षा घर पर तथा उच्च शिक्षा इंग्लैंड में हैरो तथा कैम्ब्रिज में हुई। वहीं से वकालत की पढ़ाई भी की लेकिन नेहरू पर गांधी जी का बहुत प्रभाव पड़ा। उनकी पुकार पर वे पढ़ाई छोड़कर आज़ादी की लड़ाई में जुट गए। आगे चलकर सन् 1929 में वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन के अध्यक्ष बने और पूर्ण स्वतंत्रता को माँग की। नेहरू का झुकाव समाजवाद की ओर भी रहा।

सन् 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ तो नेहरू जी पहले प्रधानमंत्री बने और भारत के निर्माण में अंत तक जुटे रहे। उन्होंने देश के विकास के लिए कई योजनाएँ बनाईं, जिनमें आर्थिक और औद्योगिक प्रगति तथा वैज्ञानिक अनुसंधान से लेकर साहित्य, कला, संस्कृति आदि क्षेत्र शामिल थे। नेहरू जी बच्चों के बीच चाचा नेहरू के रूप

में जाने जाते थे। शांति, अहिंसा और मानवता के हिमायती नेहरू ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्वशांति और पंचशील के सिद्धांतों का प्रचार किया।

प्रस्तुत पाठ हिंदुस्तान की कहानी का पाँचवाँ अध्याय है। अंग्रेज़ी से भाषांतर हरिभाऊ उपाध्याय ने किया है। इसमें पं. नेहरू ने बताया है कि किस तरह देश के कोने-कोने में आयोजित जलसों में जाकर वे आम लोगों को बताते थे कि अनेक हिस्सों में बँटा होने के बाद भी हिंदुस्तान एक है। इस अपार फैलाव के बीच एकता के क्या आधार हैं और क्यों भारत एक देश है, जिसके सभी हिस्सों की नियति एक ही तरीके से बनती-बिगड़ती है-यही पूरे पाठ की विषयवस्तु है। इसी क्रम में पं. नेहरू ने भारत माता शब्द पर भी विचार किया है और उनका निष्कर्ष है कि भारत माता की जय का मतलब है, यहाँ के करोड़ों-करोड़ लोगों की जय। कहने की ज़रूरत नहीं कि अपने छोटे आकार के बावजूद इस लेख का कथ्य अत्यंत विराट और प्रस्तुतीकरण पैना है।

भारत माता

अकसर जब मैं एक जलसे से दूसरे जलसे में जाता होता, और इस तरह चक्कर काटता रहता होता था, तो इन जलसों में मैं अपने सुनने वालों से अपने इस हिंदुस्तान या भारत की चर्चा करता। भारत एक संस्कृत शब्द है और इस जाति के परंपरागत संस्थापक के नाम से निकला हुआ है। मैं शहरों में ऐसा बहुत कम करता, क्योंकि वहाँ के सुनने वाले कुछ ज्यादा सयाने थे और उन्हें दूसरे ही किस्म की गिज़ा की ज़रूरत थी। लेकिन किसानों से, जिनका नज़रिया महदूद था, मैं इस बड़े देश की चर्चा करता, जिसकी आज़ादी के लिए हम लोग कोशिश कर रहे थे और बताता कि किस तरह देश का एक हिस्सा दूसरे से जुदा होते हुए भी हिंदुस्तान एक था। मैं उन मसलों का ज़िक्र करता, जो उत्तर से लेकर दक्खिन तक और पूरब से लेकर पच्छिम तक, किसानों के लिए यक-साँ थे, और स्वराज्य का भी ज़िक्र करता, जो थोड़े लोगों के लिए नहीं, बल्कि सभी के फ़ायदे के लिए हो सकता था।

मैं उत्तर-पच्छिम में खैबर के दर्रे से लेकर धुर दक्खिन में कन्याकुमारी तक की अपनी यात्रा का हाल बताता और यह कहता कि सभी जगह किसान मुझसे एक-से सवाल करते, क्योंकि उनकी तकलीफ़ें एक-सी थीं-यानी गरीबों, कर्ज़दारों, पूँजीपतियों के शिकंजे, ज़मींदार, महाजन, कड़े लगान और सूद, पुलिस के ज़ुल्म, और ये सभी बातें गुँथी हुई थीं, उस ढढ्ढे के साथ, जिसे एक विदेशी सरकार ने हम पर लाद रखा था और इनसे छुटकारा भी सभी को हासिल करना था। मैंने इस बात की कोशिश की कि लोग सारे हिंदुस्तान के बारे में सोचें और कुछ हद तक इस बड़ी दुनिया के बारे में भी, जिसके हम एक जुज़ हैं। मैं अपनी बातचीत में चीन, स्पेन, अबीसिनिया, मध्य यूरोप, मिस्न और पच्छिमी एशिया में होनेवाले कशमकशों का ज़िक्र भी ले आता। मैं उन्हें सोवियत यूनियन में होने वाली अचरज-भरी तब्दीलियों का हाल भी बताता और कहता कि अमरीका ने कैसी तरक्की की है। यह काम आसान न था, लेकिन जैसा मैंने समझ रखा था, वैसा मुश्किल भी न था। इसकी वजह यह थी कि हमारे पुराने महाकाव्यों ने और पुराणों की कथा-कहानियों ने, जिन्हें वे खूब जानते थे, उन्हें इस देश की कल्पना करा दी थी, और हमेशा कुछ लोग ऐसे मिल जाते थे, जिन्होंने हमारे बड़े-बड़े तीर्थों की यात्रा कर रखी थी, जो हिंदुस्तान के चारों कोनों पर हैं। या हमें पुराने सिपाही मिल जाते, जिन्होंने पिछली बड़ी जंग में या और धावों के सिलसिले में विदेशों में नौकरियाँ की थीं। सन् तीस के बाद जो आर्थिक मंदी पैदा हुई थी, उसकी वजह से दूसरे मुल्कों के बारे में मेरे हवाले उनकी समझ में आ जाते थे।

कभी ऐसा भी होता कि जब मैं किसी जलसे में पहुँचता, तो मेरा स्वागत “भारत माता की जय!” इस नारे से ज़ोर के साथ किया जाता। मैं लोगों से अचानक पूछ बैठता कि इस नारे से उनका क्या मतलब है? यह भारत माता कौन है, जिसकी वे जय चाहते हैं। मेरे सवाल से उन्हें कुतूहल और ताज्जुब होता और कुछ जवाब न बन पड़ने पर वे एक-दूसरे की तरफ़ या मेरी तरफ़ देखने लग जाते। मैं सवाल करता ही रहता। आखिर एक हट्टे-कट्टे जाट ने, जो अनगिनत पीढ़ियों से किसानी करता आया था, जवाब दिया कि भारत माता से उनका मतलब धरती से है। कौन-सी धरती? खास उनके गाँव की धरती या जिले की या सूबे की या सारे हिंदुस्तान की धरती से उनका मतलब है? इस तरह सवाल-जवाब चलते रहते, यहाँ तक कि वे ऊबकर मुझसे कहने लगते कि मैं ही बताऊँ। मैं इसकी कोशिश करता और बताता कि हिंदुस्तान वह सब कुछ है, जिसे उन्होंने समझ रखा है, लेकिन वह इससे भी बहुत ज़्यादा है। हिंदुस्तान के नदी और पहाड़, जंगल और खेत, जो हमें अन्न देते हैं, ये सभी हमें अज़ीज़ हैं। लेकिन आखिरकार जिनकी गिनती है, वे हैं हिंदुस्तान के लोग, उनके और मेरे जैसे लोग, जो इस सारे देश में फैले हुए हैं। भारत माता दरअसल यही करोड़ों लोग हैं, और “भारत माता की जय!” से मतलब हुआ इन लोगों की जय का।

मैं उनसे कहता कि तुम इस भारत माता के अंश हो, एक तरह से तुम ही भारत माता हो, और जैसे-जैसे ये विचार उनके मन में बैठते, उनकी आँखों में चमक आ जाती, इस तरह, मानो उन्होंने कोई बड़ी खोज कर ली हो।

अभ्यास

पाठ के साथ

1. भारत की चर्चा नेहरू जी कब और किससे करते थे?

2. नेहरू जो भारत के सभी किसानों से कौन-सा प्रश्न बार-बार करते थे?

3. दुनिया के बारे में किसानों को बताना नेहरू जी के लिए क्यों आसान था?

4. किसान सामान्यतः भारत माता का क्या अर्थ लेते थे?

5. भारत माता के प्रति नेहरू जी की क्या अवधारणा थी?

6. आज़ादी से पूर्व किसानों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता था?

पाठ के आस-पास

1. आज़ादी से पहले भारत-निर्माण को लेकर नेहरू के क्या सपने थे? क्या आज़ादी के बाद वे साकार हुए? चर्चा कीजिए।

2. भारत के विकास को लेकर आप क्या सपने देखते हैं?

3. आपकी दृष्ट्टि में भारत माता और हिंदुस्तान की क्या संकल्पना है? बताइए।

4. वर्तमान समय में किसानों की स्थिति किस सीमा तक बदली है? चर्चा कर लिखिए?

5. आज़ादी से पूर्व अनेक नारे प्रचलित थे। किन्हीं दस नारों का संकलन करें और संदर्भ भी लिखें।

भाषा की बात

1. नीचे दिए गए वाक्यों का पाठ के संदर्भ में अर्थ लिखिए -

दक्खिन, पच्छिम, यक-साँ, एक जुज़, ढढ़े

2. नीचे दिए गए संज्ञा शब्दों के विशेषण रूप लिखिए -

आज़ादी, चमक, हिंदुस्तान, विदेश, सरकार, यात्रा, पुराण, भारत

शब्द-छवि

सयाने - समझदार
गिज़ा - खुराक, भोजन, खाद्य
नज़रिया - दृष्टिकोण
महदूद - सीमित
मसला - मुद्दा
यक-साँ - एक समान
ढढ्ढे - बोझ
तब्दीलियों - परिवर्तनों
जुज़ - खंड, भाग
कशमकश - ऊहापोह, पसोपेश
हवाले - संदर्भ
कुतूहल - उत्सुकता
ताज्जुब - आश्चर्य
हट्टे-कट्टे - हृष्ट-पुष्ट, स्वस्थ, मज़बूत कद-काठी वाला
अज़ीज़ - प्रिय
दरअसल - वास्तव में
जलसा - समारोह
धावा - आक्रमण


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